सुप्रीम कोर्ट से ED को बड़ा झटका, आरोपियों की गिरफ्तारी का आधार लिखित में देना ही होगा
अपने आदेश में कोर्ट ने कहा था कि वर्ष 2002 के कड़े अधिनियम के तहत दूरगामी शक्तियों से संपन्न ईडी से अपने आचरण में प्रतिशोधी होने की उम्मीद नहीं की जाती और उसे अत्यंत ईमानदारी और उच्चतम स्तर की निष्पक्षता एवं तटस्थता के साथ काम करते हुए देखा जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने उस फैसले पर पुनर्विचार संबंधी केंद्र की याचिका खारिज कर दी है, जिसमें कहा गया था कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को बिना किसी अपवाद के किसी आरोपी की गिरफ्तारी का आधार लिखित रूप में बताना होगा। न्यायालय ने यह भी कहा कि उसके निर्णय में कोई त्रुटि नहीं है, जिसपर पुनर्विचार की आवश्यकता हो। न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने ‘चैंबर’ में समीक्षा याचिका पर विचार किया और आदेश पारित किया।
पीठ ने 20 मार्च को सुनाए गए अपने आदेश में कहा, ‘‘हमने पुनर्विचार याचिकाओं और संबंधित कागजातों का ध्यानपूर्वक अध्ययन किया है। हमें विवादित आदेश में ऐसी कोई त्रुटि नहीं मिली है, जो अस्पष्ट हो और इस पर पुनर्विचार की आवश्यकता हो। तदनुसार, पुनर्विचार याचिकाएं खारिज की जाती हैं। (साथ ही) यदि कोई लंबित याचिका हो, तो उसका निपटारा किया जाता है।’’ न्यायालय ने पुनर्विचार याचिका की सुनवाई खुली अदालत में किये जाने के केंद्र के अनुरोध को भी खारिज कर दिया।
केंद्र ने शीर्ष अदालत के तीन अक्टूबर के उस आदेश की समीक्षा का अनुरोध किया था, जिसमें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेशों के साथ-साथ गिरफ्तारी मेमो को भी रद्द कर दिया गया था। साथ ही न्यायालय ने धनशोधन के एक मामले में गुरुग्राम स्थित रियल्टी समूह एम3एम के निदेशकों- बसंत बंसल और पंकज बंसल- को रिहा करने का निर्देश दिया था।
शीर्ष अदालत ने ईडी को कड़ी फटकार लगाई थी और कहा था कि उससे अपने आचरण में ‘प्रतिशोधी’ होने की उम्मीद नहीं की जाती है और उसे पूरी ईमानदारी एवं निष्पक्षता के साथ काम करना चाहिए। न्यायालय के आदेश में कहा गया था कि देश में धनशोधन के आर्थिक अपराध को रोकने की कठिन जिम्मेदारी वाली जांच एजेंसी होने के नाते ईडी की हर कार्रवाई ‘पारदर्शी’ और निष्पक्षता के मानकों के अनुरूप होनी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘वर्ष 2002 के कड़े अधिनियम के तहत दूरगामी शक्तियों से संपन्न ईडी से अपने आचरण में प्रतिशोधी होने की उम्मीद नहीं की जाती है और उसे अत्यंत ईमानदारी एवं उच्चतम स्तर की निष्पक्षता और तटस्थता के साथ काम करते हुए देखा जाना चाहिए।’’
इसमें कहा गया था कि ईडी द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब देने में आरोपियों की विफलता जांच अधिकारी के लिए यह मानने के लिए पर्याप्त नहीं होगी कि उन्हें (आरोपी को) गिरफ्तार किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा था, ‘‘वर्ष 2002 के (पीएमएलए) अधिनियम की धारा 50 के तहत जारी समन के जवाब में गवाह का असहयोग उसे धारा 19 के तहत गिरफ्तार करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।’’
शीर्ष अदालत ने गिरफ्तार व्यक्ति की गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित करने के संबंध को धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के प्रावधान का उल्लेख करते हुए कहा था, ‘‘हमारा मानना है कि अब से यह आवश्यक होगा कि गिरफ्तार व्यक्ति को स्वाभाविक रूप से और बिना चूके गिरफ्तारी के लिखित आधार की एक प्रति दी जाए।’’ बसंत और पंकज बंसल को ईडी ने कथित रिश्वत मामले से जुड़ी धनशोधन मामले की जांच के सिलसिले में गिरफ्तार किया था।
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