छापे डालो - चंदा वसूलो: एजेंसियों के छापों के बाद बीजेपी को मिला करोड़ों का चंदा, पड़ताल में चौंकाने वाला खुलासा
न्यूजलॉन्ड्री-द न्यूजमिनट की पड़ताल में केंद्रीय एजेंसियों द्वारा छापेमारी का एक पैटर्न सामने आया है कि छापों के बाद कंपनियों ने सत्तारूढ़ पार्टी को डोनेशन दिए जिससे यह संदेह पुख्ता होता है कि राजनीतिक चंदा छापों से पैदा किए गए दबाव से लिया गया।
बतौर मीडिया निगरानीकर्ता काम करने वाले मंच न्यूजलॉन्ड्री और दक्षिण भारतीय राज्यों को बड़े पैमाने पर सेवाएं देने वाले स्वतंत्र डिजिटल प्लेटफॉर्म द न्यूजमिनट की यह जांच रिपोर्ट राजनीतिक दलों को कॉर्पोरेट फंडिंग के दो छुपे हुए स्रोतों से पर्दा उठाती है।
चुनाव आयोग को पूरी तरह से अंधेरे में रखने वाली चुनावी बॉन्ड योजना के विपरीत चुनावी ट्रस्टों (ईटी) को चुनाव आयोग के सामने चंदा देने वाली कंपनियों का नाम बताना होता है। लेकिन पार्टियों के बीच फंड का बंटवारा कैसे होता है, कुछ साफ नहीं है। जांच में सामने आया कि कम-से-कम 30 कंपनियों ने केंद्रीय एजेंसियों के छापों के बाद सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी को चंदा दिया। इस बारे में की गई संयुक्त जांच के कुछ प्रमुख निष्कर्ष:
फरवरी, 2024 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा असंवैधानिक करार दी गई चुनावी बॉन्ड योजना राजनीतिक दलों को कॉरपोरेट फंडिंग का एकमात्र स्रोत नहीं रही है। फंडिंग का एक अन्य कम गुमनाम स्रोत चुनावी ट्रस्ट हैं, जिन्हें कंपनियों और व्यक्तियों से दान मिलता है और जिसे ये दलों के बीच बांटते हैं। हालांकि यह रहस्य है कि बंटवारा किस आधार पर होता है।
कांग्रेस को 2022-23 में इलेक्टोरल ट्रस्ट (ईटी) के जरिये कॉरपोरेट निकायों से बीजेपी को मिलने वाले प्रत्येक 100 रुपये पर 19 पैसे मिले। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के अनुसार, 2022-23 में राष्ट्रीय पार्टियों को दिए गए कुल 850.4 करोड़ रुपये में से 719.8 करोड़ रुपये अकेले बीजेपी को मिले।
दरअसल, 2013 से 2023 के बीच 10 सालों में कांग्रेस को ईटी के जरिये जो कुल पैसा मिला, वह 2022-23 में उसी योजना के जरिये सिर्फ एक साल में बीजेपी को मिलने वाली रकम से काफी कम है। भाजपा को 2013 से 2023 के बीच 10 साल में ईटी से 1,893 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि मिली।
न्यूजलॉन्ड्री की रिपोर्ट के अनुसार, “इस पर कुछ भी साफ नहीं है कि ये ट्रस्ट कैसे संचालित होते हैं या वे राजनीतिक दलों को मिलने वाली राशि पर किस तरह फैसला लेते हैं। 2024 के आम चुनावों के लिए मैदान में उतरी दो सबसे बड़ी पार्टियों के लिए (आंशिक) कॉरपोरेट फंडिंग में भारी असमानता से सवाल उठता है कि क्या चुनाव में निष्पक्षता संभव है और क्या एक लोकतंत्र में बड़े कॉर्पोरेट घरानों की राजनीति के खेल में ऐसी अहम भूमिका होनी चाहिए।”
बीजेपी को मिले धन का अधिकांश एक ही संगठन- भारती समूह द्वारा स्थापित प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट से आया जबकि चुनावआयोग के आंकड़ों के अनुसार, टाटा समूह का प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट भारत में सबसे पहले 1996 में स्थापित हुआ था और पिछले कुछ वर्षों में कम-से-कम 19 अलग-अलग ईटी स्थापित हुए हैं।
हालांकि 2020 के बाद से यह सिर्फ प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट ही है जिसे ठीकठाक मात्रा में धन मिल रहा है। प्रूडेंट ही पहले सत्या इलेक्टोरल ट्रस्ट था और इसे 2013 में भारती ग्रुप ने शुरू किया। अपने पहले वर्ष को छोड़कर सत्या/प्रूडेंट ने लगातार कांग्रेस की तुलना में बीजेपी को बहुत ज्यादा धन दिया है।
2019-20 में प्रूडेंट ने बीजेपी को 218 करोड़ रुपये दिए जबकि कांग्रेस को महज 31 करोड़। 2020-21 में बीजेपी के लिए यह राशि 209 करोड़ रुपये थी और कांग्रेस के लिए 2 करोड़। 2021-22 में उन्होंने बीजेपी को 337 करोड़ रुपये दिए और कांग्रेस को 15 करोड़। 2022-23 में कांग्रेस को प्रूडेंट से कुछ नहीं मिला, जबकि बीजेपी को 256 करोड़ मिले।
2022-23 में प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट का सबसे बड़े योगदानकर्ता 87 करोड़ रुपये के साथ मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (एमईआईएल) था। इसके बाद सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (50 करोड़ रुपये); भारती एयरटेल लिमिटेड (10 करोड़ रुपये); मेधा सर्वो ड्राइव्स प्राइवेट लिमिटेड (10 करोड़ रुपये); और मेधा ट्रैक्शन इक्विपमेंट प्राइवेट लिमिटेड (5 करोड़ रुपये) रहे। बीजेपी के बाद प्रूडेंट ने तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति को 90 करोड़ रुपये और आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस को 16 करोड़ रुपये दिए। शीर्ष पांच दानदाताओं में से चार हैदराबाद से हैं।
न्यूजलॉन्ड्री ने जब दिल्ली में बहादुर शाह जफर मार्ग स्थित प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट के कार्यालय का दौरा किया, तो खुद को संजीव बताने वाले एक रिसेप्शनिस्ट ने कहा कि निदेशक मुकुल गोयल “किसी से नहीं मिलते।” उसने गोयल का नंबर बताने के बजाय अपना ईमेल दिया और कहा: “आप जैसे बहुत सारे लोग हर दिन आते हैं।” कार्यालय के प्रवेश द्वार पर लगी नेमप्लेट पर “मुकुल और गणेश- चार्टर्ड अकाउंटेंट” दर्ज है।
रिपोर्ट के अनुसार, “हमने ईमेल के जरिये प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट से पूछा कि विभिन्न पार्टियों को दिए जाने वाले धन पर फैसला कैसे लिया जाता है। हमें अभी तक उनसे कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। प्रतिक्रिया मिलते ही उसे अपडेट किया जाएगा। हमने एमईआईएल, सीरम इंस्टीट्यूट, आर्सेलर मित्तल, मेधा सर्वो ड्राइव्स, टीवीएस ग्रुप सहित प्रूडेंट को दान देने वाली कई कंपनियों से भी संपर्क किया लेकिन कहीं से से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।” यह भी स्पष्ट नहीं है कि ट्रस्टों ने चुनाव आयोग के साथ भी धन वितरण का फॉर्मूला साझा किया है या नहीं।
भारतीय स्टेट बैंक द्वारा 2019 से बेचे गए और भुनाए गए चुनावी बॉन्ड का सारा ब्योरा 6 मार्च, 2024 तक साझा किए जाने की उम्मीद है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 13 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर यह सब अपलोड करने को कहा है। जाहिर है, इस सूची में सबकी काफी रुचि है, जो शेल कंपनियों, घाटे में चल रही कंपनियों और विदेशी स्वामित्व वाली कंपनियों सहित उन तमाम कंपनियों की पहचान खोल सकती है जिन्होंने भारत के राजनीतिक दलों को वित्तपोषित किया होगा। यह ब्यौरा अब तक मतदाताओं और चुनाव आयोग दोनों से छिपाया गया।
इस बीच, न्यूजलॉन्ड्री-द न्यूजमिनट की जांच में केंद्रीय एजेंसियों द्वारा छापेमारी का खासा परेशान करने वाला पैटर्न सामने आया। छापों के बाद कंपनियों और व्यापारिक घरानों ने सत्तारूढ़ पार्टी को डोनेशन दिया। इससे यह संदेह पुख्ता होता है कि राजनीतिक चंदे में कुछ लोग शामिल थे और यह भी कि कई चुनावी बॉन्ड वास्तव में कुछ शर्तों के साथ आए।
फरवरी, 2024 में सरकार द्वारा संसद में साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2018 से अब तक 16,518 करोड़ रुपये से अधिक के बॉन्ड बेचे गए। ट्रांसपेरेंसी एक्टिविस्ट कमोडोर लोकेश बत्रा (सेवानिवृत्त) को मिले एक आरटीआई जवाब के अनुसार, '2018 से दिसंबर, 2022 तक 1,000 रुपये मूल्य वाले बॉन्ड कुल बिक्री का सिर्फ 0.01 प्रतिशत थे जबकि 1 करोड़ रुपये मूल्य वाले बॉन्ड का प्रतिशत 94.41 रहा। संभावना है कि ये दान ज्यादातर व्यक्तियों या शेल कंपनियों के पीछे छिपी कॉरपोरेट फर्मों से आए।'
जांच से पता चला कि 2018-19 और 2022-23 के बीच बीजेपी को दान देने वाली कम-से-कम 30 कंपनियों को केंद्रीय एजेंसियों की दंडात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ा और उनमें से 23 कंपनियों नेे 2014 से पहले और छापे के वर्ष के बीच कभी भी बीजेपी को कोई राशि नहीं दी थी।
इनमें से चार कंपनियों ने केंद्रीय एजेंसी के दौरे के चार महीनों के भीतर बीजेपी को चंदा दिया और छह कंपनियां जो पहले से ही पार्टी की दानदाता थीं, उन्होंने कार्रवाई और छापे के बाद के महीनों में भारी मात्रा में दान दिया। एक वित्तीय वर्ष में दान देने से चूकने के बाद छह अन्य फर्मों को केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई झेलनी पड़ी।
इन 30 की सूची का हिस्सा नहीं रहने वाले कम-से-कम तीन दानदाताओं पर केंद्र सरकार से अनुचित लाभ लेने का आरोप लगा है। इन 33 कंपनियों में से सिर्फ तीन ने कांग्रेस को दान दिया, कोलकाता स्थित भारत की तीसरी सबसे बड़ी सीमेंट उत्पादक कंपनी श्री सीमेंट्स ने 2020-21 और 2021-22 में बीजेपी को 12 करोड़ दिए लेकिन 2022-23 में कुछ नहीं दिया। जून, 2023 में आयकर अधिकारियों ने इसकी तलाशी ली और कंपनी पर 23,000 करोड़ रुपये की कर चोरी का आरोप लगाया जिसे विपक्ष ने प्रतिशोधात्मक बताया था।
टैक्स छापे के कुछ सप्ताह बाद कंपनी सांघी इंडस्ट्रीज के अधिग्रहण की दौड़ से बाहर हो गई और इसे अंततः अडानी समूह के स्वामित्व वाली अंबुजा सीमेंट द्वारा अधिग्रहित कर लिया गया। विपक्ष ने तब बीजेपी पर अडानी समूह के कॉरपोरेट प्रतिद्वंद्वियों की बांह मरोड़ने का आरोप लगाया था। जनवरी, 2024 में आयकर विभाग ने श्री सीमेंट्स से बकाया कर और जुर्माने के रूप में 4,000 करोड़ रुपये देने को कहा था।
(यह प्रतीक गोयल, कोरा अब्राहम, नंदिनी चंद्रशेखर और बसंत कुमार द्वारा की गई पड़ताल के बाद प्रस्तुत कई केस अध्ययनों में से एक है। तीन किस्तों वाली न्यूजलॉन्ड्री-द न्यूजमिनट रिपोर्ट के अंश)
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