जलवायु परिवर्तन का कहर, 2050 तक अरब सागर में डूब जाएंगे मुंबई के कई हिस्से

बाढ़ लोगों को विभिन्न तरीकों से प्रभावित करेगी और मुंबई वैश्विक 20 शहरी केंद्रों के 13 एशियाई शहरों में एक है, जो आईपीसीसी के अनुसार, बाढ़ के कारण भारी नुकसान झेलेगी। अगर मुंबई नीचे जाती है, तो इसका असर महाराष्ट्र के बाकी हिस्सों पर भी पड़ेगा।

फोटोः IANS
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नवजीवन डेस्क

देश की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई को उन 12 तटीय शहरों में सूचीबद्ध किया गया है, जो बढ़ते समुद्र के स्तर के साथ ग्लोबल वार्मिंग का सामना करेंगे। दक्षिण मुंबई के कई हिस्सों के 2050 तक अरब सागर में 'डूबने' की भविष्यवाणी की गई है। इसका भारी आर्थिक प्रभाव भी पड़ेगा। विशेषज्ञ और हाल के अध्ययनों ने यह संकेत दिया है। साल 2021 में जारी इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की छठी आकलन रिपोर्ट (एआर 6) के अनुसार, न केवल मुंबई बल्कि महाराष्ट्र के भीतरी इलाकों के बड़े हिस्से भी बढ़ते पारा से तबाह हो सकते हैं। अन्य बातों के अलावा, आईपीसीसी ने आगामी तटीय सड़क परियोजना, समुद्र के बढ़ते स्तर और बाढ़ से क्षति को लेकर सवाल उठाए हैं।

जलवायु वैज्ञानिकों में से एक डॉ अंजल प्रकाश ने, जिन्होंने आईपीसीसी के भयानक पूवार्नुमानों को लिखा है, अगले तीन दशकों में शहर में समुद्र के स्तर का नुकसान 50 अरब डॉलर तक पहुंचने और 2070 तक लगभग तिगुना होने का अनुमान लगाया है और एक अन्य अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि 2050 तक प्रति वर्ष केवल मुंबई की लागत 162 बिलियन डॉलर होगी। बाढ़ लोगों को विभिन्न तरीकों से प्रभावित करेगी और मुंबई वैश्विक 20 शहरी केंद्रों के 13 एशियाई शहरों में से एक है, जो आईपीसीसी के अनुसार, बाढ़ के कारण भारी नुकसान झेलेगा।
प्रकाश ने कहा कि अगर मुंबई नीचे जाती है, तो इसका असर महाराष्ट्र के बाकी हिस्सों पर भी पड़ेगा।

जलवायु परिवर्तन का कहर, 2050 तक अरब सागर में डूब जाएंगे मुंबई के कई हिस्से
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रिपोर्ट के अनुसार समुद्र के स्तर में औसत वृद्धि 1.3 मिमी (1901-1971), 1.9 मिमी (1971-2006) और अब लगभग दोगुना 3.7 मिमी (2006-2018) प्रति वर्ष दर्ज की गई है। इसके अलावा समुद्र की सतह के उच्च तापमान, अत्यधिक वर्षा की घटनाएं, तेजी से शहरीकरण, आद्र्रभूमि का विनाश, वनस्पति की हानि और इसी तरह की अन्य वृद्धि हुई है। ये पूर्वी महाराष्ट्र, विशेष रूप से चंद्रपुर में गर्मी की लहरों और सूखे को ट्रिगर करेंगे, जिसमें पिछले साल 48 सेल्यिस तापमान दर्ज किया गया था। साथ ही, 2019 और बाद में मुंबई, कोल्हापुर, पुणे, सांगली और विदर्भ के कुछ हिस्सों में बाढ़ आई थी। इनमें से कम से कम 40 लोगों की जान गई, 28,000 लोगों को निकाला गया, 400,000 हेक्टेयर कृषि भूमि को नुकसान पहुंचा। 2019 में 92,000 लोग प्रभावित हुए, 53,000 को बचाया गया, विदर्भ में 2020 में लगभग 90,000 हेक्टेयर फसल भूमि नष्ट हो गई।

अकेले खतरनाक चक्रवात तूफान तौकता (मई 2021) ने 21 लोगों की जान ले ली, 2,542 इमारतों को क्षतिग्रस्त कर दिया। मुंबई हवाई अड्डे को लगभग 12 घंटे के लिए बंद करना पड़ा। तटीय कोंकण क्षेत्र में भारी तबाही मची। डॉ प्रकाश ने कहा, महाराष्ट्र में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए मुख्य दोषी ऊर्जा और बिजली क्षेत्र (48 प्रतिशत), उद्योग (31 प्रतिशत), परिवहन (14 प्रतिशत), घरेलू ईंधन (3 प्रतिशत), कृषि (2 प्रतिशत) और अन्य कारण हैं।

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यदि आईपीसीसी की 2सी-2.5सी डिग्री तक ग्लोबल वार्मिंग की भविष्यवाणी सच साबित होती है, तो यह महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्रों को बुरी तरह प्रभावित करेगी, जिसमें मुंबई और कोंकण तट के जलमग्न हिस्से, विदर्भ में अत्यधिक सूखा और बड़े जंगल की आग ग्रीनहाउस उत्सर्जन में वृद्धि करेगी। अब तक, नांदेड़, बीड, जालना, औरंगाबाद, नासिक और सांगली जिले चरम मौसम से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं और 2021 तक मुआवजे में 1,000 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान किया गया है।

राज्य पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, राज्य ने 2016 से 35 जिलों में जलवायु परिवर्तन से संबंधित बाढ़, ओलावृष्टि, चक्रवात, बेमौसम बारिश के नुकसान के शिकार लोगों को 21,068 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, हालांकि सूखे से संबंधित मुआवजे के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। सबसे अधिक दुष्प्रभाव अत्यधिक बारिश/बाढ़ (39 फीसदी), बेमौसम बारिश (35 फीसदी), चक्रवात (14 फीसदी), सूखे/ओलावृष्टि (12 फीसदी) के कारण हैं, जो लगभग सभी जिलों को प्रभावित कर रहे हैं। सूखे की घटनाओं में तेजी आई है। सूखे की घटनाएं 11 प्रतिशत (1970) से बढ़कर 17 प्रतिशत (1990) और 2020 तक 79 प्रतिशत हो गईं, जिससे राज्य पर भारी असर पड़ा।

डॉ प्रकाश ने चेतावनी दी है कि मुंबई में समुद्र के स्तर में वृद्धि, तूफानी लहरों, तूफानी मौसम और समुद्र की सतह के बढ़ते तापमान, सभी 'उच्च जोखिम वाले कारकों' के साथ मिलकर चक्रवातों से बहुत प्रभावित होगा। वैज्ञानिक ने कहा, इन परिवर्तनों के अनुकूल होने के लिए, मुंबई और अन्य तटीय महानगरों को हरे और नीले बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की आवश्यकता होगी। हरित बुनियादी ढांचे का तात्पर्य शहरी हरियाली, जैव विविधता संरक्षण, शहर के मैंग्रोव और स्थलीय हरित आवरण में सुधार आदि से है, जबकि नीले बुनियादी ढांचे को शहर में जल निकायों, कैस्केडिंग झील प्रणालियों, नदी, धाराओं की रक्षा और समृद्ध करने की आवश्यकता होगी।

आईपीसीसी के बारे में बोलते हुए, बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के प्रमुख आई.एस. चहल ने चेतावनी दी थी कि 2050 तक, दक्षिण मुंबई के प्रमुख ए, बी, सी, डी वाडरें का लगभग 80 प्रतिशत जिसमें कफ परेड, कोलाबा, नरीमन पॉइंट, चर्चगेट, किला जैसे पॉश आवासीय और वाणिज्यिक जिले शामिल हैं, जलमग्न हो जाएंगे। इसके अलावा, मरीन ड्राइव, गिरगांव, ब्रीच कैंडी, उमरखादी, मोहम्मद अली रोड, जो अपने वार्षिक रमजान खाद्य बाजारों के कारण विश्व प्रसिद्ध है और आसपास के क्षेत्र भी जलवायु परिवर्तन के कारण काफी प्रभावित होंगे। फरवरी 2021 में, मैकिन्से इंडिया ने एक रिपोर्ट में कहा था कि 2050 तक, मुंबई में बाढ़ की तीव्रता में 25 प्रतिशत की वृद्धि देखी जाएगी, साथ ही समुद्र के स्तर में आधा मीटर की वृद्धि होगी, जो शहर के समुद्र तट के एक किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लगभग दो-तीन मिलियन लोगों को प्रभावित कर सकता है।

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