गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार बापू के भगवाकरण की कोशिश, आम सहमति से नहीं पीएम की संस्तुति से लिया गया फैसला

गोरखपुर की गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देने की घोषणाकी चौतरफा आलोचना हो रही है। लेखकों और शिक्षाविदों का कहना है कि यह बापू के भगवाकरण की कोशिश है और इस बारे में फैसला आम सहमति के बजाए पीएम की संस्तुति से लिया गया है ।

गोरखपुर स्थिति गीता प्रेस का कार्यालय (फोटो सौजन्य : https://www.gitapress.org)
गोरखपुर स्थिति गीता प्रेस का कार्यालय (फोटो सौजन्य : https://www.gitapress.org)
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ऐशलिन मैथ्यू

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाले निर्णायक मंडल ने 2021 का गांधी शांति पुरस्कार गोरखपुर की गीता प्रेस को देने का फैसला लिया। रविवार को हुए इस फैसले पर शिक्षाविदों और गांधीवादियों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। वहीं लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा है कि उन्हें इस बैठक का निमंत्रण ही नही दिया गया जबकि नेता विपक्ष होने के नाते उन्हें निर्णायक मंडल में होना चाहिए था।

गीता प्रेस 100 साल पुरानी है और  हिंदू धार्मिक ग्रंथों की सबसे बड़ी प्रकाशक है। इसकी स्थापना जय दयाल गोयनका और हनुमान प्रसाद पोद्दार ने की थी। लेकिन आजादी के आंदोलन के बाद जब देश आजाद हुआ तो महात्मा गांधी की हत्या पर इसने खामोशी को चुना था। 1923 में स्थापना के बाद से ही गीता प्रेस कल्याण नाम से एक मासिक पत्रिका का 15 भाषाओं में प्रकाशन करती है। इसके अलावा गीता, रामायण, उपनिषद, पुराण आदि धार्मि ग्रंथों के अलावा चरित्र निर्माण की पुस्तकें और पत्रिकाएं भी छापती है। कल्याण पत्रिका की प्रसार संख्या करीब 2 लाख और इसके अंग्रेजी संस्करण कल्याण-कल्पतरु की प्रसार संख्या करीब एक लाख है।

मंत्रालय द्वारा प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार दिए जाने का फैसला आम सहमति और एकमत से हुआ था, लेकिन अधीर रंजन चौधरी का खुलासा कि उन्हें इस फैसले के लिए होने वाली बैठक में बुलाया ही नहीं गया, पूरे मामले पर सवाल खड़े करता है। उनका कहना है कि पुरस्कार के ले बने कोड ऑफ प्रोसीजर में कहा गया है कि नेता विपक्ष को ज्यूरी में होना चाहिए। लेकिन मोदी सरकार ने चौधरी को सूचना तक नहीं दी। अधीर रंजन चौधरी ने कहा, “उन्होंने पूरी तरह एकतरफा और अलोकतांत्रिक तरीके से फैसला लिया है।”

पुरस्कार के कोड ऑफ प्रोसीजर में कहा गया है कि पुरस्कार के विजेता का फैसला लेने के लिए ज्यूरी में पांच सदस्य होने चाहिए। प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष होंगे, उनके अलावा देश के प्रधान न्यायाधीश, लोकसभा में विपक्ष के नेता (और अगर नेता विपक्ष न हो तो लोकसभा में सर्वाधिक संख्या वाले विपक्षी दल के नेता) और दो प्रतिष्ठित नागरिक इसका हिस्सा होंगे। यह अभी स्पष्ट नहीं है कि दो प्रतिष्ठित नागरिक कौन थे जिनकी इस मामले में सहमति ली गई है, क्योंकि सरकार के प्रेस नोट में सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ही नाम है।


केंद्र के संस्कृति मंत्रालय ने कहा है कि पीएम मोदी की अध्यक्षता वाली ज्यूरी ने एकमत से गीता प्रेस को "अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में अपने उत्कृष्ट योगदान" के लिए यह सम्मान दिया जा रहा है। इसमें यह भी कहा गया है कि गीता प्रेस ने 14 भाषाओं में 41.7 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित की हैं, जिनमें 16.21 करोड़ श्रीमद्भगवद गीता भी शामिल है। 1992 में, पीवी नरसिम्हा राव सरकार द्वारा पोद्दार को उनकी छवि के साथ एक डाक टिकट के साथ सम्मानित किया गया था।

सरकारी बयान में कहा गया है कि  "गांधी शांति पुरस्कार 2021, मानवता के सामूहिक उत्थान में योगदान देने में गीता प्रेस के महत्वपूर्ण और अद्वितीय योगदान को मान्यता देता है, जो सच्चे अर्थों में गांधीवादी जीवन का प्रतीक है।"

इस बयान में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शांति और सामाजिक सद्भाव के गांधीवादी आदर्शों को बढ़ावा देने में गीता प्रेस के योगदान को रेखांकित किया है। उन्होंने कहा है कि गीता प्रेस को उसकी स्थापना के सौ साल पूरे होने पर गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जाना संस्था द्वारा सामुदायिक सेवा में किए गए कार्यों की पहचान है।

गीता प्रेस एंड मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया  के लेखक अक्षय मुकुल का कहना है कि गांधी जिन आदर्शों के लिए खड़े थे, यह पब्लिशिंग हाउस पूरी तरह उसके खिलाफ है। उन्होंने कहा कि, "प्रकाशकों का कहना है कि वे राजनीति से दूर रहते हैं, लेकिन जब कल्याण  ने शुरुआत की तो उन्होंने हिंदू महासभा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बाद में जनसंघ और फिर बीजेपी जैसे बड़े हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों का समर्थन किया।

महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी ने इस मुद्दे पर सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि यह गांधीवादी आदर्शों का उपहास है। उन्होंने कहा कि, "यह बेहतर होता अगर वे पिछले कुछ सालों की तरह बिल्कुल भी किसी को पुरस्कार नहीं देते।"

तुषार गांधी ने समझाया कि गीता प्रेस द्वारा अपनाई गई धार्मिक कट्टरवाद की विचारधारा, बापू द्वारा प्रचलित सनातन धर्म के साथ पूर्ण रूप से भिन्न है। उन्होंने ने कहा, "लेकिन गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देकर सरकार ने अप्रत्यक्ष रूप से आरएसएस और कट्टरपंथी हिंदुत्व की उसकी विचारधारा को पुरस्कृत किया है और उस विचारधारा को पुरस्कृत किया है जो बापू की हत्या करती है और आज नफरत और निर्णायकता के सिद्धांत का अभ्यास कर रही है।"


मुकुल ने भी गीता प्रेस को गांधी के नाम पर पुरस्कार देने की विडंबना की ओर इशारा किया। गांधी की हत्या के बाद जिन 25,000 लोगों को संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया गया था, उनमें से गीता प्रेस के संस्थापक और संपादक को भी गिरफ्तार किया गया था। उनकी गिरफ्तारी के बाद जब सर बद्रीदास गोयनका ने जीडी बिड़ला से उनकी मदद करने की गुहार लगाई तो उन्होंने इनकार कर दिया था। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने कहा था कि दोनों सनातन धर्म नहीं बल्कि शैतान धर्म का प्रचार कर रहे थे, मुकुल ने कहा।

हालांकि यह एक तथ्य है कि गीता प्रेस के महात्मा गांधी के साथ घनिष्ठ संबंध थे, मुकुल ने कहा, लेकिन 1930 के दशक की शुरुआत में गांधी के मंदिर में प्रवेश पर जोर देने, पूना पैक्ट के बाद सहभोज और बाद में गांधी के हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए काम करने के कारण विभाजन से पहले ही संबंध पूरी तरह से बिगड़ गए थे। उन्होंने कहा कि उन्होंने विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण के लिए गांधी को दोषी ठहराया। कल्याण के लेखों के माध्यम से, इसने न केवल निजी और सार्वजनिक रूप से गांधी की आलोचना करते हुए, हिंदू-मुस्लिम विभाजन को बल दिया, बल्कि सांप्रदायिक नफरत को भी हवा दी।

मुकुल ने अपनी किताब में लिखा है कि गीता प्रेस और कल्याण के जिस पहलू का वर्तमान समय में सबसे ज्यादा महत्व है, वह है आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) और कई अन्य सांप्रदायिक संगठनों को मंच प्रदान करना। स्वतंत्रता के बाद के वर्षों में देखा गया है कि गीता प्रेस हिंदू कोड बिल के खिलाफ आंदोलन और गौ-रक्षा आंदोलन का एक माध्यम बन गया था।

मुकुल कहते हैं कि, “यह विडंबना भी है क्योंकि गीता प्रेस का आदर्श वाक्य "भक्ति, ज्ञान और त्याग" है, लेकिन उनके कार्य इसके विपरीत हैं।“ उनका कहना है कि इतिहास के सभी ज्वलंत बिंदुओं पर, गीता प्रेस ने आरएसएस और हिंदू महासभा का बचाव किया है। उन्होंने बाबरी मस्जिद विध्वंस का समर्थन करते हुए कहा कि जो गिराया गया वह मस्जिद नहीं, बल्कि एक मंदिर था क्योंकि वह रामजन्मभूमि पर था। वास्तव में राम मंदिर के निर्माण के लिए सबसे पहले कोष की शुरुआत गीता प्रेस ने 1949 में की थी।' उन्होंने राम राज्य परिषद और हिंदू महासभा जैसे रूढ़िवादी संगठनों का वोट भी मांगा था।


तुषार गांधी ने कहा कि वह इस बात से हैरान नहीं हैं कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एक 'समिति' ने पुरस्कार दिया, क्योंकि यह फैसला प्रधानमंत्री का है जिस पर एक आज्ञाकारी समिति की मुहर लगी है। गांधी ने जोर देकर कहा, "यह गांधी के भगवाकरण का एक और प्रयास है।"

इससे पहले गांधी शांति पुरस्कार इसरो (2014), रामकृष्ण मिशन (1998), ग्रामीण बैंक ऑफ बांग्लादेश (2000), अक्षय पात्र फाउंडेशन (2016) जैसे संगठनों को दिया जा चुका है। आर्कबिशप डेसमंड टूटू (2005), डॉ. नेल्सन मंडेला (2000), सुल्तान कबूस बिन सैद अल सैद (2019) और शेख मुजीबुर रहमान (2020) को भी इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

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