कोरोना लॉकडाउन से टूटी अर्थव्यवस्था की कमर! देश के करीब 7 लाख छोटी किराना की दुकानें बंद होने की कगार पर

एक आकलन के मुताबिक देश करीब सात लाख छोटी किराना की दुकानें अब हमेशा के लिए बंदी के कगार पहुंच चुकी हैं। यह दुकानें घरों या गलियो में हैं। इसमें करोड़ों लोगों को रोजगार मिला है और उनकी रोजी-रोटी इसी पर टिकी है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया
user

नवजीवन डेस्क

देश में कोरोना वायरस का कहर जारी है। कोरोना वायरस महामारी को रोकने के लिए केंद्र सरकार द्वारा किए गए देशव्यापी लॉकडाउन का अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो रहा है। हालात यह है कि छोटे और बड़े कंपनियों की हालत खराब हो गई है। लेकिन सबसे अधिक मार देश के छोटे किराना दुकानदारों पर पड़ी है।

मीडिया में छपी एक रिपोर्ट में एक आकलन के मुताबिक, देश के करीब सात लाख छोटी किराना की दुकानों पर मार पड़ी है। हालात यह कि ये दुकानें बंदी के कगार पहुंच चुके हैं। इन दुकानों से करोड़ों लोगों को रोजगार जुड़े हुए हैं और उनकी रोजी-रोटी इसी से चलती थी। ये दुकानें घरों या गलियों में हैं।


एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में करीब एक करोड़ छोटे किराना दुकानदार हैं। इन दुकानदारों को सामान को बेचने के लिए सामना लाना पड़ता है। एक करोड़ छोटे किराना दुकानदारों में से करीब छह से सात फीसदी दुकानदार सामान लाने और दुकान तक जाने के लिए सार्वजनिक गाड़ियों को इस्तेमाल करते हैं। लेकिन देश भर पिछले दो महीने से लॉकडाउन के चलते ये अपनी दुकान नहीं जा पा रहे हैं और ना खोल पा रहे हैं। ऐसे में इनके सामने दुकान की पूंजी टूटने की नौबत आ गई है।

लॉकडाउन हटने के बाद भी छोटे किराना दुकानदारों के लिए राह आसान नहीं है। उद्योग विषेषज्ञों का कहना है कि नकदी की किल्लत और ग्राहकों की कमी इनके लिए अब बड़ी चुनौती है। विशेषज्ञों का मानना है कि आमतौर पर किराना दुकानदारों को थोक व्यापारी या उपभोक्ता उत्पाद बनाने वाली कंपनियां सात से 21 दिन यानी दो से तीन हफ्ते की उधारी पर माल देती हैं। अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता होने से सभी डरे हुए हैं जिसकी वजह से उधार पर माल मिलना मुश्किल होगा। ऐसे में इन दुकानों का दोबारा खुलना बहुत मुश्किल होगा।


ऐसा नहीं है कि लॉकडाउन में सिर्फ छोटे किराना दुकानदार परेशान हैं, इस मार से बड़ी कंपनियां भी अछूती नहीं है। छोटी किराना दुकाने बंद होने से बड़ी कंपनियों की परेशानियां भी बढ़ने वाली हैं। निल्सन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में कुल किराना उत्पादों की बिक्री में मूल्य के हिसाब से छोटी किराना दुकानों की हिस्सेदारी 20 फीसदी है।

खुदरा कारोबारियों के संगठन कैट के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने कहा, इन दुकानों पर दूध, ब्रेड,बिस्किट,साबून,शैंपू और कोल्ड ड्रिंक्स के साथ रोजमर्रा के कई उत्पाद बिकते हैं जो ज्यादातर बड़ी कंपनियां बनाती हैं। ऐसे में छोटी किराना दुकानें बंद होने से बड़ी कंपनियों पर भी असर पड़ना तय है। खंडेलवाल का मानना है कि चुनौती जितनी बड़ी दिख रही है उससे कहीं अधिक गंभीर है।

इसे भी पढ़ें: लॉकडाउन में आपकी जेब पर चलेगी कैंची! जून में 4-5 रुपये महंगा हो सकता है पेट्रोल-डीजल, इन राज्यों में बढ़ेंगे दाम

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia


Published: 31 May 2020, 12:08 PM