बुलंदशहर हिंसाः अधिकारियों ने रोकी थाने में शहीद इंस्पेक्टर की श्रद्धांजलि सभा, योगी सरकार की मंशा पर उठे सवाल
बुलंदशहर हिंसा में शहीद हुए पुलिस इंस्पेक्टर को श्रद्धांजलि देने के लिए एक थाने में रखी गई श्रद्धांजलि सभा को उच्चाधिकारियों ने जबरन रद्द करा दिया है। ऐसे में प्रदेश की योगी सरकार के साथ ही यूपी पुलिस के आलाधिकारियों की मंशा पर भी सवाल उठने लगे हैं।
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में हुई हिंसा में वीएचपी-बजरंग दल के गुंडों की गोली से शहीद हुए इंस्पेक्टर सबोध कुमार सिंह को इंसाफ दिलाने की योगी सरकार की मंशा पर सवाल उठने लगे हैं। इसका कारण है कि बुधवार सुबह शहीद इंस्पेक्टर को श्रद्धांजलि देने के लिए प्रदेश के एक थाने में सहकर्मियों द्वारा रखी गई सभा में आना तो दूर, उल्टा उच्चाधिकारियों ने सभा को ही जबरन रद्द करा दिया।
दरअसल प्रदेश के एक पुलिस थाने के प्रभारी ने बीती रात स्थानीय पत्रकारों को फोन कर बुधवार सुबह 10 बजे थाना परिसर पहुंचने का अनुरोध किया था। थाना प्रभारी ने पत्रकारों को बताया कि उनके साथी इंस्पेक्टर सुबोध राठौर की बुलंदशहर में शहादत हो गई है, जिससे विभाग के लोगों में अत्यंत दुःख का माहौल है। ऐसे में वह अपने थाना परिसर में शहीद इंस्पेकटर को श्रंद्धाजलि देने के लिए एक सभा का आयोजन कर रहे हैं। अधिकारी के निमंत्रण पर कई पत्रकार और इलाके के कुछ गणमान्य लोग समय पर थाने पहुंच गए, लेकिन वहां कोई सभा नहीं हुई। पूछने पर भरे मन से थाना प्रभारी ने बताया कि उच्चाधिकारियों ने श्रद्धांजलि सभा के लिए मना कर दिया है। मिली जानकारी के अनुसार अधिकरियों ने थाना प्रभारी से कहा कि विभाग के लोग शहीद के लिए एक दिन का वेतन दे रहे हैं, वही काफी है और किसी श्रंद्धांजलि सभा की आवश्यकता नहीं है। विभाग का होने के साथ ही शहीद इंस्पेक्टर उक्त थाना प्रभारी के करीबी दोस्त भी थे। आलाधिकारियों के रवैये से आहत थाना प्रभारी अब इस पर कोई बात नहीं करना चाहते।
गौरतलब है कि पिछले कुछ सालों के दौरान उत्तर प्रदेश पुलिस के कुछ अधिकारियों की शहादतें काफी उत्तेजक रही हैं। इनमें मार्च 2013 में प्रतापगढ़ में हुई सीओ जियाउलहक की शहादत, जून 2016 में एसपी मुकुल द्विवेदी की शहादत और इसी साल शामली में एनकाउंटर के दौरान सिपाही अंकित तोमर की शहादत शामिल है। इन सभी में शहीद को जरूरी सम्मान मिला है और न्याय की दिशा में कार्रवाई हुई। अंकित तोमर की शहादत पर तो यूपी पुलिस में एक बड़ा अभियान चला और सोशल मीडिया पर तमाम बड़े अधिकारियों तक ने अपनी डीपी बदल ली थी ।
सेवानिवृत्त इंस्पेक्टर लाखन सिंह के मुताबिक ताजा मामले में उस तरह की इच्छा शक्ति और समर्पण का अभाव साफ दिखाई दे रहा है। इंस्पेक्टर सुबोध कुमार निश्चित तौर पर बहादुरी के साथ शहीद हुए हैं, इसलिए वह हर प्रकार के सम्मान के हकदार हैं। इससे पहले शहीद इंस्पेक्टर के पुत्र अभिषेक बुलंदशहर में अपने पिता के शव को तिरंगे में नहीं लपेटने को लेकर सवाल उठा चुके हैं। हालांकि इसके बाद यूपी पुलिस ने अपनी गलती सुधार ली और यूपी पुलिस के एडीजीपी आनंद कुमार ने स्पष्ट किया कि इंस्पेक्टर सुबोध कुमार निश्चित तौर पर हमारे लिए शहीद हैं। इसके बाद एटा पुलिस लाइन में उन्हें पूरा सम्मान दिया गया। वहां उनके शव को तिरंगे में भी लपेटा गया।
पुलिस के मामलों के जानकार नादिर राणा कहते हैं कि यह सब तो उनका अधिकार है, उन्हें मिलना चाहिए था। लेकि यूपी पुलिस में उस तरह माहौल नहीं दिखाई नहीं दे रहा है, जैसा इससे पहले की शहादतो में दिखाई देता रहा है। उन्होंने सवाल किया, “क्या इसकी वजह यह है कि इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की हत्या में हिन्दू संगठनों पर आरोप है और उनके समर्थन वाली सरकार राज्य की सत्ता पर काबिज है! ऐसे में इसका असर उनको मिलने वाले न्याय पर भी पड़ सकता है।” बुलंदशहर हिंसा के घटनाक्रम, तथ्यों और स्थानीय लोगों से बातचीत में यह सवाल मजबूती से खड़ा दिखाई देता है।
बुलंदशहर के स्याना में हुई इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की हत्या के बाद सीओ एसपी शर्मा को जिंदा जलाने की कोशिश की भी खबरें प्रकाश में आई हैं। उन्हें चौकी की दीवार तोड़कर किसी तरह बचाया गया। बताया जा रहा है कि इस दौरान उनके साथ मारपीट भी की गई। कई पुलिसकर्मी इस बात को मीडिया और अपने अधिकारियों के सामने कह चुके हैं कि अगर वे जान बचाकर नहीं भागते तो उन्हें मार दिया जाता। गोकशी की सूचना के बाद मौके पर सबसे पहले पहुंचे स्याना के तहसीलदार के अनुसार गोवंश के अवशेष पेड़ों और गन्ने के खेतों पर टांगे गए थे। आमतौर पर ऐसा नहीं होता है। हालांकि अब तहसीलदार साहब इस विषय पर बात नहीं कर रहे हैं।
इस बवाल के बाद मंगलवार को चिरंगवठी चौकी प्रभारी सुभाषचंद्र ने 27 हमलावरों को नामजद करते हुए रिपोर्ट दर्ज कराई है। इस रिपोर्ट में बजरंग दल के जिला संयोजक योगेश राज प्रवीण को मुख्य आरोपी बनाया गया है। साथ ही भाजयुमो के पूर्व नगर अध्यक्ष शिखर अग्रवाल समेत विहिप के कुछ लोगों को भी नामजद किया गया है। एसएसपी बुलंदशहर केबी सिंह के मुताबिक इन सभी की गिरफ्तारी के लिए 6 टीमों का गठन कर लगातार दबिश दी जा रही है। अब तक चार आरोपी गिरफ्तार हुए। गौरतलब है कि इनमें योगेश राज के गिरफ्तार होने की भी खबर उड़ी, लेकिन बाद में उसकी गिरफ्तारी से इंकार कर दिया गया और फरार बता दिया गया। सबसे खास बात ये है कि घटना के बाद प्रेस कांफ्रेंस के दौरान एडीजीपी आनंद कुमार मुख्य आरोपी योगेश राज का नाम लेने से साफ बचते नजर आए।
इस बीच स्थानीय बीजेपी सांसद भोला सिंह पूरी तरह से आरोपियों के पक्ष में उतर गए हैं। चर्चा है कि बुलंदशहर के एसएसपी हटाये जा सकते हैं। पहली नजर में इस घटना को लेकर पुलिस बैकफुट पर नजर आ रही है। इसलिए अब सुबोध कुमार के असली हत्यारों के गिरेबान तक पुलिस के हाथ पहुंचेंगे इसकी संभवाना कम ही है। शहीद इंस्पेक्टर को उसी के थाने में श्रद्धांजलि देने की इजाजत नहीं देने वाले उच्चाधिकारियों से आगे इंसाफ की क्या उम्मीद की जा सकती है। ऐसे में योगी सरकार के साथ ही यूपी पुलिस के आलाधिकारियों की मंशा पर भी सवाल उठने लगे हैं।
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