कांग्रेस महाधिवेशन: ‘मोदी सरकार की विदेश नीति दिशाहीन’
कांग्रेस महाधिवेशन में वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने अंतर्राष्ट्रीय प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि केंद्र सरकार की विदेश नीति दिशाहीन है और सरकार दूसरे देशों के साथ भारत के संबंधों को नहीं संभाल पा रही है।
कांग्रेस महाधिवेशन में वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने विदेश नीति पर प्रस्ताव पेश किया, जो सर्वसम्मति से पारित हो गया। विदेश नीति पर प्रस्ताव पेश करते हुए आनंद शर्मा ने मौजूदा विदेश नीति को लेकर कई सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार बड़े देशों के साथ भारत के संबंधों को नहीं संभाल पा रही है। उन्होंने केंद्र सरकार की विदेश नीति को दिशाहीन करार दिया। आनंद शर्मा ने कहा कि केंद्र सरकार पाकिस्तान, चीन और दूसरी चुनौतियों से निपटने में नाकाम रही है। विदेश नीति को लेकर भ्रम की स्थिति है और इसमें दृष्टि और दिशा का अभाव है।
आनंद शर्मा ने कहा कि विदेश नीति हमेशा मजबूत राष्ट्रीय सहमति के साथ तालमेल बैठाकर चलती रही है, लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि बीजेपी सरकार ने इसे बाधित किया है और उसके गलत कदम ने राष्ट्रीय सहमति को भंग कर दिया है।
आनंद शर्मा ने पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और नरसिंह राव के समय की विदेश नीति की तारीफ की। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी द्वारा पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों की उपेक्षा करने और आजादी के बाद भारत की उपलब्धियों को झुठलाने की वजह से विदेशों में भारत की साख घटी है।
उन्होंने यह भी कहा कि पीएम मोदी ने अब तक व्यक्तिगत विदेश नीति पर अमल किया है। आनंद शर्मा ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार की विदेश नीति पीएम मोदी के विदेश दौरों और सिर्फ लेन-देन तक ही सीमित रह गई है और मौजूदा विदेश नीति की समीक्षा की जानी चाहिए।
चीन के साथ संबंधों के मसले पर आनंद शर्मा ने कहा, “भारत और चीन के बीच एक मुश्किल और बहुत ही सावधानी से बरता जाना वाला संबंध कायम है, क्योंकि चीन एक बड़ा पड़ोसी मुल्क है और एक महत्वपूर्ण व्यापारिक सहयोगी भी है।” उन्होंने कहा कि चीन के प्रति हमारे रवैये में सिर्फ व्यवहारवाद ही नहीं होना चाहिए, बल्कि इसमें सच्चाई भी झलकनी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि सरकार की यह कोशिस होनी चाहिए कि दोनों देशों के बीच मौजूद विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से हल किया जाए।
कांग्रेस महाधिवेशन में पेश किए गए अंतर्राष्ट्रीय प्रस्ताव की अहम बातें:
- रूस: भारत और रूस के बीच समझौते कमजोर पड़ रहे हैं। दोनों देशों के बीच के रिश्ते मात्र औपचारिकता के लिए नहीं होने चाहिए।
- अफ्रीका: अफ्रीका को लेकर केंद्र सरकार की नीति कमजोर है। बीजेपी सरकार संसाधन-समृद्ध और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण अफ्रीका के साथ जुड़ने में नाकाम रही है।
- चीन: चीन के प्रति हमारे रवैये में सिर्फ व्यवहारवाद ही नहीं होना चाहिए, बल्कि इसमें सच्चाई भी झलकनी चाहिए। दोनों देशों के बीच मौजूदा विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से हल किया जाए।
- पाकिस्तान: भारत के लिए पाकिस्तान लगातार बड़ी चुनौती बना हुआ है। पाकिस्तान से निपटने के लिए केंद्र सरकार के पास कोई असरदार नीति नहीं हैं।
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