बंगाल में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के साथ दुर्गा पूजा की राजनीति के सहारे अपने पैर पसारना चाहती है बीजेपी
पश्चिम बंगाल में बीजेपी जिस तरह पूजा समितियों पर कब्जे का अभियान चला रही है, उससे साफ है कि वह कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। अब तक बीजेपी की छवि गैर-बंगाली हिंदी भाषियों की पार्टी की रही है। लेकिन पूजा के जरिये वह अब बंगालियों की पार्टी की छवि बनाना चाहती है।
बीजेपी पश्चिम बंगाल की सत्ता में आने को इतनी व्यग्र है कि वह कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती। दुनिया जानती है कि इस इलाके का सबसे बड़ा त्योहार दुर्गापूजा है। इस मौके पर लोग सीधे-सीधे राजनीतिक अभियान से परहेज करते रहे हैं। लेकिन बीजेपी अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को कौन समझाए। दूसरी बार पूजा के लिए कोलकाता पहुंचे अमित शाह बंगाल में एनआरसी लागू करने का राग गाने से बाज नहीं आए। साफ तौर पर उनका इरादा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने का था।
वैसे भी, बीजेपी पूजा समितियों पर कब्जे का अभियान जिस तरह चला रही है, उससे साफ है कि वह कोई अवसर गंवाना नहीं चाहती। कोलकाता समेत राज्य के ज्यादातर जिलों की समितियां दीदी यानी ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस के रंग में रंग चुकी हैं। करोड़ों के बजट वाली ज्यादातर आयोजन समितियों में तृणमूल के नेता और मंत्री ही अध्यक्ष या संरक्षक के तौर पर काबिज हैं। अब तक बीजेपी की छवि गैर-बंगाली हिंदी भाषियों की पार्टी की है। लेकिन पार्टी पूजा समितियों पर कब्जे के जरिये अब खुद को बंगालियों की पार्टी के तौर पर छवि बनाना चाहती है। प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष कहते भी हैं कि “हम अबकी दुर्गापूजा में अपनी भागीदारी बढ़ाना चाहते हैं। मैं खुद कई पूजा पंडालों का उद्घाटन करूंगा।”
बंगाल में दुर्गापूजा की अहमियत इसी से समझी जा सकती है कि ममता बनर्जी हर साल सैकड़ों पूजा पंडालों का उद्घाटन करती हैं। यह सिलसिला नवरात्र के पहले दिन से ही शुरू हो जाता है। बंगाल में लगभग 28 हजार पंडालों में दुर्गापूजा का आयोजन किया जाता है। इनमें से छोटे-बड़े चार हजार आयोजन अकेले कोलकाता और आसपास के इलाकों में होते हैं। महानगर में दो सौ पूजा समितियां ऐसी हैं जिनका बजट करोड़ों में होता है। इस साल जनवरी में आयकर विभाग ने इन प्रमुख समितियों को नोटिस भेजा था। तब ममता ने इसका कड़ा विरोध किया था।
पैर जमाने की ख्वाहिश में बीजेपी आरोप-प्रत्यारोप पर भी उतरी हुई है। बीजेपी के एक नेता का दावा है कि जो पूजा समितियां पार्टी नेताओं को उद्घाटन के लिए या बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित कर रही हैं, राज्य सरकार उनको तरह-तरह से परेशान करने का प्रयास कर रही है। इसीलिए पार्टी कोलकाता और दूसरे शहरों की बजाय खासकर ग्रामीण इलाकों पर अपना ध्यान रख रही है और वहीं अपनी भागीदारी बढ़ाने में जुटी है।
लेकिन तृणमूल कांग्रेस सांसद सौगत राय इसे बेमतलब का आरोप मानते हैं। उनका कहना है कि बीजेपी पूजा समितियों पर कब्जे का भरसक प्रयास कर रही है लेकिन राज्य के लोग ही उसे नकार रहे हैं। मंत्री सुब्रत मुखर्जी भी कहते हैं कि “तृणमूल कांग्रेस दुर्गापूजा के नाम पर राजनीति नहीं करती। लेकिन बीजेपी ने अब धर्म और दुर्गापूजा के नाम पर सियासत शुरू कर दी है”। पंचायत मंत्री और कोलकाता की प्रमुख आयोजन समिति एकडालिया एवरग्रीन के अध्यक्ष सुब्रत मुखर्जी आरोप लगाते हैं कि बीजेपी दुर्गापूजा का सियासी इस्तेमाल करना चाहती है। लेकिन त्योहारों को राजनीति से परे रखना चाहिए।
राजनीतिक विश्लेषक सोमेन दासगुप्ता इस स्थिति को स्वाभाविक मानते हैं। उनका कहना है कि तमाम प्रमुख पूजा समितियों पर सत्तारुढ़ पार्टी का नियंत्रण है। ऐसे में बीजेपी की राह आसान नहीं होगी। वैसे, उनका मानना है कि साल 2021 के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए यह जंग और तेज होने का अंदेशा है।
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