Chandrayaan 3: 'ISRO की सफलता के पीछे आत्मनिर्भरता है मुख्य वजह, नेहरू युग में साइंस-टेक्नोलॉजी की रखी गई थी मजबूत नींव'

जयराम रमेश ने कहा कि ISRO की सफ़लता के पीछे की जिस मुख्य वजह को नहीं पहचाना जा रहा है, वो ये है कि पहले दिन से ही नेहरू ने आत्मनिर्भरता पर ज़ोर दिया था। जबकि दिल्ली में कुछ आवाज़ें थीं जो अधिक अमेरिकी भागीदारी की वकालत कर रही थीं।

ISRO की सफलता के पीछे आत्मनिर्भरता मुख्य वजह है।
ISRO की सफलता के पीछे आत्मनिर्भरता मुख्य वजह है।
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नवजीवन डेस्क

देश समेत पूरी दुनिया में चंद्रयान-3 मिशन की कामयाबी की चर्चा हो रही है। दुनियाभर से बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है। केंद्र की बीजेपी सरकार चंद्रयान-3 मिशन की कामयाबी का श्रेय लेने में जुटी हुई है। लेकिन इस कामयाबी की असल कहानी कब लिखी गई? चंद्रयान-3 मिशन की कामयाबी के पीछे असल हाथ किसका है, आज इसके बारे में भी चर्चा करने की जरूरत है।

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने चंद्रायन-3 मिशन की कामयाबी के पीछे पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की सोच और और उनकी अत्मनिर्भता नीति को सराहा है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, “पाकिस्तानी मीडिया में ISRO की शानदार उपलब्धियों पर काफ़ी टिप्पणी की गई है। वहां इस तथ्य को लेकर दुःख जताया गया है कि पाकिस्तान की अंतरिक्ष एजेंसी SUPARCO की स्थापना 1961 के अंत में ही हो गई थी। जबकि भारत में INCOSPAR की स्थापना उसके बाद 1962 के फरवरी महीने में हुई थी। फिर भी दोनों की उपलब्धियों में ज़मीन-आसमान का अंतर है।”

जयराम रमेश ने कहा, “ISRO की सफ़लता के पीछे की जिस मुख्य वजह को नहीं पहचाना जा रहा है, वो ये है कि पहले दिन से ही नेहरू ने आत्मनिर्भरता पर ज़ोर दिया था। जबकि दिल्ली में कुछ आवाज़ें थीं जो अधिक अमेरिकी भागीदारी की वकालत कर रही थीं। कुछ ऐसे भी लोग थे जो सोवियत संघ के साथ घनिष्ठ सहयोग की बात कर रहे थे। लेकिन पहले नेहरू और उनके बाद इंदिरा गांधी इस बात को लेकर बिल्कुल स्पष्ट थे: अंतरिक्ष कार्यक्रम को भारतीय प्रोफ़ेशनल्स द्वारा डिज़ाइन, नियंत्रित और संचालित किया जाना था। इसमें वे निश्चित रूप से भाभा, साराभाई, धवन, हक्सर और कई अन्य लोगों से सलाह लेते थे और उनसे प्रभावित थे।”

उन्होंने कहा, “नेहरू युग में साइंस और टेक्नोलॉजी के लिए मज़बूत नींव रखी गई और विशाल बुनियादी ढांचे का निर्माण हुआ। ऐसा उन तीखी आलोचना के बावजूद किया गया, जिनमें कहा जाता था कि एक बेहद ग़रीब देश होने के कारण, भारत के लिए इस तरह का निवेश करना घातक होगा। फिर भी यह एक आत्मनिर्भर और वैज्ञानिक रूप से उन्नत राष्ट्र का दृष्टिकोण ही है, जो आज भरपूर लाभ दे रहा है।”

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