सीबीआई से हटाए जाने के खिलाफ आलोक वर्मा ने दिया नौकरी से इस्तीफा, कांग्रेस ने मोदी सरकार की नीयत पर उठाए सवाल
पीएम मोदी की अगुवाई वाली चयन समिति द्वारा सीबीआई चीफ के पद से हटाए गए आलोक वर्मा ने भारतीय पुलिस सेवा से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि पद से हटाए जाने से पहले सफाई का मौका नहीं दिया गया और पूरी प्रक्रिया में न्याय के सिद्धांतों की अवहेलना की गई।
पूर्व सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने पीएम मोदी की अगुवाई वाली चयन समिति द्वारा पद से हटाए जाने के बाद नौकरी से इस्तीफा दे दिया है। इससे पहले उन्होंने डीजी फायर सर्विसेज एंड होमगार्ड का पद संभालने से इनकार कर दिया था। उन्होंने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को भेजे अपने पत्र में सरकार और सीवीसी को निशाना बनाते हुए खुद को हटाए जाने की प्रक्रिया पर कई गंभीर सवाल उठाए हैं। अपने पत्र में उन्होंने लिखा है कि सीबीआई निदेशक के पद से हटाने के पहले उन्हें अपनी सफाई का मौका नहीं दिया गया। आलोक वर्मा ने कहा कि इस पूरी प्रक्रिया में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की अवहेलना की गई और चयन समिति ने अपने फैसले में इस बात का ध्यान नहीं रखा कि सीवीसी की पूरी रिपोर्ट उस शख्स के बयान पर आधारित है, जिसकी जांच खुद सीबीआई कर रही है।
आलोक वर्मा को सीबीआई प्रमुख के पद से हटाए जाने पर कांग्रेस ने भी मोदी सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं। कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि राफेल की जांच से बचने के लिए मोदी सरकार ने आलोक वर्मा को सीबीआई से हटाया है। सिंघवी ने कहा कि सीवीसी मोदी सरकार के सहयोगी के रूप में काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि सीबीआई निदेशक को हटाने का पूरा आधार सीवीसी की रिपोर्ट थी, जबकि सीवीसी न तो नियुक्त करती है और न ही हटा सकती है। उन्होंने कहा, “ऐसा कर सरकार बेनकाब हो गई है, क्योंकि सीवीसी द्वारा लगाए गए 10 आरोपों में से 6 को सीवीसी ने खुद निराधार माना है। बचे 4 आरोपों में से एक के बारे में सीवीसी रिपोर्ट में कहा गया है कि रिश्वत के भुगतान का कोई सबूत नहीं है और साक्ष्यों के सत्यापन के लिए आगे की जांच जरूरी है।
सिंघवी ने मोदी सरकार पर सीवीसी कार्यालय का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए कहा कि अस्थाना के आरोपों के आधार पर समिति ने आलोक वर्मा को निदेशक पद से हटाया, जबकि हाई कोर्ट ने अस्थाना की याचिका को खारिज कर उनके खिलाफ जांच समयबद्ध तरीके से पूरा करने का आदेश दिया है। यह पूरा कारनामा सरकार ने अपने आप को राफेल या दूसरे आरोपों से बचाने के लिए अंजाम दिया है।
गौरतलब है कि गुरुवार को पीएम मोदी की अध्यक्षता वाली सेलेक्ट कमेटी ने आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद से हटा दिया था। इसके बाद सरकार ने उनका तबादला डीजी फायर सर्विसेज, सीविल डिफेंस और होमगार्ड के पद पर कर दिया था। इससे एक दिन पहले बुधवार को वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआई निदेशक का पद संभाला था। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में केंद्र सरकार के 23 अक्टूबर के उस फैसले को पलट दिया था, जिसमें वर्मा को सीबीआई निदेशक क पद से हटाकर जबरन छुट्टी पर भेज दिया गया था। इस्तीफा देने से पहले आलोक वर्मा ने डीजी फायर सर्विसेज एंड होमगार्ड का पद संभालने से भी इनकार कर दिया था।
गुरुवार को पीएम मोदी की अध्यक्षता में हुई सेलेक्ट कमेटी की बैठक में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और प्रधान न्यायाधीश के प्रतिनिधि के तौर पर जस्टिस ए के सिकरी मौजूद थे। समिति की बैठक में खड़गे द्वारा कई आपत्तियां दर्ज कराने और असहमति के बावजूद समिति ने 2 बनाम 1 के बहुमत से आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद से हटाने का फैसला लिया था। जिसके बाद कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने उनका तबादला फायर सर्विसेज एंड होमगार्ड में बतौर डीजी कर दिया
बता दें कि बीते साल अक्टूबर में सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और एजेंसी में दूसरे नंबर के अधिकारी राकेश अस्थाना की लड़ाई सार्वजनिक होने के बाद मोदी सरकार ने 23 अक्टूबर की आधी रात को आलोक वर्मा को पद से हटाकर जबरन छुट्टी पर भेज दिया था। आलोक वर्मा ने राकेश अस्थाना के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज करने के आदेश दे दिए थे, जबिक अस्थाना ने भी वर्मा पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप लगाए थे। दोनों बड़े अधिकारियों के बीच हुई लड़ाई को सत्ता और अहम के टकराव की लड़ाई बताया गया था। लेकिन अंदरखाने से चर्चा ये थी कि आलोक वर्मा राफेल मामले में मिली शिकायतों पर कार्रवाई करना चाहते थे।
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