सीजेआई चंद्रचूड़ और पीएम मोदी की मुलाकात पर तीखी प्रतिक्रियाएं: क्या जजों की आचरण संहिता का उल्लंघन हुआ!

क्या जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूजा का निमंत्रण प्रधानमंत्री मोदी या अन्य लोगों को भेजा था। या पीएम स्वंय ही पूजा में शामिल होने पहुंचे थे। इसकी जानकारी सामने नहीं आई है। लेकिन लेकिन कार्यपालिका और न्यायपालिका के इस मेल से कुछ सवाल उठना स्वाभाविक है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार शाम चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के घर जाकर गणपति पूजा में शामिल हुए
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार शाम चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के घर जाकर गणपति पूजा में शामिल हुए
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नवजीवन डेस्क

"एक न्यायाधीश को अपने पद की गरिमा के अनुरूप एक हद तक अलगाव का अभ्यास करना चाहिए। उसके द्वारा ऐसा कोई कार्य या चूक नहीं होनी चाहिए जो उसके उच्च पद और उस सार्वजनिक सम्मान के प्रतिकूल हो जिसके लिए वह पद धारण करता है।" कोड ऑफ कंडक्ट फॉर जजेस (न्यायाधीशों के लिए आचरण संहिता) के इस हिस्से को उद्धत करते हुए वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने यह टिप्पणी उस वीडियो और खबर पर की है जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के घर पर गणपति पूजा को लेकर सार्वजनिक हुई है।

कल (बुधवार) देर शाम सार्वजनिक हुए एक वीडियो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के घर पर आयोजित गणपति पूजा में शामिल होते हुए दिखे हैं। वीडियो में चीफ जस्टिस और उनकी पत्नी प्रधानमंत्री का स्वागत करते हुए और बाद में साथ में पूजा करते हुए नजर आ रहे हैं। प्रधानमंत्री ने खुद इस वीडियो को अपने निजी एक्स हैंडल पर शेयर करते हुए मराठी में लिखा है “मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ जी के आवास पर गणेश पूजा में शामिल हुआ। भगवान गणेश हम सभी को सुख, समृद्धि और अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करें।”

लेकिन प्रधानमंत्री का चीफ जस्टिस के घर पर आयोजित निजी कार्यक्रम में शामिल होने पर तमाम किस्म की टिप्पणियां सामने आ रही हैं। मशहूर वकील और एक्टिविस्ट प्रशांत भूषण ने इस मामले में सवाल उठाए हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर, उन्होंने लिखा, "न्यायाधीशों के लिए आचार संहिता: एक न्यायाधीश को अपने पद की गरिमा के अनुरूप एक हद तक अलगाव का अभ्यास करना चाहिए। उसके द्वारा ऐसा कोई कार्य या चूक नहीं होनी चाहिए जो उसके उच्च पद और उस पद के प्रति सार्वजनिक सम्मान के प्रतिकूल हो"

उन्होंने कहा कि, “मैं इस बात से हैरान हूं कि सीजेआई चंद्रचूड़ ने मोदी को निजी मुलाकात के लिए अपने आवास पर आने की अनुमति दी। इससे न्यायपालिका के लिए एक बहुत बुरा संकेत निकला है क्योंकि न्यायपालिका का काम कार्यपालिका से नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना और यह सुनिश्चित करना है कि सरकार संविधान के दायरे में काम करे। इसलिए कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच एक दूरी होनी चाहिए।“


जानी मानी वकील इंदिरा जयसिंह ने भी इस मुलाकात पर टिप्पण की है। उन्होंने लिखा है कि, “चीफ जस्टिस ने न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच शक्तियों के पृथक्करण यानी सेपरेशन ऑफ पॉवर्स से समझौता किया है। इससे मुख्य न्यायाधीश से भरोसा उठ गया है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन को इसकी सार्वजनिक निंदा करनी चाहिए क्योंकि इससे मुख्य न्यायधीश की स्वतंत्रता पर असर पड़ा है।”

सवाल यह भी उठ रहे हैं कि सीजेआई और प्रधानमंत्री के बीच सार्वजनिक हुईं नजदीकियां क्या आने वाले वक्त में कोई गुल खिलाएंगी। सीजेआई चंद्रचूड़ इसी साल नवंबर में रिटायर होने वाले हैं, तो कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या चंद्रचूड़ भी पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई वाला कोई अध्याय दोहराने वाले हैं?

कुल टिप्पणीकारों ने लिखआ है कि संविधान में बताई गई शक्तियों के पृथक्करण (सैपरेशन ऑफ पॉवर्स) की सीमारेखा इस मुलाकात के बाद टूट गई है। इसके लिए प्रधानमंत्री से कहीं अधिक चीफ़ जस्टिस को सतर्क रहना चाहिए था। इन तस्वीरों और वीडियो के सामने आने के बाद क्या अब न्यायपालिका की स्वतंत्रता की बात पर यकीन हो पाएगा?

इस मुलाकात पर शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के नेता संजय राउत ने कहा है कि अगर संविधान का रक्षण राजनेताओं से मिलता है तो मन में संदेह पैदा होता ही है। उन्होंने कहा कि, "गणपति उत्सव चल रहा है, लोग एक दूसरे के घर जा रहे हैं। मुझे इस बारे में जानकारी नहीं है कि प्रधानमंत्री अब तक कितने घरों में गए हैं...लेकिन प्रधानमंत्री मुख्य न्यायाधीश के घर गए और उन्होंने साथ में आरती की...अगर संविधान का संरक्षक राजनेताओं से मिलता है, तो इससे लोगों के मन में संदेह पैदा हो सकता है।"

उन्होंने आगे कहा कि, "महाराष्ट्र का हमारा मामला...सीजेआई चंद्रचूड़ के समक्ष सुनवाई चल रही है, इसलिए हमें संदेह है कि हमें न्याय मिलेगा या नहीं, क्योंकि प्रधानमंत्री इस मामले में दूसरी पार्टी हैं। मुख्य न्यायाधीश को इस मामले से खुद को दूर कर लेना चाहिए, क्योंकि मामले में दूसरी पार्टी के साथ उनके संबंध खुले तौर पर दिखाई देते हैं। क्या सीजेआई चंद्रचूड़ ऐसी स्थिति में हमें न्याय दे पाएंगे?"


संजय राउत के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और हाल ही में बीजेपी से राज्यसभा सदस्य चुने गए मनन मिश्रा ने कहा कि, "संजय राउत एक अनुभवी नेता हैं। जो लोग कुछ मुकदमों में जुड़े हैं, वे थोड़ा विरोध करेंगे...उन्हें पता है कि इससे सुप्रीम कोर्ट के किसी फैसले पर कोई असर नहीं पड़ेगा, यह एक सामाजिक-धार्मिक समारोह था। प्रधानमंत्री वहां गए, पूजा-अर्चना की और फिर लौट गए। अगर कोई अलग तरह की मुलाकात होती, तो वह गोपनीय तरीके से होती। वे फेसटाइम या व्हाट्सएप पर बात करते। लेकिन इन मुलाकातों का मजाक उड़ाया जा रहा है...न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच अच्छे समन्वय की सराहना करने के बजाय इस पर विरोध किया जा रहा है..."

हालांकि ऐसे लोग भी हैं जो इस मुलाकात को अधिक महत्व नहीं देना चाहते। बीजेपी और सरकार की खुलकर आलोचना करने वाले पत्रकार अशोक वानखेड़े ने इस मुलाकात पर सधी हुई टिप्पणी की है। उन्होंने लिखा है कि, “मुझे लगता है किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के पहले थोड़ा इंतजार करना होंगा। जब आप गणपती की स्थापना करते है तो किसी को पुजा मे आने के लिए मना नही कर सकते...मोदी ऐसे हथकंडो मे माहिर हैं.. मैं इन दिनो बीजेपी के कई बड़े नेताओं के घर पूजा के लिए गया ... लेकिन मेरे काम पर उसका असर नही है...।”

लेकिन दो अति महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों पर आसीन दो शख्सियतों की सार्वजनिक तौर पर निजी मुलाकात को सामान्य तो नहीं ही कहा जा सकता, क्योंकि ऐसी न तो कोई साधारण या नियमित प्रथा है और न ही हाल-फिलहाल में ऐसा कोई उदाहरण।


फिलहाल यह जानकारी नहीं है कि क्या जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस उतस्व का निमंत्रण प्रधानमंत्री मोदी या अन्य लोगों को भेजा था। या प्रधानमंत्री स्वंय ही पूजा में शामिल होने पहुंचे थे। निजी आस्था से किसी को कोई दिक्कत भी नहीं है, लेकिन कार्यपालिका और न्यायपालिका के इस मेल से कुछ सवाल उठना स्वाभाविक है।

सवाल इसलिए क्योंकि ऐसे वक्त में जब संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता, स्वतंत्रता और गरिमा पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं, उनमें सरकारी हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है, चारों तरफ से इस बाबत आवाजें उठ रही हैं, संवैधानिक पदों और न्याय की ऊंची-ऊंची कुर्सी पर बैठे लोग आर एस एस और बीजेपी से निकटता का खुलेआम ऐलान कर रहे हैं, फैसले तथ्यों के आधार पर नहीं बल्कि भावनाओं के आधार पर लिखे जा रहे हैं। तब गणपति पूजा के अवसर पर प्रधानमंत्री का सीजेआई के घर जाना खटकता है। तटस्थता और शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत तार तार होता दिखता है।

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