बजट 2023 भारत की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिए आपदा, मनरेगा, खाद्य सुरक्षा, पोषण में ऐतिहासिक कटौती
बजट घोषणाओं को गौर से देखने से साफ है कि सरकार ने केवल शब्दों की लफ्फाजी और भारी भरकम आंकड़ों की बाजीगरी की है और पिछड़े व जरूरतमंद लोगों की अनदेखी कर वर्तमान में चरम मंहगाई औऱ बेरोजगारी से प्रभावित एक बड़े वर्ग को राहत देने से साफ इनकार कर दिया है।
पीएम मोदी ने आज पेश अपनी सरकार के बजट को 'अमृत काल का पहला बजट' करार दिया है, लेकिन विस्तार से देखने से पता चलता है कि यह बजट तो भारत की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिए आपदा है, क्योंकि इसमें मनरेगा, मिड डे मिल, खाद्य सुरक्षा, पोषण, मातृ वंदना और सामाजिक सहायता जैसी तमाम सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में ऐतिहासिक कटौती कई गई है, जो एक प्रकार से देश के निर्धन, जरूरतमंद और पिछड़े वर्ग की सीधे तौर पर अनदेखी है।
मनरेगा के बजट में ऐतिहासिक कटौती
आज वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश बजट में ग्रामीण भारत में रोजगार के सबसे अहम जरिया मनरेगा का बजट 73000 करोड़ रुपये से घटाकर 60,000 करोड़ रुपये कर दिया गया, जो अब तक का सबसे कम है। हाल में पेश एक रिपोर्ट के अनुसार इस कानून के तहत सौ दिनों का रोजगार देने के लिए मनरेगा में 2023-24 के लिए 2,71,862 करोड़ रुपए का बजट चाहिए था। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इससे पहले कम बजट के आवंटन के कारण 100 की जगह 40 दिनों का ही रोजगार ही मिल पा रहा था। अब इस बार मात्र 60,000 करोड़ रुपए के आवंटन से मनरेगा का क्या होगा, इसे आसानी से समझा जा सकता है।
बजट में खाद्य सुरक्षा को बड़ा झटका
मोदी सरकार और बीजेपी द्वारा इस बात की बहुत चर्चा की जाती है कि सरकार द्वारा गरीबों को खाद्यान्न निशुल्क दिया जा रहा है। पर यदि हम राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के अंतर्गत भारतीय खाद्य निगम को दी जाने वाली सबसिडी की बात करें तो इसमें भी भारी कमी आई है। इसी तरह जहां तक प्रधानमंत्री पोषण स्कीम का सवाल है तो इसमें भी पिछले वर्ष के संशोधित अनुमान की अपेक्षा कमी आई है। इसका सीधा असर मध्याहन भोजन योजना और पोषण योजना पर पड़ेगा।
कृषि सिंचाई योजना में भारी कमी
इसी तरह यदि हम कृषि और किसान कल्याण विभाग की केन्द्रीय सेक्टर की स्कीमों के बजट को देखें तो इसमें कमी आई है। पीएम कृषि सिंचाई योजना का आवंटन 12954 करोड़ रुपये से घटाकर 10787 करोड़ रुपये कर दिया गया है। यदि हम श्रम मंत्रालय के अंतर्गत केन्द्रीय सेक्टर की स्कीमों को देखें तो उनके बजट में कमी आई है विशेषकर आत्म-निर्भर भारत रोजगार योजना, श्रम कल्याण स्कीम और राष्ट्रीय बाल मजदूर योजना के आवंटन में महत्त्वपूर्ण कमी आई है। एमएसएमई को आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना के आवंटन को 2022-23 के 15000 करोड़ से घटाकर 14100 करोड़ रुपये कर दिया गया है।
स्वास्थ्य, शिक्षा और सुकन्या योजना के आवंटन में भी कमी
इसी तरह राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन योजना का बजट 37160 करोड़ रुपये से घटाकर 36785 करोड़ रुपये कर दिया गया है। वहीं राष्ट्रीय शिक्षा मिशन का आवंटन 39553 करोड़ रुपये से घटाकर 38953 करोड़ रुपये कर दिया गया है। प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुकन्या योजना के बजट में भी भारी कटौती की गई है। यदि हम अल्पसंख्यक कल्याण की योजनाओं को देखें तो उसमें भी महत्त्वपूर्ण कमी आई है।
इस प्रकार आज की बजट घोषणाओं को गौर से देखने से स्पष्ट होता है कि सरकार ने केवल शब्दों की लफ्फाजी और भारी भरकम आंकड़ों की बाजीगरी की है और निर्धन, पिछड़े व जरूरतमंद लोगों की अनदेखी कर वर्तमान में चरम मंहगाई औऱ बेरोजगारी से प्रभावित एक बड़े वर्ग को राहत देने से साफ इनकार कर दिया है।
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