अयोध्या विवाद: महज 60 सेकेंड की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने नहीं सुना किसी का पक्ष, 10 जनवरी को अगली सुनवाई

अयोध्या में विवादित जमीन के मामले में जल्द सुनवाई करने और नई बेंच गठित करने पर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई 10 जनवरी तक टल गई। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच से इस मामले में जल्द सुनवाई करने की मांग की गई थी।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को अयोध्या राम मंदिर मामले में सुनवाई एक बार फिर टल गई। इस मामले में अगली सुनवाई 10 जनवरी को होगी। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में अगली सुनवाई नई बेंच करेगी। इस बेंच का गठन 10 जनवरी को किया जाएगा। अब नई बेंच ही ये तय करेगी कि क्या ये मामला फास्टट्रैक में सुना जाना चाहिए या नहीं?

खबरों के मुताबिक, राम मंदिर मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में महज 60 सेकेंड सुनवाई चली। इस दौरान किसी पक्ष से कोई दलील नहीं दी गयी।

वहीं राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद सुनवाई टालने के साथ एक जनहित याचिका को भी खारिज कर दिया है, जिसमें यह मांग की गई थी कि इस मामले की सुनवाई तुरंत शुरू हो और हर रोज इसकी सुनवाई की जाए। वकील हरिनाथ राम ने यह जनहित याचिका दायर की थी।

पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि यह मामला जनवरी के पहले हफ्ते में उचित पीठ के सामने सूचीबद्ध होगा, जो इस मामले की सुनवाई का कार्यक्रम तय करेगी। इस मामले लगातार सुनवाई टलने पर देश में सियासी पारा चढ़ गया था। वीएचपी, बीजेपी और शिवसेना समेत कई हिंदू संगठोनों सुप्रीम कोर्ट पर सवाल खड़े किए थे। साथ ही सुनवाई में हो रही देरी को लेकर नाराजगी जाहिर की थी।

बाद में अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने एक याचिका दाखिल सुप्रीम कोर्ट से सुनवाई की तारीख पहले करने की अपील की थी। हालांकि, कोर्ट ने इस मांग से इनकार कर दिया था। हिंदू महासभा इस मामले में मूल वादियों में से एक है। वीएचपी और शिवसेना समेत कई संगठन केंद्र की मोदी सरकार से राम मंदिर निर्माण की मांग को लेकर अध्यादेश की मांग कर रहे हैं और अंजाम भुगतने की धमकी दे रहे हैं। हाल ही में दिए एक टीवी को दिए इंटरव्यू में पीएम मोदी ने साफ कर दिया था कि पहले इस मामले में कोर्ट के फैसले का इंतजार किया जाएगा। अध्यादेश लाना सरकार का दूसरा वकल्प होगा।

वहीं 27 सितंबर, 2018 को तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने 2-1 के बहुमत से 1994 के एक फैसले में की गई टिप्पणी पांच जजों की पीठ के पास नए सिरे से विचार के लिए भेजने से इनकार कर दिया था। दरअसल, इस फैसले में टिप्पणी की गई थी कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है।

बता दें कि करीब सात दशक पुराने बाबरी मस्जिद और रामजन्मभूमि विवाद की अहम सुनवाई शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में होनी थी। 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सभी तीनों पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। जिसके बाद से ही यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

हाई कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने 30 सितंबर, 2010 को 2:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाए। इस फैसले को किसी भी पक्ष ने नहीं माना और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले पर रोक लगा दी थी।

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Published: 04 Jan 2019, 11:31 AM