मरकज पर आए संकट से एक हो सकते हैं तब्लीगी जमात के दोनों धड़े, पीएम के करीबी रहे जफर सरेशवाला को पूरी उम्मीद
तब्लीगी जमात का उदय मुख्य रूप से गुजरात के योगदान के कारण हुआ, जहां संगठन की गहरी जड़ें हैं। सूरत के मौलाना अहमद लाड और भरूच के इब्राहिम देवला की मेहनत की वजह से ही आज तब्लीगी जमात की उपस्थिति 150 से अधिक देशों में है। लेकिन कुछ साल पहले जमात का विभाजन हो गया था।
कोरोना वायरस से पैदा महामारी के बीच दिल्ली के निजामुद्दीन में बड़ा कार्यक्रम आयोजित करने वाला संगठन तब्लीगी जमात विवादों की वजह से संकट में है। कुछ साल पहले पनपे आंतरिक विवादों के कारण तब्लीगी जमात दो धड़ों में विभाजित हो गया था, जो इस संकट की घड़ी में दोबारा एक हो सकता है। सूत्रों का कहना है कि दोनों गुटों के साथ आने की प्रबल संभावना है, क्योंकि समर्थक भी ऐसा ही चाहते हैं।
कभी पीएम मोदी के बेहद करीबी रहे और लंबे समय से तब्लीगी जमात से जुड़े जफर सरेशवाला ने हालिया विवाद में मरकज प्रमुख मौलाना मोहम्मद साद कांधलवी का बचाव किया है। उन्होंने मौलाना साद का बचाव करते हुए कहा है कि कार्यक्रम का आयोजन करना एक गलती है और इसमें कोई दुर्भावना या दुर्भावनापूर्ण इरादा नहीं है।
बता दें कि जमात का उदय मुख्य रूप से गुजरात से आए योगदान के कारण हुआ, जहां संगठन की गहरी जड़ें हैं। तब्लीगी जमात की तमाम गतिविधियों में गुजरात गुट का काफी योगदान रहा है और इससे जुड़ी महत्वपूर्ण हस्तियां सूरत के मौलाना अहमद लाड और भरूच के इब्राहिम देवला रहे हैं। गुजरात समेत मुंबई में जमात के काम में चेलिया समुदाय सबसे आगे रहा है। मौलाना यूसुफ द्वारा गुजरात में 50 के दशक की शुरुआत में शुरू किये गए काम के कारण जमात ने अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और अमेरिका में बसे कई प्रमुख गुजरातियों की मदद से विदेशों तक अपनी जड़ें जमा लीं।
पहले मौलाना अहमद लाड और यूसुफ देवला दोनों ही निजामुद्दीन मरकज में रहते थे, लेकिन बाद में मौलाना साद के साथ मतभेद होने के कारण जमात का विभाजन हो गया। बंटवारे के बाद बनाए गए शूरा गुट की तब्लीगी जमात में करीब 60 फीसदी हिस्सेदारी मानी जाती है, जिसमें पाकिस्तान के मौलाना तारिक जमील भी शामिल हैं। जमात की उपस्थिति 150 से अधिक देशों में है।
भारत में उत्तर प्रदेश, तेलंगाना और अन्य हिस्सों में मौलाना साद गुट की पकड़ है, जबकि मुंबई और अन्य जगहों पर गुजरातियों की पकड़ है। जबकि विदेशों में लंदन सेंटर पाकिस्तान की शूरा के साथ है, जबकि ड्यूसबरी केंद्र को मौलाना साद द्वारा नियंत्रित किया जाता है। इसी तरह शिकागो केंद्र भी मौलाना साद के नियंत्रण में है और अफ्रीकी देश शूरा गुट के साथ हैं। दिल्ली के दरियागंज में तुर्कमान गेट स्थित फैज-ए-इलाही मस्जिद शूरा का केंद्र है, जो लॉकडाउन की घोषणा के बाद से ही बंद है।
जफर सरेशवाला ने कहा, अभी भी देर नहीं हुई है। मौलाना साद को बाहर आकर प्रेस और लोगों से बात करनी चाहिए, ताकि जमात के बारे में जो कुछ भी कहा गया है, उसका खंडन किया जा सके। साथ ही जफर सरेशवाला ने कहा, “दोनों गुटों के बीच कोई वैचारिक अंतर नहीं है और व्यक्तिगत समस्याएं भी गहराई से नहीं हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि संकट के समय में दोनों धड़े एक साथ आ सकते हैं, लेकिन यह उनकी निजी राय है। हालांकि, मामले पर मौलाना लाड (90) और देवला (82) से संपर्क नहीं हो सका।
बता दें कि मुंबई में 17 से 20 मार्च तक तब्लीगी जमात के एक गुट शूरा की एक सभा पहले निर्धारित थी, मगर इसने प्रतिभागियों और समर्थकों की सलाह के बाद स्थिति को भांपते हुए समय रहते कार्यक्रम को रद्द कर दिया। मौलाना साद को भी यही सलाह दी गई थी, लेकिन उन्होंने अपने आयोजन को जारी रखा, जिसका परिणाम अब देश को भुगतना पड़ रहा है।
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