मिजोरम चुनाव में असम सीमा विवाद के हावी होने की संभावना, जोरमथांगा और बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती
असम-मिजोरम सीमा विवाद पर पिछली बैठक में यह फैसला लिया गया था कि मिजोरम अपने दावे का समर्थन करने के लिए तीन महीने के भीतर गांवों की सूची, उनके क्षेत्र, भू-स्थानिक सीमा, लोगों की जातीयता और अन्य प्रासंगिक जानकारी प्रस्तुत करेगा, जिसकी जांच की जा सकती है।
मिजोरम में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। मिजोरम की राजनीति में मिजो राष्ट्रवाद हमेशा मुख्य मुद्दा रहा है। हालांकि, असम के साथ लंबे समय से लंबित अंतर-राज्यीय सीमा विवाद का इस बार 40 सदस्यीय मिजोरम विधानसभा के चुनाव के प्रमुख मुद्दों में से एक होने की संभावना है। ऐसा होना वर्तमान सीएम जोरामथंगा और बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है।
मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरामथंगा ने अपने राज्य की राजनीति के बारे में कहा कि विधानसभा चुनाव लगभग एक साल दूर हैं और अगले कई महीनों में स्थिति बदल सकती है। अगले विधानसभा चुनावों के बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। उन्होंने कहा, "मैं चुनाव पूर्व परिदृश्य के बारे में अभी भविष्यवाणी करने में असमर्थ हूं। एक महीने में राजनीति में बहुत कुछ बदल सकता है।"
वर्तमान में जोरामथंगा तीसरे कार्यकाल (1998-2003, 2003-2008 और 2018 से 2023) के लिए मुख्यमंत्री का पद संभाल रहे हैं। अन्य भारतीय राज्यों के विपरीत, ईसाई बहुल मिजोरम में चुनाव के समय को छोड़कर राजनीतिक गतिविधि दिखाई नहीं देती है। समाज संचालित संगठन और एनजीओ, विशेष रूप से यंग मिजो एसोसिएशन (वाईएमए) पारंपरिक रूप से अधिकांश मुद्दों और घटनाओं पर हावी हैं। वाईएमए और मिजो समाज की पहल के बाद चुनाव प्रक्रिया हमेशा कम से कम प्रतिद्वंद्विता के साथ एक सहज मामला है। 2018 तक लगातार 10 वर्षों तक पूर्वोत्तर राज्य पर शासन करने वाली एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनावों में केवल पांच सीटें हासिल कीं। हालांकि पार्टी, यहां की मुख्य विपक्षी दल है।
लगभग पांच दशक (1973-2021) के रिकॉर्ड के लिए मिजोरम में कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले 80 वर्षीय पूर्व मुख्यमंत्री ललथनहवला 1984 और 2018 के बीच पांच बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। साल 2018 में ललथनहवला ने सेरछिप और चम्फाई दक्षिण से चुनाव लड़ा था, लेकिन वह सफल नहीं हो सके। उन्होंने इससे पहले ही ऐलान कर दिया था कि वह 2023 का विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। 1986 में जब केंद्र सरकार और तत्कालीन उग्रवादी संगठन एमएनएफ लाल थनहवला के बीच मिजोरम शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, तब लाल थनहवला ने एमएनएफ नेता लालडेंगा के लिए मुख्यमंत्री पद को छोड़ दिया था।
फरवरी 2021 में तख्तापलट के जरिए देश में सेना द्वारा सत्ता पर कब्जा करने के बाद 30,500 से अधिक म्यांमार के नागरिकों ने पूर्वोत्तर राज्य में शरण ली है, जबकि लगभग 390 कुकी-चिन आदिवासी दक्षिण-पूर्व बांग्लादेश के चटगांव पहाड़ी इलाकों से भाग गए और उन्होंने पिछले साल 20 नवंबर से मिजोरम में शरण ली हुई है। पार्टी संबद्धता के बावजूद कांग्रेस और बीजेपी सहित मिजोरम के सभी राजनीतिक दल म्यांमार और बांग्लादेश शरणार्थियों से निपटने में सरकार का समर्थन करते रहे हैं। सीएम जोरामथंगा ने कहा कि सभी विपक्षी पार्टियां शरणार्थियों की समस्या से निपटने में राज्य सरकार का पूरा सहयोग कर रही हैं।
सत्तारूढ़ एमएनएफ बजेपी के नेतृत्व वाले कांग्रेस विरोधी गठबंधन नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (एनईडीए) का एक हिस्सा है। कांग्रेस छोड़कर बीजेपीमें शामिल हुए असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की पूर्वोत्तर इकाई एनईडीए के संयोजक हैं। हालांकि, मिजोरम में बीजेपी और सत्तारूढ़ एमएनएफ के नेताओं के बीच कई मुद्दों पर संबंध इतने अच्छे नहीं हैं। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में, दस साल बाद सत्ता में वापसी करने वाली एमएनएफ ने 40 में से 27 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं कांग्रेस पांच और बीजेपी ने एक सीट पर जीत दर्ज की थी। 2018 के चुनावों में स्थानीय दलों द्वारा समर्थित सात निर्दलीय सदस्य भी चुने गए थे।
मिजोरम की राजनीति में मिजोरम पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (एमपीसी), जोरम नेशनलिस्ट पार्टी (जेडएनपी), हमार पीपुल्स कन्वेंशन (एचपीसी), पीआरआईएसएम और जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, इस साल नवंबर-दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में असम-मिजोरम अंतर-राज्य सीमा विवाद प्रमुख मुद्दा होने की संभावना है। सीमा विवाद पर आइजोल और गुवाहाटी में कई मंत्रिस्तरीय बैठकें हुई हैं, जिसमें दोनों पक्षों ने सीमा के दोनों ओर रहने वाले समुदायों के बीच शांति और सद्भाव बनाए रखने पर सहमति व्यक्त की है, ताकि उनके सदियों पुराने संबंधों को और मजबूत किया जा सके।
पिछले साल नवंबर में हुई पिछली बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि मिजोरम अपने दावे का समर्थन करने के लिए तीन महीने के भीतर गांवों की सूची, उनके क्षेत्र, भू-स्थानिक सीमा, लोगों की जातीयता और अन्य प्रासंगिक जानकारी प्रस्तुत करेगा, जिसकी जांच की जा सकती है। विवादित मुद्दे के सौहार्दपूर्ण समाधान पर पहुंचने के लिए दोनों पक्षों की क्षेत्रीय समितियों का गठन किया है।
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