दिल्ली में प्रैक्टिस के इच्छुक वकीलों के लिए NCR के पते की अनिवार्यता खत्म, बार काउंसिल ने वापस ली अधिसूचना
इससे पहले दिल्ली बार काउंसिल ने अपने एक नोटिस में कहा था कि राष्ट्रीय राजधानी में पंजीयन को इच्छुक नए कानून स्नातकों के लिए दिल्ली/एनसीआर के पते वाले आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र की कॉपी संलग्न करना अनिवार्य है और इसके अभाव में कोई नामांकन नहीं होगा।
बार काउंसिल ऑफ दिल्ली (बीसीडी) ने सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचित किया कि उसने नामांकन के लिए दिल्ली-एनसीआर के पते वाले आधार और मतदाता पहचान पत्र को अनिवार्य बनाने वाली अपनी अधिसूचना वापस ले ली है। बीसीडी की अधिसूचना को रद्द करने के लिए वकील शन्नू बघेल द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने 13 जुलाई को कहा था कि बीसीडी की अधिसूचना को तत्काल प्रभाव से रद्द करने की जरूरत है।
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ को बताया गया कि अधिसूचना वापस ले ली गई है। अदालत ने कहा- 13 अप्रैल, 2023 की अधिसूचना, जिसके द्वारा बार काउंसिल ऑफ दिल्ली ने अधिसूचित किया था कि जो व्यक्ति दिल्ली/एनसीआर का निवासी नहीं है, उसे बार काउंसिल ऑफ दिल्ली द्वारा वकील के रूप में पंजीकृत नहीं किया जाएगा। बीसीडी ने खुली अदालत में बयान दिया है कि विवादित अधिसूचना वापस ले ली गई है। उपरोक्त के आलोक में, वर्तमान रिट याचिका में कुछ भी नहीं बचा है, उसका निपटारा किया जाता है।''
इससे पहले बीसीडी ने अपने एक नोटिस में कहा था कि राष्ट्रीय राजधानी में नामांकन को इच्छुक नए कानून स्नातकों के लिए दिल्ली/एनसीआर के पते वाले आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र की प्रतियां संलग्न करना अनिवार्य है और इसके अभाव में कोई नामांकन नहीं होगा।
मामले सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने बीसीडी से सवाल किया कि दिल्ली से नहीं आने वाले लोगों को नामांकन लेने से कैसे रोका जा सकता है। पीठ ने टिप्पणी की थी, “आप अकेले दिल्ली के लोगों को बीसीडी में पंजीकरण करने से कैसे प्रतिबंधित कर सकते हैं? इस अधिसूचना को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए। आप बीसीडी सदस्यता को केवल दिल्ली तक सीमित नहीं कर सकते।”
न्यायाधीश ने कहा था कि "दिल्ली कानून की प्रैक्टिस करने के लिए एक अच्छी जगह है, यही वजह है कि लोग यहां आते हैं। मान लीजिए कि मैं रामनाथपुरम में रह रहा हूं, मैं सिलचर या कच्छ या मेहसाणा में रहता हूं। मै क्या करूं? मुझे अपनी रोटी कमानी है, यहां आना है और प्रैक्टिस करना है।” उच्च न्यायालय और जिला अदालतों में प्रैक्टिस करने वाले वकील बघेल ने तर्क दिया था कि अधिसूचना भेदभावपूर्ण है, क्योंकि यह दिल्ली-एनसीआर के बाहर के लोगों को दिल्ली में नामांकन करने और यहां अभ्यास करने से रोकती है।
एक वकील और दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र ने भी बीसीडी की अधिसूचना को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की थी। बीसीडी के फैसले को मनमाना और भेदभावपूर्ण बताते हुए बिहार की निवासी वकील रजनी कुमारी द्वारा दायर याचिका में बीसीडी के 13 अप्रैल को जारी नोटिस को चुनौती दी गई थी, जिसमें कहा गया कि काउंसिल का निर्णय देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले और बेहतर संभावनाओं के लिए राजधानी में कानून का अभ्यास करने के इच्छुक कानून स्नातकों के लिए एक बाधा की तरह काम करेगा।
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