कानून मंत्री ने राफेल सौदे में लिया रिलायंस इंडस्ट्रीज़ का नाम, कांग्रेस ने कहा, सरासर झूठ, साबित करके दिखाएं
कांग्रेस ने केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के उस दावे को खारिज किया है जिसमें उन्होंने कहा था कि फ्रेंच कंपनी, दसॉल्ट एविएशन ने ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट के लिए मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के साथ 2012 में एक करार किया था।
कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि, "यह सफेद झूठ और सरासर बकवास हैै, वह भी दुर्भाग्यवश रक्षा मंत्रालय और कानून मंत्री द्वारा।"
दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेंस में सुरजेवाला ने कहा कि, "दसॉल्ट एविएशन और मुकेश अंबानी की कंपनी के बीच कभी इस तरह के किसी सहमति पत्र पर हस्ताक्षर नहीं हुए।" उन्होंने कहा कि उनके पास रिकार्ड हैं। सुरजेवाला ने कहा कि, “हम कानून मंत्री और रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण को चुनौती देते हैं कि वे इस तरह का कोई दस्तावेज सार्वजनिक कर के दिखाएं। चूंकि कोई दस्तावेज है ही नहीं, तो झूठ बेनकाब हो जाएगा।"
सुरजेवाला का यह बयान कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद की टिप्पणी के बाद आया है जिसमें उन्होंने दावा किया था कि, “यह दिखाने के लिए सबूत मौजूद हैं कि ऑफसेट साझेदार के रूप में रिलायंस की एक कंपनी का चयन मोदी के प्रधानमंत्री बनने से काफी पहले यूपीए सरकार के दौरान 2012 में ही किया गया था।” उन्होंने कहा, "इस बात का सबूत उपलब्ध है कि दसॉल्ट एविएशन और रिलायंस इंडस्ट्री के बीच एक एमओयू 13 फरवरी, 2013 को हुआ था, यानी हमारे सत्ता में आने से चार महीने पहले।"
रविशंकर प्रसाद ने कहा कि ऑफसेट के नियम यूपीए ने 2012 में बनाए थे और एचएएल की जगह निजी कंपनी को चुनने का पूरा अधिकार दसॉल्ट को था। उन्होंनेआरोप लगाया किा, "वास्तव में यूपीए ने एचएएल को दरकिनार किया।"
कानून मंत्री का बयान ऐसे मौके पर आया जब फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद का बयान सामने आया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि राफेल ऑफसेट करार के लिए निजी कंपनी को भारत सरकार ने सुझाया था।
कांग्रेस नेता सुरजेवाला ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पर हमला बोलते हुए कहा, "सच्चाई यह है कि दसॉल्ट एविएशन और सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के बीच एक वर्क-शेयर अरेंजमेंट हुआ था। और यह दसाल्ट की 2013-14 की वार्षिक रपट से भी साबित हुआ है, जिसमें दसॉल्ट के सीईओ एरिक ट्रेपीयर कहते हैं कि हमारा मुख्य साझेदार एचएएल है।"
उन्होंने कहा कि 10 अप्रैल, 2015 को पीएम मोदी द्वारा 36 राफेल खरीदने की घोषणा के मात्र 17 दिनों पहले 25 मार्च, 2015 को दसॉल्ट के सीईओ ने भारतीय वायुसेना प्रमुख और एचएएल के चेयरमैन की मौजूदगी में कहा था कि एचएएल के साथ बातचीत अंतिम चरण में है और करार को जल्द ही अंतिम रूप दे दिया जाएगा और उसपर हस्ताक्षर हो जाएंगे।
गौरतलब है कि यूपीए सरकार फ्रांस से 126 राफेल विमान खरीदने के लिए बातचीत कर रही थी, जिसमें से 18 तैयार स्थिति में आने थे, और बाकी 108 विमान एचएएल द्वारा विनिर्मित किए जाने थे। लेकिन मौजूदा मोदी सरकार ने एकतरफा ऐलान करते हुए सिर्फ 36 विमानों की खरीद का सौदा किया और राफेल बनाने वाली कंपनी दसॉल्ट के भारतीय साझीदार के रूप में सरकारी कंपनी एचएएल को सौदे से बाहर कर दिया और उसकी जगह अनिल अंबानी की 12 दिन पहले बनी कंपनी रिलायंस डिफेंस को साझीदार बनवा दिया। हालांकि मोदी सरकार के मंत्री बार-बार कह रहे हैं किभारतीय ऑफसेट साझीदार चुनने का अधिकार दसॉल्ट के पास था और इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं है। लेकिन फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वां ओलांद के खुलासे के बाद सारी स्थिति सामने आ गई है।
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
- Narendra Modi Government
- Anil Ambani
- Rafale Deal
- Reliance Defence Limited
- Dassault Aviation
- Rafale Scam
- Corruption in Rafale Deal
- Reliance ADAG
- Reliance Industries