हत्या का दावा, महिला पहलवानों के गंभीर आरोप, फिर भी क्यों बृजभूषण शरण सिंह को बचाने में लगी है बीजेपी? जानें
अनुशासन पर दृढ़ रहने का दावा करने वाली बीजेपी ने फिलहाल बृजभूषण शरण सिंह के व्यवहार को लेकर आखें मूंद ली हैं। 2011 में डब्ल्यूएफआई के अध्यक्ष के रूप में पदभार संभालने से बहुत पहले सिंह अपनी बाहुबली वाली छवि के लिए जाने जाते थे।
बृजभूषण शरण सिंह इन दिनों महिला पहलवानों के लागाए आरोपों के कारण चर्चा में हैं। उन्होंने जो 'अजेयता की ढाल' पहन रखी है, वह उन्हें उत्तर प्रदेश के आधा दर्जन लोकसभा क्षेत्रों में उनके दबदबे के कारण मिली हुई है। एक बात यह भी है कि बीजेपी के कई अन्य सांसदों की तुलना में संतों के साथ उनके मजबूत संबंध हैं और अयोध्या में राम मंदिर के लिए चले आंदोलन में उनकी निभाई हुई भूमिका भी उन्हें मजबूत बनाती है। पूर्वी यूपी में उनके दर्जनों शैक्षणिक संस्थान हैं, जो उनके वोट बैंक को जोड़ते हैं।
इसके अलावा, चल रहे नगरपालिका चुनावों ने एक ऐसा माहौल बनाया है जो छह बार के सांसद के पक्ष में काम करता है। इस समय महिला पहलवानों के लगाए यौन उत्पीड़न के आरोपों को लेकर वह विवादों में हैं। सिंह भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष हैं और पहलवान इन दिनों उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरने पर बैठे हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली पुलिस ने सिंह के खिलाफ दो मामले दर्ज किए हैं।प्राथमिकी में से एक नाबालिग लड़की की दी हुई यौन उत्पीड़न की लिखित शिकायत पर है, जो कड़े यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के तहत दर्ज की गई है, जिसमें जमानत की कोई गुंजाइश नहीं है।
फिर भी दिल्ली पुलिस ने सिंह को गिरफ्तार करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया है। सिंह जोर देकर कहते हैं कि वह जांच का सामना करेंगे, लेकिन 'अपराधी के रूप में' इस्तीफा नहीं देंगे।
अनुशासन पर दृढ़ रहने का दावा करने वाली बीजेपी ने फिलहाल उनके व्यवहार को लेकर आखें मूंद ली हैं। 2011 में डब्ल्यूएफआई के अध्यक्ष के रूप में पदभार संभालने से बहुत पहले सिंह अपनी बाहुबली वाली छवि के लिए जाने जाते थे।
अयोध्या आंदोलन में एक प्रमुख खिलाड़ी रहे सिंह को उस समय उत्तर प्रदेश में बीजेपी के लिए वन-मैन आर्मी के रूप में जाना जाता था, जब पार्टी की राज्य में राजनीतिक मंच पर मौजूदगी कम थी।
सन् 1957 में गोंडा में जन्मे सिंह की राजनीति में दिलचस्पी सत्तर के दशक में एक कॉलेज छात्र नेता के रूप में शुरू हुई। उन्होंने प्रतिशोध के साथ राजनीति में प्रवेश किया, जब बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी अयोध्या आंदोलन के दौरान गोंडा आए थे।
सिंह ने आडवाणी के रथ को 'ड्राइव' करने की पेशकश की और इसने उन्हें बीजेपी के भीतर तुरंत प्रसिद्धि दिलाई। सिंह ने अपना पहला चुनाव 1991 में गोंडा से राजा आनंद सिंह को हराकर जीता था। अगले वर्ष उन्हें बाबरी विध्वंस मामले में एक अभियुक्त के रूप में नामित किया गया, जिसने उनकी 'हिंदू समर्थक छवि' को मजबूत किया। उन्हें 2020 में अन्य लोगों के साथ बरी कर दिया गया था।
सिंह गोंडा, बलरामपुर और कैसरगंज से छह बार लोकसभा के लिए चुने जा चुके हैं और अपनी राजनीतिक सूझबूझ से कहीं ज्यादा उन्हें क्षेत्र के माफिया के रूप में जाना जाता रहा है। एक समय सिंह पर तीन दर्जन से अधिक आपराधिक मामले दर्ज थे।
1996 में उन पर अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के साथियों को पनाह देने का आरोप लगा था। उस पर आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (टाडा) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया और उसे जेल भेज दिया गया। बाद में मुख्य रूप से सबूतों की कमी के कारण उन्हें मामले में बरी कर दिया गया था।
वर्ष 1996 में जब वह जेल में थे, तब बीजेपी ने उनकी पत्नी केतकी सिंह को लोकसभा का टिकट दिया और वह बड़े अंतर से जीतीं। दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी ने सिंह को हमेशा 'पर्याप्त राजनीतिक संरक्षण' दिया है, मुख्यत: पूर्वी यूपी और राजपूतों के बीच उनके दबदबे के कारण।
पार्टी नेतृत्व जानता है कि अगर उसने सिंह को बाहर का दरवाजा दिखाया तो उसे सीटों का नुकसान होगा। सदी के अंत के बाद ही सिंह का दबदबा बढ़ा है और इसलिए उनकी धन शक्ति भी बढ़ी है।
उनकी बेशर्मी इस बात से जाहिर होती है कि उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनावों के दौरान सिंह ने एक टीवी चैनल को दिए एक साक्षात्कार में स्वीकार किया कि उन्होंने एक हत्या की थी - ऐसा कुछ, जिसे सबसे खूंखार अपराधी भी कैमरे के सामने स्वीकार नहीं करता है।
सिंह ने साक्षात्कार में कहा कि उन्होंने उस व्यक्ति को गोली मारी, जिसने रवींद्र सिंह की हत्या की थी। उन्होंने कहा, "मैंने रवींद्र सिंह को गोली मारने वाले व्यक्ति को धक्का देकर मार डाला।"
इससे पहले, 2009 में सिंह कुछ समय के लिए बीजेपी से अलग हो गए थे और सपा में शामिल हो गए थे, लेकिन 2014 में लोकसभा चुनाव से पहले वह बीजेपी में वापस आ गए। बीजेपी में जैसे-जैसे उनका कद बढ़ा, वैसे-वैसे उनका 'कारोबार' भी फलता-फूलता गया।
वह लगभग 50 स्कूलों और कॉलेजों के मालिक हैं और शराब के ठेकों, कोयले के कारोबार और रियल एस्टेट में दबंगई के अलावा खनन में भी उनकी दिलचस्पी है। सिंह हर साल अपने जन्मदिन पर छात्रों और समर्थकों को मोटरसाइकिल, स्कूटर और पैसे उपहार में देने के लिए जाने जाते हैं।
2011 में डब्ल्यूएफआई प्रमुख के रूप में उनकी नियुक्ति ने उनके 'वजन' को और बढ़ा दिया।
चूंकि यूपी में नगर निकाय चुनाव पहले से ही चल रहे हैं, बीजेपी जानती है कि इस शक्तिशाली सांसद के खिलाफ कोई भी कार्रवाई पार्टी हितों के लिए हानिकारक होगी।
इसके अलावा, लोकसभा चुनाव कुछ ही महीने दूर हैं, इसलिए बीजेपी सिंह को निशाना नहीं बना सकती। वह राज्य की राजनीति में अधिक प्रभावशाली ठाकुर नेता हैं, भले ही योगी आदित्यनाथ की भी पहचान ठाकुर नेता के रूप में है।
मामला सुप्रीम कोर्ट में चले जाने से असमंजस में फंसी बीजेपी के लिए बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ किसी भी कार्रवाई से बचने के लिए ये कारण काफी हैं।
आईएएनएस के इनपुट के साथ
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