बिहारः नीतीश सरकार की शराबबंदी का हाल, हर नाले से निकल रही हैं खाली बोतलें और पाउच
सुशासन बाबू के राज में शराबबंदी की हवा निकल गई है। आए दिन बिहार में शराब की खेप पकड़ी जा रही है। हाल ही में पटना के एक नाले में गिरे बच्चे को खोजने के लिए जब गाद निकाला जाने लगा तो शराब की खाली बोतलों और देशी शराब के पाउच-पैकेटों का अंबार लग गया।
बिहार में शराबबंदी लागू हुए अच्छा वक्त गुजर चुका, लेकिन खुद सरकार को भरोसा नहीं कि उसके अफसर शराब छोड़ चुके हैं। 26 नवंबर को एक बार फिर हर जिले में पुलिस अधिकारियों तक को शपथ दिलाई गई कि वे शराब का सेवन नहीं करेंगे। यह स्थिति अब तक क्यों है, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। क्योंकि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ‘शराब मुक्त बिहार’ के निश्चय की हवा निकल चुकी है। शराबबंदी के बाद ऐसी कोई जगह नहीं, जहां से शराब बरामद नहीं की गई हो। पूर्ण शराबबंदी पर नीतीश के बड़े बोल की असली हकीकत हाल ही में उस समय खुलकर सामने आ गई, जब पटना के एक खुले नाले में गिरे 10 साल के बच्चे को ढूंढ़ने के क्रम में जहां-जहां से गाद हटाई गई, या तो शराब की खाली बोतलें मिलीं या शारबे के पाउच और पैकेट निकले।
उगली बोतल तो गाद निकालना बंद किया
पटना में पिछले दिनों 10 साल का एक बच्चा दीपक नाले में गिरकर गायब हो गया। पटना नगर निगम ने दीपक को ढूंढ़ने में कई तरह के प्रयोग किये। सबसे पहले नाले और मैनहोल के अंदर झांक कर देखा गया। फिर गाद निकाला जाने लगा। जैसे-जैसे गाद की परत दिखनी शुरू हुई तो शराब की टूटी और साबूत बोतलें मिलने लगीं। इतनी कि हर तरफ चर्चा शुरू हो गई। चर्चा तेज हुई तो निगम ने कचरे को झटपट ठिकाने लगाया और यह कहते हुए गाद निकालना बंद कर दिया कि गाद बहुत चिपचिपा और कठोर है। दरअसल डर इस बात का था कि न जाने कितनी बोतलें निकल आएं।
पुलिस काट रही मलाई
बिहार में किसी से भी पूछें, शराबबंदी का एक फायदा और कई नुकसान बताएगा। फायदा यह कि सड़क पर नशेड़ियों की हुल्लड़बाजी बंद हो गई है। लेकिन नुकसान कई तरह के सामने आए हैं। शराब की सप्लाई के लिए दर्जनों तरह के प्रयोग सामने आ चुके हैं। संभवतः कई तो अब तक शायद सामने भी न आए हों। खेती-किसानी के ट्रैक्टर के टायर तक से शराब बरामदगी हो चुकी है। पॉश इलाकों में लड़कियों को शराब सप्लाई के नेटवर्क में जोड़े जाने की खबरें कई बार सामने आ चुकी हैं। हॉस्टल में रहने वाली लड़कियों का इसके लिए इस्तेमाल पकड़ा जा चुका है। दूध के कंटेनर, एम्बुलेंस की सीट, अनाज के बोरे, टॉयलेट की सूखी टंकी, झोपड़ियां, यहां तक कि पुलिस लाइन से भी शराब पकड़ी जा चुकी है।
बिहार के कई आईजी, डीआईजी स्तर के अधिकारी अनौपचारिक बातचीत में कह जाते हैं कि पुलिस का सारा ध्यान शराब ले जाने वालों को ट्रेस करने में लगा रहता है। दरअसल, पुलिस का ध्यान सरकार का इकबाल बुलंद करना या पूर्ण शराबबंदी को लागू कराने के लिए नहीं रहता। पुलिस सिर्फ शराब बरामद करती है। बड़े धंधेबाज तो उसकी पकड़ में आते ही नहीं हैं। सौ में दो-चार मामले ही ऐसे होते हैं जब पुलिस शराब के साथ किसी की गिरफ्तारी दिखाती है। बाकी में पुलिस को चकमा देकर अपराधी कथित तौर पर भाग जाते हैं। बताने की जरूरत नहीं कि पुलिस को यह चकमा अपराधी बार-बार और लगातार किस बूते दे रहे होंगे। और, पुलिसिया सिस्टम की खूबी यह कि 10-20 बोतल शराब की खेप भी पकड़े जाने पर थानाध्यक्ष स्तर के अधिकारी बाकायदा बरामदगी के साथ फोटो खिंचवाते नजर आते हैं। शराबबंदी के इतने समय बाद अब तक शराब की बरामदगी कैसे हो रही है, सरकार इस सवाल का जवाब देने की जगह बरामद खेप के साथ फोटोग्राफी के जरिये अपनी पीठ ठोकने में व्यस्त है
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