पर्यावरण का विनाश करता पर्यावरण दिवस का जश्न
बेहद थके से नजर आ रहे प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में अपनी तरफ से पर्यावरण की सभी समस्याओं का जिक्र किया। लेकिन उन्होंने दिल्ली और दूसरे शहरों के जानलेवा वायु प्रदूषण का जिक्र नहीं किया।
भारत सरकार ने विश्व पर्यावरण दिवस के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर हाल ही में एक बड़ा आयोजन किया। लेकिन इस जश्न में पर्यावरण को बचाया नहीं गया और ना ही प्रदूषण को कम किया गया। इस समारोह के लिये फ्लेक्स जैसे पदार्थ से बड़े-बड़े वातानुकूलित ढांचे तैयार किये गये थे और बड़े पैमाने पर प्रचार के लिये फ्लेक्स के बोर्डों का जमकर इस्तेमाल किया गया था। पर्यावरण के लिये प्लास्टिक जितना खतरनाक है, फ्लेक्स भी उतना ही खतरनाक है। यह भी लंबे समय तक पर्यावरण में विखंडित नहीं होता। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री और पर्यावरण मंत्रियों की जगह-जगह पर इतनी बड़ी-बड़ी फोटो लगाई गई थी कि पर्यावरण दिवस का विषय, ‘प्लास्टिक प्रदूषण रोकिये’, ही गौण हो गया था।
इस आयोजन के लिये जहां पर कार पार्किंग बनाई गयी थी, वहां सिर्फ धूल ही धूल थी, जो हर गाड़ी के आने-जाने पर उड़ रही थी। कार्यक्रम के लिये जिन बड़े-बड़े डीजल जनरेटर सेट्स का उपयोग किया गया था, उनका शोर सड़क के दूसरी ओर के लॉन में भी असर डाल रहा था। सबसे हास्यास्पद तो यह था कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जो स्थल पर वायु प्रदूषण के स्तर का परिमापन कर रहा था, परिमापन यंत्र के अपने ही दिशा-निर्देशों की धज्जियां उड़ा रहा था। वहां पर उड़ती धूल के बीच परिमापन संयंत्र को जमीन पर रखा गया था, जबकि दिशा-निर्देश कहते हैं कि इसे जमीन से कम से कम एक मीटर की ऊंचाई पर स्थापित किया जाना चाहिए।
जहां कार पार्किंग बनाई गई थी, उसके साथ ही एक बड़ा खाली मैदान है, जिसका उपयोग बड़े कचराघर के तौर पर किया जाता है। पेड़ों की सूखी डालियों और पत्तियों के बीच जगह-जगह कचरे के ढेर थे, जिनमें प्लास्टिक और थर्मोकोल की मात्रा सबसे ज्यादा थी। कुल मिलाकर यह आयोजन ऐसा था, जिसे पर्यावरण संरक्षण का आयोजन तो बिलकुल नहीं कहा जा सकता है। आश्चर्य तो यह है कि संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण के कार्यकारी निदेशक की नजर में यह आयोजन बहुत भव्य था। आयोजन भव्य होना अलग बात है, लेकिन क्या पर्यावरण के नाम पर आयोजन कर पर्यावरण का विनाश किया जाना चाहिए? आयोजन में लगाई गई प्रदर्शनी में जिन कंपनियों के स्टॉल बड़े और चमकीले नजर आ रहे थे, वे सभी पर्यावरण का विनाश करने के लिए जाने जाते हैं।
कार्यक्रम में काफी थके नजर आ रहे प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में अपनी तरफ से पर्यावरण की सभी समस्याओं का जिक्र किया। ये बात और है कि उन्होंने दिल्ली और दूसरे शहरों के जानलेवा वायु प्रदूषण का जिक्र नहीं किया। हो सकता है वे इसे कोई समस्या ही न मानते हों। ‘नमामि गंगे’ से गंगा पर पड़ने वाला प्रभाव किसी को नजर नहीं आता, लेकिन प्रधानमंत्री बड़े गर्व से उसका जिक्र करते हैं।
यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण ईकाई के कार्यकारी निदेशक ने एक इंटरव्यू में पर्यावरण संरक्षण के लिये भारत और चीन के प्रयासों की तुलना करते हुए चीन के प्रयासों को जिक्र किया और परोक्ष रूप से बताया कि भारत अभी बहुत पीछे है। चीन ने अपने यहां की नदियों की सफाई की और शहरों में वायु प्रदूषण के स्तर में 30 से 40 प्रतिशत तक की कटौती की।
दूसरी तरफ भारत में हर तरह का प्रदूषण बढ़ता जा रहा है और हम आत्म प्रशंसा में लीन हैं। घटते जंगलों के दौर में भी हम उनके बढ़ने का दावा करते हैं और हर दूसरे दिन जब तेंदुए शहरों में आ जाते हैं, तो हम बेशर्मी से अपनी पीठ थपथपाते हुए कहते हैं कि देखो हमने अभयारण्य का क्षेत्र बढ़ा दिया है। जिस देश में साफ हवा और साफ पानी की मांग पर मौत मिलती हो, वह देश जब पर्यावरण दिवस का आयोजन करता है तब ऐसा ही होता है, जैसा इस बार हुआ। कचरे के ढेर सड़कों पर पड़े रहेंगे, नदियां प्रदूषित होती रहेंगी या पूरी तरह सूख जाएंगी, लोग वायु प्रदूषण से मर रहे होंगे, शोर लोगों को बहरा कर रहा होगा और इन सबके बीच सरकारें पर्यावरण संरक्षण का जश्न मनाती रहेंगी।
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