दलितों की अनदेखी से नाराज बीजेपी सांसद उदित राज ने थामा कांग्रेस का हाथ, राहुल गांधी की मौजूदगी में ली सदस्यता

2014 के लोकसभा चुनाव में उदित राज ने उत्तर पश्चिम दिल्ली सीट से जीत दर्ज की थी। इस बार भी उदित राज इस सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे। उन्होंने बीजेपी से टिकट की मांग की थी, लेकिन पार्टी ने उनका टिकट काट दिया।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

लोकसभा चुनाव के बीच बीजेपी को तगड़ा झटका लगा है। दलित सांसद उदित राज ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया है। उदित राज कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। दिल्ली में राहुल गांधी की मौजूदगी में उदित राज ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है। उदित राज बीजेपी की नीतियों से काफी दिनों से नाराज चल रहे थे। देश भर में दलितों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ भी उन्होंने आवाज उठाई थी। दलितों की बात करने वाली बीजेपी अपने दलित सांसद को तरजीही नहीं दे रही थी।

2014 के लोकसभा चुनाव में उदित राज ने उत्तर पश्चिम दिल्ली सीट से जीत दर्ज की थी। इस बार भी उदित राज इस सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे। उन्होंने पार्टी से टिकट की मांग की थी, लेकिन बीजेपी ने उनका टिकट काट दिया। बीजेपी ने उत्तर पश्चिम दिल्ली सीट से सिंगर हंस राज हंस को चुनाव मैदान में उतारा है। हंसराज हंस साल 2016 में ही बीजेपी में शामिल हुए थे। उदित राज ने बीजेपी को अल्टीमेटम दिया था, लेकिन बीजेपी ने अपने दलित सांसद की कोई सुनवाई नहीं की।

पिछले कुछ महीनों में दलित सांसद उदित राज ने बीजेपी में रहते हुए भी दलितों के मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखी थी। दलितों के कई मुद्दों पर उदित राज ने बीजेपी और मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा किया था।

दलितों को लेकर बीजेपी का हमेशा से रवैया ठीक नहीं रहा है। उदित राज कोई पहले ऐसे दलित सांसद नहीं हैं, जिन्हें बीजेपी ने तरजीही नहीं दी। इससे पहले उत्तर प्रदेश के बहराइच से दलित सांसद सावित्री बाई फुले ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया था। उन्होंने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ली थी। बीजेपी को छोड़ने के बाद सांसद सावित्री बाई फुले ने पीएम मोदी और बीजेपी पर कई गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने कहा था कि बीजेपी और मोदी सरकार में दलितों की आवाज नहीं सुनी जाती है। उन्होंने कहा था कि संसद में उन्हें दलितों की आवाज नहीं उठानी दी गई। सावित्री बाई फुले ने कहा था कि पीएम मोदी और बीजेपी के दो चेहरे हैं, एक तरफ वे दलितों की बात करते हैं वहीं दूसरी तरफ वे दलितों की आवाज को दबाते हैं।

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