योगीराज में झूठ का साम्राज्य : मुआवजों से सामने आ गया कोविड से मौतों की संख्या का सच

उत्तर प्रदेश सरकार कोरोना से जितनी मौतें स्वीकार कर रही है, उससे कहीं अधिक मुआवजा बांट रही है। बीते 31 मार्च तक यूपी के 75 जिलों के 41 हजार से अधिक लोगों को 50-50 हजार का मुआवजा दिया जा चुका है।

फाइल फोटो : Getty Images
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के संतोष

ऑक्सीजन की कमी के कारण उखड़ती सांसों और अस्पतालों में दुश्वारियों के बीच कोरोना से हुई मौतों पर घिरी सरकार अब विश्व स्वास्थ्य संगठन के आकड़ों को लेकर सफाई दे रही है। लेकिन खुद सरकार के आंकड़े ही उसे सवालों में घेर रहे हैं। योगी आदित्यनाथ सरकार के अधिकारी कोरोना से अधिकारिक मौतों का जो आंकड़ा बता रहे हैं, सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद परिवारीजनों को दिए जा रहे 50-50 हजार के मुआवजे के आंकड़े उन्हें ही ‘झूठा’ साबित कर रहे हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में कोरोना से 40 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई है। लेकिन देश में सरकार का आकड़ा सिर्फ 5.22 लाख मौतों का है। 25 करोड़ की आबादी वाले यूपी में पहली और दूसरी लहरों में अस्पतालों से लेकर श्मशान घाटों तक दुश्वारियों के बाद भी सरकार 23,501 मौतों को ही स्वीकार रही है। लेकिन सरकार ने बीते 3 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में जो डाटा दिया था, उसके मुताबिक, यूपी में मौतें तो हुईं 23,073 लोगों की लेकिन मुआवजे दिए गए 29,622 लोगों को जबकि आवेदनों की संख्या 37,007 है। यानी सरकार कोरोना से जितनी मौतें स्वीकार कर रही है, उससे कहीं अधिक मुआवजा बांट रही है। बीते 31 मार्च तक यूपी के 75 जिलों के 41 हजार से अधिक लोगों को 50-50 हजार का मुआवजा दिया जा चुका है।

कोरोना से हुई मौतों के आकड़ों में यूपी की राजधानी लखनऊ से लेकर लखीमपुर और गोरखपुर से गाजियाबाद तक लोग घनचक्कर बने हुए हैं। लखनऊ में प्रशासन कोरोना संक्रमण से सिर्फ 2,386 मौतों की बात कर रहा है। लेकिन आपदा विभाग 4,789 परिवारों को 50-50 हजार रुपये की मदद जारी कर चुका है। अभी नए वित्तीय वर्ष में आए 600 से अधिक आवेदन लंबित हैं। इसी तरह गोरखपुर में प्रशासन कोरोना से सिर्फ 858 मौतें ही स्वीकार रहा है जबकि 31 मार्च तक 1,838 परिवारों को मुआवजा खाते में ट्रांसफर किया जा चुका है। यहां आपदा विभाग के जुड़े अधिकारी गौतम गुप्ता का कहना है कि ‘20 मार्च तक कोरोना से मरे लोगों के परिजन 20 मई तक भी आवेदन कर देंगे तो उन्हें 50 हजार का मुआवजा ट्रांसफर कर दिया जाएगा। नए वित्तीय वर्ष में 38 आवेदन आए हैं।’


यह स्थिति तब है जब कई जिलों में मौतों का दस्तावेज ही जिम्मेदारों ने गायब कर दिया है। कानपुर और आसपास के जिलों में डेथ ऑडिट नहीं होने से मौतों का आंकड़ा अभी तक साफ नहीं हो सका है। कानपुर के जीएसवीएस मेडिकल कॉलेज हैलट में हुई मौतों का आंकड़ा ही शासन को भेज सका है। पिछले साल 630 मौतों का रिकार्ड गायब होने पर खूब हंगामा मचा था। इसमें शहर में हुई 407 और आसपास के कन्नौज, कानपुर देहात, उन्नाव और फर्रुखाबाद के निजी अस्पतालों में हुई मौतों के आंकड़े शामिल है।

मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य प्रो. संजय काला ने नर्सिंग होम को नोटिस भी दिया लेकिन आंकड़े सामने नहीं आ सके हैं। प्रशासन के आकड़े के मुताबिक, कानपुर में 1,923 मौतें हुई थीं। इसके साथ ही उन्नाव-फतेहपुर, कानपुर देहात, कन्नौज के निजी अस्पतालों में 2,000 से अधिक मौतें हुईं। लेकिन डेथ ऑडिट टीम को 172 के दस्तावेज अभी तक नहीं मिले हैं। इससे इनके परिजनों को 50-50 हजार रुपये की मदद भी नहीं मिल सकी है। डेथ ऑडिट टीम के नोडल अधिकारी प्रो. एस के गौतम ने निजी अस्पतालों को नोटिस दिए हैं लेकिन वहां से आंकड़े नहीं मिल पाए हैं। प्रयागराज में अधिवक्ता राहुल खरे प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़े करते हैं। उनका कहना है कि ‘अभी तो कई सच्चाई सामने आनी है।

फाफामऊ घाट पर बीते वर्ष अप्रैल में एक ही दिन पुलिस रजिस्टर में दाह संस्कार के दो आंकड़े दर्ज हुए। पहली बार 131 लोगों का दाह संस्कार होना बताया गया तो दूसरी बार 126 लोगों के अंतिम संस्कार की बात लिखी गई जबकि इसी तारीख में स्वास्थ्य विभाग के आकड़े के मुताबिक, सिर्फ 11 लोगों की मौत हुई।’ प्रयागराज में कांग्रेस के प्रवक्ता हसीब अहमद ने इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र भी लिखा था। वाराणसी में लंबे समय से हेल्थ की रिर्पोटिंग करने वाले रबीश कुमार का कहना है कि ‘गंगा में उतराती अधजली लाशों और अस्पतालों में बेबसी की तस्वीरों से मेल खाते आंकड़े अब कुछ हद तक सामने आ रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि सरकार के पहले के आकड़े गलत हैं या फिर प्रशासन के लोग भ्रष्टाचार कर गलत लोगों को मुआवजा दे रहे हैं।’


सरकारी कर्मचारियों के मुआवजे

यूपी सरकार के मुताबिक, 2,128 सरकारी कर्मचारियों की ड्यूटी के दौरान मौत हुई है, हालांकि पहले सरकार मौतों के आकड़ों को झुठला रही थी। सरकार का कहना था कि चुनाव ड्यूटी में 74 कर्मचारियों की मौत हुई है। इसके बाद उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक महासंघ के अध्यक्ष डॉक्टर दिनेश चंद्र शर्मा ने 706 शिक्षकों की सूची सार्वजनिक की थी। बाद में अपर मुख्य सचिव (पंचायती राज) मनोज कुमार सिंह को बयान जारी कर स्वीकारना पड़ा कि कोविड से ड्यूटी पर मौत को लेकर संशोधित प्रोटोकॉल के तहत 3,092 आवेदन प्राप्त हुए थे जिनमें 2,020 मामलों को मुआवजे के लिए सही माना गया है। हालांकि अभी भी सरकार फ्रंट लाइन वर्करों को मुआवजा देने में लंगड़ी मार रही है। गोरखपुर में 8 फ्रंट लाइन वर्करों के परिजनों को अभी तक 50-50 लाख रुपये की मदद नहीं मिल सकी है। दावों के उलट सिर्फ 4 परिवारों को ही 50-50 लाख की मदद मिली है।

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