दिल्ली पुलिस मुख्यालय का घेराव : कमजोर नेतृत्व ने ‘खाक’ में मिलाई ‘खाकी’ की इज्जत!
दिल्ली पुलिस के इतिहास में ‘काला-अध्याय’ जुड़वाने का ठीकरा हवलदार-सिपाहियों ने अपने ही कमजोर साबित हो चुके पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक के सिर फोड़ा है। उनका कहना है कि तीस हजारी कांड में पुलिस वाले ही पीटे गए, फिर भी अफसरों ने पुलिस वालों को ही सस्पेंड कर दिया। यह कहां का कानून और कैसा न्याय है?
वकीलों और दिल्ली पुलिस के बीच शनिवार को दिल्ली की तीस हजारी अदालत में हुई खूनी लड़ाई मंगलवार को एक तरफ धरी रह गई। इसकी जड़ बना महकमे के मुखिया यानी पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक के प्रति सिपाही, हवलदार और थानेदारों का भारी गुस्सा। गुस्से की वजह सामने निकल कर आई दिल्ली पुलिस में नेतृत्व क्षमता का पूरी तरह मर जाना। इसी के चलते एक अनुमान के मुताबिक आठ से 10 हजार हवलदार सिपाहियों ने महकमे के मुखिया यानी पुलिस कमिश्नर को आईटीओ स्थित मुख्यालय के भीतर छिपने को मजबूर कर दिया। उसी पुलिस मुख्यालय में, जिसकी देहरी पर पांव रखने से पहले कोई भी मातहत पुलिसकर्मी अबतक 100 बार सोचा करता था।
दिल्ली पुलिस के इतिहास में 'काला-अध्याय' जुड़वाने का ठीकरा हवलदार-सिपाहियों ने अपने ही कमजोर साबित हो चुके पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक के सिर फोड़ा। दिल्ली पुलिस जैसे मजबूत महकमे में कमजोर साबित हो चुके अपने ही मुखिया से खफा, मातहत मंगलवार सुबह करीब आठ बजे पुलिस मुख्यालय के गेट पर इकट्ठे होने शुरू हो गए। मुख्यालय घेर रहे नाराज पुलिसकर्मियों की मांग थी कि तीस हजारी कांड में पुलिस वाले ही पीटे गए, फिर भी अफसरों ने पुलिस वालों को ही सस्पेंड कर दिया। यह कहां का कानून और कैसा न्याय है?
पुलिसकर्मियों के धरने पर बैठने के चलते पुलिस मुख्यालय के चारों ओर की सड़कें जाम हो गईं। ट्रैफिक बंदोबस्त बुरी तरह चरमरा गए। राहगीरों को पता चला कि धरने पर पुलिस वाले ही बैठे हैं। तो तमाशबीनों की भीड़ भी मौके पर बढ़ने लगी। मीडिया का जमघट लगने लगा। दोपहर तक नाराज पुलिसकर्मियों की भीड़ बहुत बढ़ गई।
धरने पर बैठे हजारों सिपाही-हवलदारों में बहुतायत नई पीढ़ी के पुलिसकर्मियों की थी। अपने ही मातहतों द्वारा पुलिस मुख्यालय घेरे जाने से परेशान आला पुलिस अफसरान को भी पीछे के दरवाजे से दफ्तरों में जाना पड़ा। दोपहर बाद करीब चार बजे दिल्ली पुलिस के विशेष आयुक्त सुनील गर्ग की कार ने मुख्य द्वार से पुलिस मुख्यालय में घुसने की नाकाम कोशिश की। तमाम कोशिशों के बाद भी कार प्रदर्शनकारी पुलिसकर्मियों की भीड़ के चलते मुख्यालय में नहीं जा सकी। इतना ही नहीं, विशेष पुलिस आयुक्त गर्ग को कार से पैदल उतर कर वापस लौटना पड़ा। सुनील गर्ग ने बताया, "मुझे पुलिस कमिश्नर ने जरूरी मीटिंग में शामिल होने के लिए बुलाया था। अब हेडक्वार्टर में जाने का कोई और रास्ता देखता हूं।"
धरने पर बैठे पुलिसकर्मियों की मांग थी कि तीस हजारी कोर्ट मामले में वकीलों के हाथों पिटने के बाद भी उनके जिन साथियों को आला और कमजोर पुलिस अफसरों ने सस्पेंड किया है, उन्हें तुरंत बहाल किया जाए। आरोपी वकीलों के लाइसेंस रद्द कराए जाने की कार्यवाही तुरंत शुरू हो। वकीलों के हमले में घायल पुलिसकर्मियों के समुचित इलाज का इंतजाम कराया जाए।
नाराज पुलिसकर्मियों संख्या पूर्वाह्न् करीब 11 बजे तक बहुत बढ़ चुकी थी। सूचना मिलते ही और मीडिया में खबरें आते ही दिल्ली पुलिस मुख्यालय में मौजूद पुलिस कमिश्नर सहित तमाम आला अफसरान के हाथ-पांव फूल गए। खुफिया जानकारी से हासिल धरना स्थल के विस्फोटक हालात जान-समझकर पुलिस कमिश्नर ने अंदर बंद रहने में ही भलाई समझी।
मीडिया पर पूरा मामला छाते ही केंद्र सरकार ने तुरंत ही दिल्ली के उपराज्यपाल को तलब कर लिया और उसके बाद राज्यपाल ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को तलब कर लिया। उपराज्यपाल द्वारा तलब किए जाने से घबड़ाए पुलिस कमिश्नर बिना कुछ आगे-पीछे सोच-समझे धरना खत्म कराने धरना स्थल पर जा पहुंचे। पुलिस कमिश्नर की लाख मिन्नतों के बाद भी पुलिसकर्मी टस-से-मस नहीं हुए। लिहाजा अपनों के बीच अपनों से खुलेआम सड़क पर अपनी बेइज्जती कराकर पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक उल्टे पांव पुलिस मुख्यालय लौट गए।
दोपहर बाद उपराज्यपाल के यहां से धरना-प्रदर्शन खत्म कराने की आगे की रणनीति का गुणा-गणित समझ कर पुलिस आयुक्त दोबारा मातहतों की फौज के साथ पुलिस मुख्यालय पहुंचे। शाम करीब पांच बजे से सिलसिला शुरू हुआ, पुलिस कमिश्नर के विश्वासपात्र कुछ विशेष पुलिस आयुक्तों, संयुक्त पुलिस आयुक्तों द्वारा अपने हक के लिए धरने पर बैठकर खाकी की इज्जत 'शांतिपूर्वक' तरीके से खाक में मिलाने पर उतारू 'अपनों' को बहला-फुसला कर मनाने की।
सबसे पहले बातचीत के लिए मैदान में भेजे गए उत्तरी परिक्षेत्र के संयुक्त पुलिस आयुक्त राजेश खुराना, जिनके इलाके में शनिवार को तीस हजारी कांड हुआ था। राजेश खुराना को धरने पर बैठे पुलिसकर्मियों ने पांच-दस मिनट में ही 'हूट' करके मैदान छोड़कर भागने पर मजबूर कर दिया।
उसके बाद कमजोर अपनों से खफा 'अपने मातहतों' को पुचकारने के लिए भेजे गए दक्षिणी परिक्षेत्र के संयुक्त पुलिस आयुक्त देवेश चंद्र श्रीवास्तव। उनका लच्छेदार लुभावना भाषण भी बेकार साबित हुआ। हालांकि, कमजोर पुलिस कमिश्नर साबित हुए अमूल्य पटनायक की कमियों पर धूल डलवाने की आखिरी कोशिश में देवेश चंद्र श्रीवास्तव ने तो मातहत सिपाही-हवलदारों से यहां तक निवेदन कर डाला, "भाइयो-बहनों मैं पुलिस आयुक्त की तरफ से आपकी तमाम मांगें स्वीकार करता हूं। आपके खिलाफ कोई भी कानूनी कार्रवाई इस धरने को लेकर नहीं होगी। तीस हजारी मामले में जो भी कानूनी दायरे में कदम होगा, उठाया जाएगा। आप सब चाहें तो मेरे दफ्तर में आकर अभी मुझसे मिल सकते हैं।"
इस अनुनय-विनय को भी सड़क पर बैठे हवलदार सिपाहियों ने नजरंदाज कर दिया।
हालांकि इस सबसे आजिज और दिन भर हुई सड़क पर खाकी की फजीहत से दिल्ली के तमाम आला आईपीएस पुलिस अफसरों के हौसले पस्त हो गए। जब पुलिस कमिश्नर को कुछ नहीं सूझा तब उन्होंने आखिरी दांव चला उत्तरी परिक्षेत्र के विशेष पुलिस आयुक्त (कानून-व्यवस्था) का अस्थाई प्रभार संभाल रहे आर.एस. कृष्णया को प्रदर्शनकारियों के बीच भेज कर।
कृष्णया ने पुलिस कमिश्नर की बेजा हरकतों और ढुलमुल रवैये से खिसियाकर सड़कों पर उतर आए हवलदार-सिपाहियों-दारोगाओं से जब कहा, "आप अब धरना खत्म कर दीजिए। हम वर्दी की फोर्स हैं। हम आपकी कानून के दायरे में रहकर हर जायज मांग को मानते हैं। धरने पर बैठने के मामले में भी आपके खिलाफ कोई विभागीय कार्रवाई नहीं की जाएगी। तीस हजारी घटनाक्रम की न्यायिक जांच चल रही है। उसमें भी न्याय मिलने की उम्मीद रखिए।"
इसके कुछ देर बाद ही धरने पर जमे गुस्साए पुलिसकर्मी धीरे-धीरे सड़क से हटने लगे।
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