भारत जोड़ो न्याय यात्रा ने जिंदा कर दिए हैं उत्तरपूर्वी राज्यों को लेकर केंद्र की बेरुखी के सवाल

भारत जोड़ो न्याय यात्रा ने एक बार फिर इन सवालों को जिंदा कर दिया है कि आखिर पीएम क्यों मणिपुर से भाग रहे हैं और उसका दर्द क्यों नहीं समझ रहे, ऐसे चेकपोस्ट क्यों बने हैं जहां समुदाय के आधार पर ड्राइवर बदलते हैं। इस सप्ताह की उत्तर-पूर्व डायरी

फोटो सौजन्य : @bharatjodo
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उत्तम सेनगुप्ता

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह 14 जनवरी को मणिपुर से शुरू की गई मणिपुर-मुंबई ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ को लेकर तल्ख टिप्पणियां कर रहे थे। यात्रा पर लोगों को सचेत करने के लिए उन्होंने 8वें सशस्त्र बल पूर्व सैनिक दिवस, 2024 का अवसर चुना और उन्हें 2023 में राहुल गांधी की पिछली राज्य यात्रा के ‘दुष्प्रभावों’ की याद दिलाई, जब कांग्रेस नेता ने 3 मई की जातीय हिंसा से विस्थापित लोगों के राहत शिविरों का दौरा किया था और उनसे मिले थे। 

इंफाल फ्री प्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, मुख्यमंत्री ने कहा: “यह यात्रा मेरे लिए ‘भारत जोड़ो’ नहीं, ‘भारत तोड़ो’ है। पिछली बार जब राहुल गांधी ने दौरा किया था, तो उन्होंने मणिपुर को तोड़ दिया था और अब जब मणिपुर धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में आ रहा है, वह फिर से इसे तोड़ने आए हैं।”

सांसद और कांग्रेस के संचार प्रभारी जयराम रमेश ने यात्रा के दौरान इस सवाल का कुछ इस तरह जवाब दिया। मणिपुर के दो मंत्री पिछले आठ महीने से रिमोट से काम कर रहे हैं। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा, “वे गुवाहाटी, आइजोल, बेंगलुरु या न्यूयॉर्क में हो सकते हैं लेकिन इंफाल में नहीं।”

उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री बीरेन सिंह पिछले आठ महीनों के दौरान एक बार भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नहीं मिल पाए हैं। पीएम की ओर से सीएम को जन्मदिन की बधाई भी ट्विटर और संभवत: फोन पर मिली होगी। विदेश राज्यमंत्री आर.के. रंजन सिंह ने भी पीएम से मिलने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुए। राजनीतिक दल जिनमें से 14 तो मणिपुर के ही हैं, प्रधानमंत्री से मिलना चाह रहे लेकिन उन्हें समय नहीं दिया जा रहा।

ऐसा नहीं कि प्रधानमंत्री सिर्फ मणिपुर ही नहीं गए, उन्होंने तो अक्तूबर में एक चुनावी रैली वाली मिजोरम की अपनी यात्रा भी रद्द कर दी, ताकि यह सवाल न पूछा जाए कि अगर वह मिजोरम जा सकते हैं, तो मणिपुर क्यों नहीं? कांग्रेस नेता ने कहा कि न सिर्फ प्रधानमंत्री बल्कि राज्य सरकार भी हालात शांत करने और समाधान खोजने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाने में विफल रही है। उन्होंने मीडिया को याद दिलाया कि उन्होंने 2022 के विधानसभा चुनावों के दौरान मणिपुर में एक महीना बिताया था जिसमें भाजपा को दो-तिहाई बहुमत मिला था। हालांकि एक साल से भी कम समय में सरकार ने जनादेश दरकिनार करते हुए मणिपुर को इस तरह विभाजित कर दिया जैसा पहले कभी नहीं हुआ था।

स्वराज इंडिया के योगेन्द्र यादव ने एक छोटी वीडियो क्लिप में राज्य में उभरी कई सीमाओं का जिक्र किया है। इन सीमाओं पर चेक पोस्ट हैं जिन पर पुलिस और असम राइफल्स के अलावा समुदाय के नागरिक सदस्य भी तैनात रहते हैं। वे अपने तरीके से यात्रियों की पहचान करते हैं और एक समुदाय विशेष के सदस्यों को आगे जाने से रोकते हैं। चेक पोस्ट के बाद 200 मीटर या उससे अधिक के बफर जोन हैं जिसके अंत में पुलिस, असम राइफल्स और अन्य समुदाय के नागरिकों द्वारा संचालित एक और चेक पोस्ट है।

यहां तक ​​कि मणिपुर की राज्यपाल सड़क मार्ग से गुजरती हैं तो उनके काफिले की भी जांच होती है। यादव बताते हैं कि मैतेई ड्राइवर चेक पोस्ट पर उतर जाते हैं और दूसरी तरफ इंतजार करते कुकी-जो-चिन ड्राइवर स्टीयरिंग संभाल लेते हैं। न्याय यात्रा में भी कांग्रेस के मैतेई नेताओं और अन्य नागरिक समाज के सदस्यों को कुकी-जो क्षेत्रों में जाने की अनुमति नहीं थी। उन्हें चेक पोस्ट पर रुकना पड़ा था। मुख्यमंत्री और उनके मंत्री भी कई सीमाओं पर बेरोकटोक नहीं जा पा रहे हैं।


सिर्फ चुनाव की बात नहीं

मणिपुर के सेनापति जिले में कन्हैया कुमार याद दिला रहे थे कि राजनीति का मतलब सिर्फ चुनाव नहीं है। भारत जोड़ो न्याय यात्रा के बीच ब्रेक के दौरान मीडिया को संबोधित करते कन्हैया बोले- प्रधानमंत्री को मणिपुर शायद चुनावी दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं लगता होगा क्योंकि यहां तो सिर्फ दो ही लोकसभा सीटें हैं; लेकिन कांग्रेस राज्य में विधानसभा चुनाव भले हार गई और राज्य से लोकसभा में उसका कोई प्रतिनिधित्व नहीं है, फिर भी उसे लगता है कि मणिपुर का दर्द एक दर्द है जिसे उजागर करने की जरूरत है। उन्होंने मीडिया को याद दिलाया कि भाजपा के पास मणिपुर विधानसभा के साथ-साथ लोकसभा में भी प्रचंड बहुमत है लेकिन यह भी राज्य में स्थिति सामान्य बनाने में मददगार नहीं हुआ।

उन्होंने बताया कि पहले दो दिनों में इंफाल और सेनापति के बीच न्याय यात्रा में बसों और कारों के काफिले पर कहीं भी पथराव नहीं हुआ जो बताता है कि सब राज्य में शांति बहाली चाहते हैं। महंगाई और बेरोजगारी भाजपाई वोटर को भी परेशान करती है और मणिपुर अब एक संवेदनशील और जिम्मेदार सरकार चाहता है।

उन्होंने कहा, अगर प्रधानमंत्री प्रचंड बहुमत और अपने पास मौजूद राज्य शक्ति के बावजूद मणिपुर का दौरा नहीं कर पाते हैं, तो यह राहुल गांधी का नहीं, उनकी विफलता, उनका अक्स है। 

मणिपुर में पुलिसिंग 

नंदिता हक्सर मणिपुर पर अपनी हालिया किताब ‘शूटिंग द सन’ में लिखती हैं कि मणिपुर में पूरे देश में जनसंख्या के मुकाबले पुलिसकर्मियों का अनुपात सबसे ज्यादा है जो राष्ट्रीय औसत से कम-से-कम छह गुना अधिक है। उनके अनुसार,  “अनुमान है कि प्रति एक लाख लोगों पर यहां 1,388 पुलिसकर्मी हैं जबकि राष्ट्रीय औसत प्रति एक लाख लोगों पर महज 250 है। यही नहीं, मई, 2023 के बाद राष्ट्रीय राइफल्स के अलावा, अन्य अर्ध-सैनिकों के साथ सीआरपीएफ की लगभग 50 कंपनियों को भी मणिपुर भेजा गया था जिनकी राज्य भर में स्थायी मौजूदगी और सक्रियता है।”

लेकिन इतनी भारी तैनाती भी हालात नियंत्रित करने या सीमित करने में प्रभावी नहीं हुई। दो ‘उग्रवादी’ मैतेई समूहों- अरामबाई तेंगगोल और मैतेई लीपुन के साथ सशस्त्र नागरिक आजादी से घूम रहे हैं लेकिन कोई देखने वाला नहीं।

एबीवीपी और गुजरात से जुड़े मैतेई लीपुन प्रमुख प्रमोत सिंह का हाल ही में एक वीडियो साक्षात्कार में यह कहना दुर्भाग्यपूर्ण है कि “मैतेई लीपुन का हमला तो अभी तक शुरू ही नहीं हुआ है; लेकिन अब मैतेई लीपुन की ओर से यह होगा। जब कुछ विदेशियों ने हमारी भूमि पर घुसपैठ करके आक्रमण शुरू किया है तो हम चुप नहीं बैठेंगे।” अगर कानून के रक्षकों का ध्यान ऐसे बयानों पर नहीं जाता और इंफाल में बैठकर ऐसे बयान दिए जा सकते हैं, तो मणिपुर की दुर्दशा पर यह अपने आप में एक टिप्पणी है।


यह त्योहार कुछ अलग हटके है

किसी मौजूदा राष्ट्रपति के तौर पर द्रौपदी मुर्मू की पहली यात्रा ने गुवाहाटी से 250 किलोमीटर दूर दीफू में कार्बी युवा महोत्सव (केवाईएफ) के आठ दिवसीय स्वर्ण जयंती समारोह पर सबका ध्यान आकर्षित किया है। पूर्वोत्तर के सबसे बड़े जनजातीय गांव तारालांगसो में 672 एकड़ के विशाल कार्बी पीपल्स हॉल में आयोजित आठ दिवसीय उत्सव 12 जनवरी को शुरू हुआ।

महोत्सव की कल्पना 1974 में कार्बी भाषा, संस्कृति और व्यंजनों के प्रदर्शन और प्रोत्साहन के लिए हुई थी। यह रोमन लिपि अपनाने के आंदोलन से मेल खाता है, आज जिसका इस्तेमाल असम, मेघालय और अरुणाचल के दिमा हसाओ जिले में किया जाता है। हालांकि कामरूप जिले में कार्बी लोगों की पसंद असमिया लिपि ही है। 

केवाईएफ ‘अंतर-जनजाति’ और ‘अंतर-जनजाति एकता’ को बढ़ावा देने के एक मंच के रूप में विकसित हुआ है। कभी के चरमपंथी और सुरक्षाकर्मी जो पहले एक-दूसरे से लड़ते थे, आज उत्सव में एक साथ हैं। जाहिर है, संस्कृति राजनीतिक कार्यकर्ताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं को भी जोड़ती है। 

केवाईएफ आयोजकों का मानना ​​है कि इसमें निकटवर्ती नगालैंड में दो दशक पुराने हॉर्नबिल फेस्टिवल की तरह वैश्विक स्तर पर जाने की क्षमता है। इस वर्ष केवाईएफ स्वर्ण जयंती समारोहों के चार चरणों में 6,000 से अधिक सांस्कृतिक प्रदर्शन हुए। आगंतुकों के लिए पारंपरिक व्यंजनों और वस्तुओं का आनंद लेने के लिए लगभग 2,000 स्टॉल लगाए गए थे।

नशीली दवाओं पर नकेल

म्यांमार से तस्करी कर लाई गई हेरोइन को एसएफ (सनफ्लावर या शान फ्लावर) के नाम से जाना जाता है और यह ऐसे छोटे-छोटे डिब्बों में आते हैं जिससे साबुन के डिब्बों का भ्रम होता है। मिजोरम की नई  सरकार द्वारा नशीली दवाओं और इनकी तस्करी पर नई कार्रवाई शुरू की गई है जिसने अपने चुनावी वादों में मादक पदार्थों की तस्करी समाप्त करने का वादा किया था। जनवरी और अक्तूबर, 2023 के बीच उत्पाद शुल्क और नारकोटिक्स विभाग ने 76.22 किलोग्राम हेरोइन जब्त की जबकि 2022 में 33.4 किलोग्राम हेरोइन जब्त की गई थी। जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) की नई सरकार ने नवंबर में सत्ता संभाली है।

इस तेजी के पीछे वह गंभीर तथ्य अहम है जिसके अनुसार, 2023 में नशीली दवाओं के दुरुपयोग से लगभग 70 जानें गई थीं। हेरोइन इसका मुख्य कारण था और यह आंकड़ा 2021 और 2022 में दर्ज क्रमशः 47 और 43 से कहीं अधिक है। राज्य सरकार के अनुसार, 1984 से राज्य में नशीली दवाओं के दुरुपयोग से 218 महिलाओं सहित कुल 1,804 लोगों की मौत हो चुकी है। सदी के अंत में यह आंकड़ा चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया जब 2000 में 139 मौतें और 2004 में 143 मौतें दर्ज हुईं।

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