मोदी सरकार में एक और सफल कंपनी में संकट, हेवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन में काम ठप, कई रक्षा ऑर्डर प्रभावित
एक दौर में देश में मदर ऑफ ऑल इंडस्ट्री के रूप में मशहूर एचईसी के पास अपने 3500 स्थायी-अस्थायी कर्मियों को तनख्वाह देने तक के पैसे नहीं हैं। देश का यह गौरवशाली औद्योगिक संस्थान पिछले 7-8 महीनों से अपने 58 वर्ष के इतिहास में सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहा है।
जबरदस्त आर्थिक संकट से जूझ रहे रांची स्थित हेवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन (एचईसी) का प्रोडक्शन ठप हो गया है। इससे तकरीबन दो हजार करोड़ का वर्कऑर्डर प्रभावित हो सकता है। कंपनी में चल रहे रक्षा, रेलवे, नौसेना, इसरो और कोल सेक्टर के कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स के काम भी रुक गये हैं। एक दौर में देश में मदर ऑफ ऑल इंडस्ट्री के रूप में मशहूर रही एचईसी के पास अपनी मशीनों को चलाने से लेकर अपने 3500 स्थायी-अस्थायी कर्मियों को तनख्वाह देने तक के पैसे नहीं हैं। देश का यह गौरवशाली औद्योगिक संस्थान पिछले सात-आठ महीनों से अपने 58 वर्षों के इतिहास में सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहा है।
सात महीने से वेतन न मिलने से नाराज कर्मी पिछले गुरुवार से टूलडाउन स्ट्राइक पर हैं और प्रोडक्शन जीरो हो गया है। शनिवार को तीसरे दिन भी सैकड़ों कर्मी एचईसी के तीनों प्लांटों के गेट पर जमे रहे। पिछले चार-पांच दशकों में एचईसी में पहले कई बार कर्मचारी यूनियनों और प्रबंधन के बीच टकराव के हालात पैदा हुए हैं, लेकिन इस बार कर्मियों की टूल डाउन स्ट्राइक किसी यूनियन के आह्वान के बगैर हुई है।
बीते गुरुवार को सुबह की पाली में काम करने पहुंचे कर्मियों ने अचानक काम बंद कर दिया और बाहर निकल आए। आंदोलित कर्मचारी इस कदर गुस्से में हैं कि कोई अधिकारी प्लांट के आस-पास फटकने की हिम्मत नहीं कर रहा है। शुक्रवार को कंपनी के तीनों निदेशकों ने एक लिखित स्टेटमेंट जारी कर कंपनी की खराब हालत का हवाला देते हुए कामगारों से स्ट्राइक खत्म करने की अपील की। इस अपील में बकाया वेतन भुगतान के सवाल पर एक भी शब्द का उल्लेख नहीं किये जाने से हड़ताली कामगार और भड़क गए हैं।
जानकारों के मुताबिक कंपनी के सामने सबसे बड़ी चुनौती मशीनों के अपग्रेडेशन और कोर कैपिटल की है। पिछले तीन-चार वर्षों से प्रोडक्शन में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। कारखाने में मशीनों का उपयोग मात्र 30 प्रतिशत हो पा रहा है। हेवी मशीन बिल्डिंग प्लांट और फाउंड्री फोर्ज प्लांट में कई मशीनों का इस्तेमाल बंद पड़ा है। मशीनों में इस्तेमाल किया जाने वाला स्पेशल ऑयल से लेकर मामूली कल-पुर्जों तक की खरीदारी नहीं हो पा रही है। कोयला सहित रॉ मटेरियल की भी कमी है। अभी कंपनी में रक्षा, रेलवे, नौसेना और कोल सेक्टर से जुड़े कई उपकरणों का निर्माण कार्य चल रहा था। इस साल के अंत तक लगभग 200 करोड़ का वर्क आर्डर पूरा किया जाना था, लेकिन अब प्रोडक्शन पूरी तरह ठप पड़ गया है।
एचईसी प्रबंधन ने कुछ माह पहले वर्किंग कैपिटल का संकट दूर करने के लिए केंद्र सरकार से सहायता राशि देने और रांची स्थित अपने संसाधनों से पैसे जुटाने के लिए कुछ नई स्कीम शुरू करने की अनुमति मांगी थी। एचईसी प्रबंधन ने खाली जमीन को लीज पर देने की अनुमति मांगी थी। निदेशक मंडल से इसकी अनुमति भी मिल गई थी, लेकिन मंत्रालय की ओर से अब तक हरी झंडी नहीं मिली है। पूर्व में केंद्र सरकार ने एचईसी से लायबिलिटीज रिपोर्ट भी मांगी थी। इस पर प्रबंधन ने एचईसी की लायबिलिटिज, कर्मचारियों की संख्या, उनके ग्रेच्युटी, पीएफ आदि के बारे में रिपोर्ट केंद्र को भेजी थी। इस पर क्या कार्रवाई हुई, अब तक स्पष्ट नहीं हो पाया है।
जानकार एचईसी की आर्थिक सेहत लगातार गिरने की कई और वजहें बताते हैं। लंबे समय से यहां फुल टाइमर सीएमडी का पद रिक्त है। फिलहाल भेल के सीएमडी नलिन सिंघल के पास एचईसी सीएमडी का भी प्रभार है। वह अब तक सिर्फ 4 बार एचईसी के दौरे पर आए हैं।
इस मदर इंडस्ट्री की बदहाली के चलते रांची के तुपुदाना इंडस्ट्रियल एरिया में चलने वाली 70 फीसदी औद्योगिक इकाइयों पर विगत वर्षों में ताले लग गए हैं। एक दौर में तुपुदाना इंडस्ट्रियल एरिया की पहचान एचईसी एंसीलरी इंडस्ट्री एरिया के तौर पर हुआ करती थी। उस समय यहां मौजूद 100 से ज्यादा कंपनियां एचईसी से मिलने वाले वर्क ऑर्डर की बदौलत चलती थीं। अब ज्यादातर फैक्ट्रीज या तो बंद हो गईं या फिर उनका स्वरूप बदल गया।
बता दें कि लगभग 2100,000 वर्ग मीटर में चल रही कंपनी की स्थापना 31 दिसंबर 1958 को हुई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 15 नवंबर 1963 को एचईसी को राष्ट्र को समर्पित किया था।
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