पश्चिमी यूपी में सांप्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिशें लगातार जारी, लेकिन लोगों ने समझदारी से काबू में रखे हैं हालात
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लोगों में आम धारणा कि सारी घटनाएं एक खास मकसद से चुनावों को प्रभावित करने के लिए की जा रही हैं। साथ ही यह भी समझ बनी है कि ऐसे मामलों में जो भी दोषी हो उसे सामुदायिक स्तर पर भी सबक सिखाया जाना चाहिए।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक दो नहीं बल्कि कई ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं जिनसे सांप्रदायिक तनाव पैदा हो सकता था। हालांकि अभी तक हिंसा नहीं हुई है, लेकिन हालात ऐसे जरूर पैदा किए जा रहे हैं कि आने वाले समय में कभी भी कुछ भी होने की आशंका है। असदुद्दीन ओवैसी की कार पर गोली चलाए जाने की घटना इसी कड़ी का हिस्सा है।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से लेकर यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ और अन्य बीजेपी नेताओं तक, सभी कैराना और मुजफ्फरनगर में चिल्ला-चिल्लाकर लोगों को बीते वर्षों को दंगों की याद दिला रहे हैं और भड़काऊ तरीके से लोगों को उकसाने की कोशिश कर रहे हैं कि बीजेपी के सत्ता में आने से पहले महिलाएं असुरक्षित थीं। लेकिन गौर करने वाली बात है कि दोनों ही समुदायों के लोगों ने अभी तक संयम बरकरार रखा है।
इसके अलावा भी उकसाने की कोशिशें लगातार जारी हैं। हाल ही में प्रयागराज में हुई धर्म संसद में फिर वही सबकुछ हुआ जो हरिद्वार में हुआ था, जाहिर है यह सब सत्ता की रजामंदी के बिना नहीं हो सकता। प्रयागराज धर्म संसद से इशारा लेते हुए ही योगी आदित्यनाथ ने 80- 20 की बात की थी कि यह चुनाव 80 फीसदी बनाम 20 फीसदी का बयान दिया था।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सरधना में अभी पहली फरवरी को एक युवा लड़के की हत्या कर दी गई। लेकिन दोनों ही समुदायों ने समझदारी से काम लेते हुए तुरंत ही मामले को बिगड़ने से रोका और बात प्रेम प्रसंग पर आकर खत्म हो गई। दोनों ही तरफ के बुजुर्गों ने मामले में दखल दिया और हालात हाथ से नहीं निकल सके।
एक दिन बाद ही 3 फरवरी को मुजफ्फरगर के शाहपुर क्षेत्र के आदमपुर गांव में एक मंदिर में मूर्तियां तोड़ने का मामला सामने आया। तनाव बढ़ने लगा और केंद्रीय मंत्री संजीव बालयान तुरंत मौके पर पहुंचे। लेकिन यहां भी दोनों तरफ के लोगों ने बात को संभाला और स्थिति को काबू में किया।
4 फरवरी को पुलिस ने बिजनौर से एसपी-आरएलडी उम्मीदवार और उनके समर्थकों पर राष्ट्रविरोधी नारे लगाने का मामला दर्ज किया। बीजेपी की आईटी सेल और पुलिस का दावा है कि उम्मीदवार के समर्थकों ने पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए। टीवी चैनल भी पीछे नहीं रहे। लेकिन उम्मीदवार नीरज चौधरी का कहना है कि, “मैं स्थानीय नेता अदीब अंसारी के घर गया था, जहां लोगों ने अदीब भाई जिंदाबाद के नारे लगाए थे, लेकिन बीजेपी आईटी सेल, पुलिस और मीडिया ने इसे पाकिस्तान जिंदाबाद बना दिया।” सफाई देने के बावजूद पुलिस ने नीरज चौधरी पर राष्ट्रद्रोह की धारा 24-ए, धार्मिक भावनाएं भड़काने की धारा 35 ए और समुदायों के बीच दुश्मनी पैदा करने की धारा 33ए के साथ ही कई धाराओं में मामला दर्ज कर लिया।
इलाके के एएसपी प्रवीण रंजन सिंह का कहना है कि, “डॉ नीरज ने कोविड नियमों का उल्लंघन किया और उनके समर्थकों ने पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए।” लेकिन सवाल है कि कोई भी उम्मीदवार ऐसे निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव को खराब करने वाले नारे क्यों लगवाएगा जहां का इतिहास ही सांप्रदायिक हिंसा का रहा है। इसका भी कोई जवाब नहीं है कि आखिर अदीब भाई जिंदाबाद का नारा लगाने से किसी की धार्मिक भावनाएं किस तरह आहत हो सकती हैं।
पिछले महीने 22 जनवरी को सहारनपुर जिले के रामपुर मनिहारान के लुंधी गांव में भी एक मंदिर में मूर्तियां टूटी पाई गई थीं। वहां भी तनाव बढ़ा था लेकिन लोगों ने खुद ही हालात को बिगड़ने से रोका।
ओवैसी की कार पर टोल प्लाजा पर फायरिंग की गई और वहां के सीसीटीवी में पूरी घटना कैद हुई, इसके बाद पुलिस ने आनन-फानन गाजियाबाद जिले के बादलपुर गांव के सचिन गुर्जर को हिरासत में लिया। दूसरे आरोपी की पहचान शुभम के तौर पर हुई है। उनका दावा है कि वे ओवैसी के बयानों से गुस्से में थे। लेकि अभी तक इन आरोपियों के रसूख और संबंधों के साथ ही यह भी सामने नहीं आया है कि इन्हें हथियार कहां से मिले।
एक बार फिर लोगों ने समझदारी और संयम से काम लेते हुए हालात नहीं बिगड़ने दिए। लोगों में आम धारणा बन गई है कि सारी घटनाएं एक खास मकसद से चुनावों को प्रभावित करने के लिए की जा रही हैं। साथ ही यह भी समझ बनी है कि ऐसे मामलों में जो भी दोषी हो उसे सामुदायिक स्तर पर भी सबक सिखाया जाना चाहिए।
फिलहाल लोग सांस रोक कर मतदान की तारीख का इंतजार कर रहे हैं क्योंकि उन्हें आशंका है कि आने वाले दिनों में इसी किस्म की कुछ और घटनाओं को अंजाम दिया जा सकता है।
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