DU से निकाली गई नेत्रहीन शिक्षिका ने मांगी इच्छामृत्यु, कहा- अब मौत से सुंदर कुछ भी नहीं, मदद कर दीजिए

पार्वती कुमारी ने लिखा कि ईश्वर ने आंख की रोशनी छीनी, तो लगा किसी तरह पार घाट उतर जाऊंगी। मुझे क्या पता था कि बौद्धिकों के समाज में भी मेरी जैसी अभागन की आत्मा को भी चाकू से रौंदकर लहूलुहान कर दिया जाएगा। ऐसा लगता है कि मैं दुबारा अंधी हो गई हूं।

DU से निकाली गई नेत्रहीन शिक्षिका ने मांगी इच्छामृत्यु
DU से निकाली गई नेत्रहीन शिक्षिका ने मांगी इच्छामृत्यु
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नवजीवन डेस्क

दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती कालेज में लंबे समय से पढ़ा रही नेत्रहीन शिक्षिका और पीएचडी स्कॉलर पार्वती कुमारी ने नौकरी से निकाले जाने पर सोशल मीडिया पर पोस्ट लिखकर इच्छामृत्यु की मांग की है। पोस्ट में उन्होंने लिखा है कि 'अब मृत्यु से सुंदर कुछ भी नहीं है, मुझे इच्छा मृत्यु दी जाए। मेरी मदद कर दीजिए।‘

उन्होंने कहा, "दसवीं कक्षा में आंखों की रोशनी जाने के बाद मैने ब्रेल लिपि से 12वीं की। डीयू आईपी कॉलेज से ग्रेजुएशन, दौलत राम कॉलेज से एम.ए, जेएनयू से एमफिल और पीएचडी किया। मेरा जेआरएफ सामान्य श्रेणी में है। लेकिन आज मुझे नौकरी से हटाकर एक सामान्य एम.ए और नेट पास किए नए छात्र से रिप्लेस कर दिया गया। यह मेरी हत्या ही तो है, केवल हत्या।"

पार्वती की पुस्तक वाणी प्रकाशन से प्रकाशित है। एक कहानी संग्रह भी है। इसके अलावा उनके बहुत सारे लेख हैं जो हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में छपे हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय की इस पूर्व शिक्षा का कहना है, "मेरे जीवन की रोशनी यह तदर्थ की नौकरी थी। केवल महाभारत में ही चीर-हरण नहीं हुआ था, आज भी अट्टहास के साथ मेरे साथ हुआ है। मेरी नौकरी मुझसे छीन ली गई। जीवन में अंधापन फिर से गहरा हो गया है। आत्महत्या करने का विचार तो कई बार आया, लेकिन मैं इच्छामृत्यु चाहती हूं, मेरी मदद कर दीजिए प्लीज़।"


पार्वती कुमारी ने पोस्ट में लिखा कि "भारत के हर नागरिक से अपील करती हूं कि मैं ही हूं पार्वती। अब जिंदा लाश के शक्ल में तब्दील हो चुकी हूं। सत्यवती कॉलेज, सांध्य से निकाले जाने के बाद क्षण क्षण मर रही हूं। अब चाहती हूं कि सदैव के लिए मेरी यह पीड़ा खत्म हो जाए। ईश्वर ने आंख की रोशनी छीनी, तो लगा कि किसी तरह पार घाट उतर जाऊंगी। मुझे क्या पता था कि बौद्धिकों के समाज में भी मेरी जैसी अभागन की आत्मा को भी चाकू से रौंदकर लहूलुहान कर दिया जाएगा। मैं घबराई हुई हूं। ऐसा लगता कि मैं दुबारा अंधी हो गई हूं। दृष्टिहीन आंखों में गरम तेल डाल दिया गया हो। हे ईश्वर, तुम्हारा न्याय कहां गया, कुछ तो हमपर दया करो।"

पार्वती ने आगे लिखा है, "अंधों के संघर्ष को आप नहीं जानते। जीवन के हर मोड़ पर मैं जूझती हूं। हमारी सारी इच्छाओं का दमन तो ईश्वर ने कर ही दिया था, इस घटना ने मानवता को शर्मशार कर दिया। आपको एक बात बताती हूं। हमारा समाज दिव्यांगों के प्रति संवेदनशील नहीं है। पुरुष के अंधेपन और महिला के अंधेपन में भी अंतर है। हम पर दोहरी मार पड़ती है। पुरुष को समाज में विशेषाधिकार प्राप्त है लेकिन महिला को?" 


दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर आभा देव हबीब के मुताबिक सत्यवती कालेज सांध्य में कुल 11 शिक्षक पढ़ा रहे थे। कुल सीट 16 थी। इनमें 6 लोगों को बाहर निकाल दिया गया, मात्र 5 को ही रखा गया। निकाले गए शिक्षकों में डॉक्टर मंजुल कुमार सिंह (अनुभव 23 साल), डॉक्टर विनय झा (अनुभव 12 साल), डॉक्टर संजीत कुमार (अनुभव 14 साल), डॉक्टर सच्ची (10 साल अनुभव), डॉक्टर पार्वती कुमारी (9 साल का अनुभव), डॉक्टर अरमान अंसारी (10 साल शैक्षणिक अनुभव) के नाम हैं। आभा देव का कहना है कि यदि सबको समायोजित कर लिया जाता तब भी 5 सीट बच जाती, जिसे आका लोग जिसको चाहते दे सकते थे। लेकिन लालच और सत्ता का दंभ कोई सीमा नहीं जनता।

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