भीमा कोरेगांव केस: सुप्रीम कोर्ट ने वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा को दी सशर्त जमानत
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि आरोप गंभीर हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि जमानत नहीं दी जा सकती। जमानत देने के बारे में अपनी राय बनाते समय, हमने नोट किया कि उन्हें पहले 1967 अधिनियम के तहत अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था।
भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा को जमानत दे दी है। जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने जमानत देते हुए कहा कि हालांकि दोनों आरोपियों के खिलाफ आरोप गंभीर हैं, लेकिन सिर्फ यही जमानत से इनकार करने की वजह नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट ने इस साल मार्च में ही इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
अदालत ने अपने आदेश में कहा, “आरोप गंभीर हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि जमानत नहीं दी जा सकती। जमानत देने के बारे में अपनी राय बनाते समय, हमने नोट किया कि उन्हें पहले 1967 अधिनियम के तहत अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था। इसलिए, हम जमानत पर रहते हुए उचित शर्तें लगाने का प्रस्ताव करते हैं। हम विवादित आदेश को रद्द करते हैं और अपीलकर्ता को जमानत पर रिहा करते हैं।"
कोर्ट ने इन शर्तें पर दोनों आरोपियों को मिली जमानत
दोनों आरोपी महाराष्ट्र नहीं छोड़ेंगे।
दोनों आरोपियों को अपना पासपोर्ट सरेंडर करना पड़ेगा।
मोबाइल नंबर एनआईए के साथ साझा करना होगा। फोन को 24 घंटे चार्ज करके रखना होगा। मोबाइल के लोकेशन चालू होने चाहिए। ट्रैकिंग के लिए एनआईए अधिकारी के साथ सिंक होना चाहिए।
सिर्फ मोबाइल फोन का ही इस्तेमाल कर सकते हैं।
दोनों को अपने पते के बारे में एनआईए अधिकारी को सूचित करना होगा।
शर्तों का उल्लंघन हुआ तो अभियोजन पक्ष जमानत रद्द करने की मांग कर सकता है।
गवाहों को धमकाने का कोई प्रयास किया जाता है, तो अभियोजन पक्ष जमानत रद्द करने के लिए अदालत का रुख कर सकता है।
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