अच्छी सेहत से खूबसूरती में इजाफा होता है, ना कि गोरेपन से
भारत में गोरेपन की क्रीम आने से बहुत पहले से ही गोरेपन की चाहत लोगों में रही है। हालांकि, मैंने यह बार-बार लिखा है कि त्वचा की खूबसूरती में इजाफा अच्छी सेहत से होता है, गोरेपन से नहीं।
जानी-मानी सौंदर्य विशेषज्ञ शहनाज हुसैन का कहना है कि भारत में गोरेपन की क्रीम्स आने से बहुत पहले से ही गोरेपन की चाहत लोगों में रही है। हालांकि, मैंने यह बार-बार लिखा है कि त्वचा की खूबसूरती में अच्छी सेहत से इजाफा होता है, गोरेपन से नहीं। लेकिन फिर भी गोरेपन की चाहत आज भी मौजूद है और उसे ना जाने क्यों सुन्दरता का एक मापदंड भी माना जाता है। इसलिए देश में गोरेपन की क्रीम्स की मांग लगातार बढ़ती रही है। सवाल यह उठता है कि भारतीयों के लिए गोरापन इतना अहम क्यों है? शायद इसका सीधा रिश्ता हमारी सुंदरता की धारणा से है। अलग-अलग देशों में सुंदरता के अलग-अलग मापदंड होते हैं। बदकिस्मती से यह एक तथ्य है कि गोरापन हमारी सुंदरता की धारणा का अभिन्न अंग बन चुका है।
गोरेपन की क्रीम के विज्ञापन भी गोरेपन को खूबसूरती से जोड़ कर तमाम तरह की गलतफहमियों को बढ़ावा देते हैं। बहरहाल, हाल ही में फेशियल क्रीम्स के विज्ञापनों में थोड़ा सा बदलाव जरूर आया है। अब विज्ञापनों में गोरी त्वचा की बजाय सभी तरह की त्वचा के लिए फायदेमंद होने पर अधिक जोर दिया जा रहा है। एक विज्ञापन तो सांवली लड़कियों को भी दिखाता है। अब विज्ञापन का जोर गोरी त्वचा पर नहीं बल्कि ‘दमकती’ त्वचा पर है।
मशहूर फिल्म अदाकारा और निर्देशक नंदिता दास ने गोरेपन को लेकर भारतीय ऑब्सेशन के खिलाफ बेबाकी से लिखा और बोला है। जो जबरन गोरा बनाने के खिलाफ मुहिम में मील का पत्थर साबित हुआ। मैंने भी ‘ब्राउन इज ब्यूटीफुल’ शीर्षक से एक लेख लिखा था, जिसमें मैंने यह बताया था कि सांवले रंग के शख्स उचित रंगों, कपड़ों वगैरह से किस तरह प्रभावशाली लग सकते हैं।
2018 में भी स्वाभाविक ‘लुक’ पर ज्यादा जोर रहेगा। गोरेपन से ज्यादा अब जोर दमकती और सेहतमंद त्वचा पर है और रहेगा।
दरअसल प्रसाधनों यानी कास्मेटिक्स में अब ‘पर्सनलाइज्ड’ उत्पादों का ट्रेंड जोर पकड़ रहा है। ये उत्पाद अब व्यक्तिगत जरूरतों के आधार पर लोगों को आकर्षित करेंगे। यह एक अच्छा बदलाव है। जब मैंने अपना पहला हर्बल सैलून खोला था, तो मेरा ध्यान भी व्यक्तिगत त्वचा की खासियत और सेहत के मुताबिक उत्पादों और मेक अप के इस्तेमाल पर था।
हम सभी को एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड कौंसिल ऑफ इंडिया ऑन फेयरनेस क्रीम्स द्वारा जारी एडवरटाइजिंग गाइड लाइन्स का पालन करना ही चाहिए। भारत में गोरेपन की क्रीम्स के बाजार पर उचित नियंत्रण और दिशा की जरुरत भी है। मेरा मानना है कि विज्ञापनों को उत्पाद की क्वालिटी पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए, लोगों के आर्थिक और सामाजिक वर्ग और उनकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर कम।
आने वाले वक्त में ऐसा लगता है कि अब ब्यूटी प्रोडक्ट्स का फोकस निजी जरूरतों और एक व्यक्ति की अपनी त्वचा की खासियत पर अधिक होगा। हमने भी अपने रिटेल आउटलेट्स में ऐसे सलाहकारों को प्रशिक्षित किया है। जो ग्राहकों को उनकी त्वचा की क्वालिटी समझने और उसी के मुताबिक ब्यूटी प्रोडक्ट चुनने में मदद करते हैं। इससे लोगों का ध्यान मात्र गोरेपन से हट कर उनकी अपनी त्वचा की सेहत और खासियत पर जाता है। विज्ञापनों में भी यही चलन धीरे-धीरे गोरेपन से हमारे जुनून को खत्म करेगा और सुंदरता की हमारी अवधारणा सिर्फ गोरेपन तक ही सीमित नहीं रहेगी।
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