भीमा कोरेगांव केसः सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व प्रोफेसर शोमा सेन को दी जमानत, जून 2018 से हैं जेल में बंद
जस्टिस अनिरुद्ध बोस और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने जमानत की शर्तों में कहा कि प्रो सेन विशेष अदालत की अनुमति के बिना महाराष्ट्र नहीं छोड़ेंगी। साथ ही वह केवल एक मोबाइल रखेंगी, जिसका लोकेशन उन्हें जांच अधिकारी के साथ साझा करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में जून 2018 में गिरफ्तार नागपुर विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफेसर और महिला अधिकार कार्यकर्ता शोमा के. सेन को जमानत दे दी। सेन 2018 के भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी हैं। वो लंबे समय से बीमार हैं, साथ ही उनकी बढ़ती उम्र को देखते हुए जस्टिस अनिरुद्ध बोस की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि सेन को जमानत के लाभ से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने निर्देश दिया कि उन्हें ऐसी शर्तों पर जमानत पर रिहा किया जाए, जिन्हें विशेष अदालत उपयुक्त और उचित समझे। पीठ ने कहा कि जमानत की शर्तों में यह शामिल होगा कि सेन विशेष अदालत की अनुमति के बिना महाराष्ट्र नहीं छोड़ेंगी। साथ ही कोर्ट ने सेन को जांच अधिकारी के साथ अपना मोबाइल लोकेशन भी साझा करने को कहा है।
शीर्ष अदालत के आदेश के अनुसार, जमानत पर रहते हुए सेन को अपना पासपोर्ट जमा करना होगा और अपने रहने के ठिकाने की जानकारी और मोबाइल नंबर एनआईए को सौंपने होंगे। इसने कहा कि सेन जमानत पर रहने के दौरान केवल एक मोबाइल फोन नंबर का उपयोग करेंगी और यह भी सुनिश्चित करना होगा कि मोबाइल चौबीस घंटे चालू और चार्ज रहे, ताकि वह जमानत पर रहने की पूरी अवधि के दौरान लगातार उपलब्ध रहें।
पीठ ने निर्देश दिया कि जमानत पर रहते हुए सेन को हर पखवाड़े में एक बार पुलिस थाने के थाना प्रभारी को रिपोर्ट करना होगा, जिसके अधिकार क्षेत्र में वह रहेंगी। पीठ ने कहा, ‘‘यदि इनमें से किसी भी शर्त या विशेष अदालत द्वारा स्वतंत्र रूप से लगाई जाने वाली किसी अन्य शर्त का उल्लंघन होता है, तो अभियोजन पक्ष के लिए अपीलकर्ता को दी गई जमानत को रद्द करने का विशेष अदालत के समक्ष अनुरोध करने का विकल्प खुला होगा।’’
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने सेन की याचिका पर एनआईए से जवाब मांगा था। अंग्रेजी साहित्य की प्रोफेसर और महिला अधिकार कार्यकर्ता सेन को छह जून, 2018 को गिरफ्तार किया गया था और तब से वह सलाखों के पीछे हैं। बॉम्बे हाई कोर्ट से बेल पेटीशन रिजेक्ट होने के बाद उन्होंने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। दिसंबर 2021 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने इसी मामले में वकील-कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को डिफ़ॉल्ट जमानत दे दी थी।
यह मामला 31 दिसंबर 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में आयोजित एल्गार परिषद के एक कार्यक्रम में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है। पुलिस का दावा है कि इस कार्यक्रम के अगले दिन शहर के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़क गई थी। पुणे पुलिस का दावा है कि इस कार्यक्रम को माओवादियों का समर्थन प्राप्त था। मामले में 12 से अधिक कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों को आरोपी बनाया गया है। इसकी जांच का जिम्मा एनआईए संभाल रही है।
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