शेरों पर मचा शोर थमा नहीं है अभी, दावों के बीच खंगाला जा रहा इतिहास, शिल्पकार ने माना- है एक फीसदी की त्रुटि

शिल्पकार सुनील देवरे कहते हैं कि “इसे अधिकतम अशोक स्तंभ पर अंकित कृति जैसा ही रखा गया है। यह 99 प्रतिशत मूल कृति की तरह ही है। प्रतिकृति में बने शेरों को देखने के एंगल के कारण विवाद हो रहा है।“

फोटो : सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

अशोक स्तंभ के शेरों के आकार और उनकी मुद्राओं पर शुरु हुआ शोर अभी थमा नहीं है। सियासत अपनी जगह, अब तो इतिहास के पन्ने भी खंगाले जा रहे हैं और इस सबके बीच सोशल मीडिया पर सत्ता समर्थक और विरोधियों के बीच शाब्दिक युद्ध भी जारी है।

तो सबसे पहले बताते हैं कि कुल मिलाकर विवाद या मुद्दा क्या है?

हुआ यूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए बने संसद भवन के द्वार के पर लगाई गई अशोक स्तंभ के शेरों की प्रतिकृति का अनावरण किया। जैसा कि अपेक्षित था मीडिया में इसका जोर-शोर से प्रचार-प्रसार भी हुआ। तस्वीरें सामने आईं।

पहले तो इसी बात पर विवाद हो गया कि आखिर बौद्ध धर्म मानने वाले अशोक के स्तंभ की प्रतिकृति के अनावरण के मौके पर वैदिक विद्या से क्यों पूजा-अर्चना हुई। लेकिन हम इस मुद्दे को छोड़ देते हैं।

असली मुद्दा या विवाद शुरु हुआ इस स्तंभ के शेरों की भाव-भंगिमा पर। अलग-अलग ऐंगल से खींची गई तस्वीरें सामने आने लगीं और दावे किए गए कि इन शेरों की भाव-भंगिमा आक्रामक है, यह वह मुद्रा नहीं है जो असली अशोक स्तंभ में है।

विवाद बढ़ने लगा और सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं का तूफान सा आ गया। विपक्षी नेता भी इसमें कूदे और कई ने तो अशोक की लाट के शांत और सौम्य शेरों की तुलना में इस प्रतिकृति का स्वरूप आक्रामक करने के आरोप लगाए। कुछ ने इन्हें हटाने की मांग की तो कुछ ने कानूनी कार्रवाई करने को कहा।

जवाब भी सामने आने लगे। जाहिर है सत्ता समर्थक इस मुद्दे पर हर उस कृत्य का बचाव करते हैं जिसमें सरकार या पीएम का नाम जुड़ा हो।

ताजा प्रतिक्रिया फिल्म अभिनेता अनुपम खेर ने जताई। उन्होंने ट्विटर पर इन शेरों की घूमती हुई वीडियो शेयर करते हुए लिखा, “अरे भाई! शेर के दांत होंगे तो दिखाएगा ही! आख़िरकार स्वतंत्र भारत का शेर है। ज़रूरत पड़ी तो काट भी सकता है!...”


उधर वरिष्ठ पत्रकार शीला भट्ट ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय रखी। उन्होंने कहा तो कुछ नहीं, अलबत्ता सारनाथ खंडहरों की एक तस्वीर शेयर करते हुए लिखा कि 2.15 मीटर (7 फुटी) की ऊंचाई वाला यह स्तंभ 1905 का है और असली है। इस तस्वीर में अशोक स्तंभ भी नजर आ रहा है। दावा है कि यही असली स्तंभ है या जिसे आम लोग अशोक की लाट कहते हैं। वैसे कई लोगों ने इस तस्वीर पर लिखा कि अब यह स्तंभ सारनाथ म्यूजियम की शोभा बढ़ा रहा है।

इस विवाद में सर्वाधिक मुखर रहे हैं दलित मुद्दों को जोरशोर से उठाने वाले पत्रकार दिलीप मंडल। उन्होंने पहले ही दिन इन शेरों की भाव-भंगिमा पर सवाल उठाया था। उन्होंने लिखा था, “अशोक स्तंभ बौद्ध प्रतीक है। अब वह राष्ट्रीय प्रतीक है। नए संसद भवन में अशोक स्तंभ की स्थापना करने के लिए ब्राह्मणों को बुलाकर पूजा और पाखंड करना न सिर्फ इतिहास की परंपरा के खिलाफ है बल्कि असंवैधानिक भी है। बौद्ध भंते जी को बुलाते। या किसी को न बुलाते।”


इस बीच दैनिक जागरण अखबार ने इस विषय पर उस शिल्पकार के हवाले से खबर प्रकाशित की है जिसने इन शेरों की प्रतिकृति को गढ़ा है। अखबार के मुताबिक शिल्पकार सुनील देवरे कहते हैं कि “इसे अधिकतम अशोक स्तंभ पर अंकित कृति जैसा ही रखा गया है। यह 99 प्रतिशत मूल कृति की तरह ही है। प्रतिकृति में बने शेरों को देखने के एंगल के कारण विवाद हो रहा है।“

यानी एक तरह से माना जाए कि एक प्रतिशत की त्रुटि तो है ही। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सुनील देवरे ने कहा कि प्रतिकृति का आकार बड़ा होने के कारण इससे जुड़ी छोटी-छोटी चीजों की तरफ भी लोगों का ध्यान जा रहा है। वैसे उन्होंने माना कि मूल कृति में कुछ क्षति होने के कारण छोटे बदलाव हो सकते हैं, लेकिन हमने प्रतिकृति को अधिकतम मूल कृति के जैसा ही तैयार किया है।

अखबार के मुताबिक शेरों की मुद्रा पर विवाद को लेकर देवरे ने कहा कि जो फोटो इंटरनेट मीडिया पर वायरल है, वह जूम से बाहर है। फोटो नीचे से खींचने के एंगिल के कारण शेरों की मुद्रा में बदलाव दिख रहा है। उन्होंने कहा कि, “प्रतिकृति तैयार करने से पहले हमने संग्रहालय जाकर इस पर शोध किया। हमने केवल ढाई फीट की मूल कृति के आकार को बड़ा किया है। जब आप ऐसा करते हैं तो मूल कृति के सभी डिटेल विशालता के कारण साफ दिखते हैं।“

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