बिहार में सरकारी स्कूल राम भरोसे: 10 साल में कम्प्यूटर तो दो बार भेज दिए गए, लेकिन न बिजली है न इन्हें चलाने वाले
बिहार में शिक्षा की स्थिति इसी से समझी जा सकती है कि 10 साल पहले भेजे गए कम्प्यूटर सड़ गए। अब फिर कम्प्यूटर तो स्कूलों में भेजे गए हैं, लेकिन न तो इन्हें चलाने के लिए ट्रेंड टीचर रखे गए हैं और न ही इन्हें चलाने के लिए जरूरी बिजली पहुंचाई गई है।
बिहार के सरकारी स्कूलों को एक बार फिर कंप्यूटर भेजे गए हैं। पहले ये शिक्षा विभाग की ओर से भेजे गए थे, अब बिहार विद्यालय परीक्षा समिति से। पहले वाले कंप्यूटर पड़े-पड़े सड़ गए क्योंकि कहीं बिजली नहीं, तो कहीं शिक्षक नहीं थे। इस बार परीक्षा समिति ने अपने काम की जरूरत बता कंप्यूटर भेजे हैं हालांकि बिजली और कंप्यूटर लिटरेट स्टाफ की कमी पहले-जैसी ही बनी हुई है। वैसे, नीतीश का दावा है कि राज्य में 100 प्रतिशत विद्युतीकरण हो चुका है। यह उसी तरह है जैसे पटना के खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) होने का दावा। सुबह-सुबह बिहार विधानसभा से 100-200 मीटर दूर रेल पटरियों पर जाकर सच्चाई देख सकते हैं।
नीतीश 2005 में जब मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने सरकारी स्कूलों में प्राइवेट-जैसी सुविधाएं देने का सपना दिखाया था। इसके तहत कंप्यूटर स्कूलों तक पहुंचा भी दिए गए। लेकिन करीब 10 साल में ज्यादातर स्कूलों में यह ऑपरेट नहीं किए जा सके। पहले तो कंप्यूटर शिक्षकों की भर्ती का इंतजार होता रहा। फिर, पहले के शिक्षकों को ही ट्रेन्ड करने की घोषणा हुई। एक-दो बार संविदा पर कंप्यूटर शिक्षकों को रखा भी गया। लेकिन अंततः अधिकतर जगह कंप्यूटर पड़े ही रह गए। पिछले करीब डेढ़ साल से दोबारा कंप्यूटरों की खरीदारी कर स्कूलों में भेजा गया और भेजा जा ही रहा है। इसका मतलब यह कि कोई एजेंसी स्क्रीन और सीपीयू दे आ गई, तो कुछ दिनों पहले किसी दूसरे ने यूपीएस पहुंचाया। अब कोई दूसरी एजेंसी प्रिंटर पहुंचा रही है। परीक्षा समिति ने यह कंप्यूटर इस नाम पर दिए हैं कि स्कूल इनसे परीक्षा संबंधित काम करेगा। अभी सभी सरकारी स्कूल मैट्रिक-इंटर की परीक्षा से जुड़े काम के लिए भी साइबर कैफै के भरोसे हैं।
हाईस्कूलों की सुविधाओं पर सरकार की रिपोर्ट जल्दी नहीं दिखती है। लेकिन इसी महीने जारी प्रारंभिक स्कूलों की रिपोर्ट में भी इनमें बिजली पहुंचाना सरकारी प्राथमिकता से बाहर है। स्वास्थ्य विभाग में रहते हुए कोरोना में सरकारी व्यवस्थाओं की हकीकत सामने लाकर सुधार का प्रयास करने के कारण कोविड के भीषण दौर में स्थानांतरित किए गए सीनियर आईएएस संजय कुमार ने अब शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के रूप में सरकारी स्कूलों की हालत दिखाते आंकड़े जारी कर सरकार की पोल खोल डाली है।
इस रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के 71 हजार प्रारंभिक स्कूलों में से 11,640 स्कूलों में बिजली की सुविधा नहीं है। दिव्यांगों को आरक्षण का दावा करने वाली डबल इंजन सरकार ने 14,185 स्कूलों में दिव्यांग बच्चों और शिक्षकों के लिए रैंप की जरूरत नहीं समझी है। खेलों के जरिये बच्चों की चहुंमुखी प्रतिभा विकसिसत करने का दावा इतना खोखला है कि 45,887 स्कूलों में खेल के मैदान आज तक नहीं बने हैं। मैदान क्या बनाएंगे, 33607 स्कूलों में चारदीवारी तक नहीं है। 1,383 स्कूलों में लड़कियों और 2,014 स्कूलों में लड़कों के लिए शौचालय की व्यवस्था नहीं है। संजय कुमार ने सभी जिला शिक्षा पदाधिकारियों (डीईओ) को सुविधाएं दुरुस्त करने का निर्देश दिया है। यह भी निर्देश दिया गया है कि जिन 50,547 स्कूलों में लाइब्रेरी और 137 स्कूलों में पेयजल की सुविधा नहीं है, वहां इनकी व्यवस्था की जाए।
लेकिन दूसरी ओर, हकीकत यह है कि शिक्षा से जुड़े अधिकारी ही आधुनिक टेक्नोलॉजी अपनाने में पीछे हैं। वे मोबाइल ऐप के जरिये निरीक्षण रिपोर्ट देने तक के प्रति गंभीर नहीं हैं। सितंबर में 35 जिलों के जिला शिक्षा पदाधिकारियों और 31 जिलों के जिला कार्यक्रम पदाधिकारी ने किसी एक हाईस्कूल या इंटर स्कूल का निरीक्षण नहीं किया। वे सरकार को यह रिपोर्ट तो दे ही सकते थे कि बिजली या अन्य किस कारण से स्कूलों को हाईटेक बनाने का सपना मिट्टी में मिल रहा है।
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