लिव इन में रह रही शादीशुदा महिला को संरक्षण देने से इलाहाबाद हाईकोर्ट का इनकार, 5 हजार रुपये का लगाया जुर्माना
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक लिव-इन जोड़े की सुरक्षा याचिका खारिज करते हुए कहा कि महिला पहले से ही शादीशुदा है और किसी अन्य पुरुष के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक लिव-इन जोड़े की सुरक्षा याचिका खारिज करते हुए कहा कि महिला पहले से ही शादीशुदा है और किसी अन्य पुरुष के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में है। उच्च न्यायालय ने दंपति पर 5,000 रुपये का जुर्माना लगाते हुए कहा, "हम यह समझने में विफल हैं कि इस तरह की याचिका को कैसे अनुमति दी जा सकती है क्योंकि यह समाज में अवैधता की अनुमति देगा।"
अलीगढ़ की याचिकाकर्ता गीता बालिग है और याचिकाकर्ता नंबर दो के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में है। उच्च न्यायालय के समक्ष दायर एक रिट याचिका में, उन्होंने मांग की कि गीता के पति और परिवार के अन्य सदस्यों को कोर्ट यह आदेश दे कि वे उनके 'शांतिपूर्ण लिव-इन रिलेशन' में हस्तक्षेप न करें और उन्हें परेशान न करें।
न्यायमूर्ति कौशल जयेंद्र ठाकर और न्यायमूर्ति दिनेश पाठक की खंडपीठ ने मंगलवार को उनकी याचिका को खारिज करते हुए रिट याचिका को भी खारिज कर दिया। पीठ ने कहा, "क्या हम उन लोगों को सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं जिन्होंने ऐसा कार्य किया है जो हिंदू विवाह अधिनियम के विरुद्ध हैं। भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 किसी व्यक्ति को अपनी स्वतंत्रता की अनुमति दे सकता है, लेकिन स्वतंत्रता उन पर लागू होने वाले कानून के दायरे में होनी चाहिए।"
संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा प्रदान करता है। यह गारंटी देता है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।
अदालत ने आगे यह देखते हुए कि महिला मामले में एक प्रतिवादी की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है, टिप्पणी की, "उसने जो भी कारणों से अपने पति से दूर जाने का फैसला किया है, क्या हम उन्हें जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के आड़ में लिव इन में रहने की अनुमति दे सकते हैं।"
अदालत ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं पर लगाया गया जुमार्ना उनके द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के पास जमा किया जाएगा।
आईएएनएस के इनपुट के साथ
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