होई वही जो सरकार रचि राखा, आप भी तो नहीं भूल गए सिद्दीकी कप्पन को? अरे वही जो पत्रकार हैं!
2 अगस्त को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सिद्दीकी कप्पन की जमानत याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा और फिर एक दिन बाद याचिका रद्द कर दी। कप्पन को करीब 22 महीने पहले यूपी पुलिस ने तब गिरफ्तार किया था जब वह हाथरस बलात्कार-हत्याकांड को कवर करने जा रहे थे।
लगता है, लोगों के सामने ही बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कॉर्पस) याचिका लगाने की जरूरत है। क्या किसी को याद भी है कि पत्रकार सिद्दीकी कप्पन किस हाल में हैं? अभी 2 अगस्त को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने उनकी जमानत याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा और फिर एक दिन बाद याचिका रद्द कर दी। मुख्य धारा की मीडिया तो ऐसी खबरें कम ही छापता है और छापता भी है, तो अंदर के किसी पेज पर किसी कोने में। लेकिन सोशल मीडिया में भी कम ही सही, यह खबर कहीं-कहीं दिखी। जिन्होंने इसे दिखाया-पढ़ाया, उनका शुक्रिया, पर यह सवाल अपनी जगह है कि लखनऊ के उन पत्रकारों को भी यह सूचना क्यों नहीं थी कि कप्पन उनके शहर की जेल में हैं जबकि वे सभी मुख्य धारा या सोशल मीडिया में आज भी खूब देखे-सुने-पढ़े जाते हैं।
कप्पन को करीब 22 महीने पहले यूपी पुलिस ने तब गिरफ्तार किया था जब वह हाथरस बलात्कार-हत्याकांड को कवर करने जा रहे थे। पब्लिक मेमोरी छोटी होती है, इसलिए याद दिलाना जरूरी हैः 14 सितंबर, 2020 को हाथरस जिले में 19 साल की एक दलित युवती के साथ गैंग रेप हुआ था। बहुत मुश्किल से उसे दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती कराया जा सका जहां दो हफ्ते बाद उसका निधन हो गया। पुलिस शव को रातोंरात उसके गांव ले गई और जबरन उसकी अंत्येष्टि कर दी गई। इसे देश-विदेश के तमाम पत्रकारों ने कवर किया लेकिन वहां जाते हुए कप्पन को गिरफ्तार कर लिया गया। कप्पन के साथ एक अनुवादक भी थे क्योंकि वह हिन्दी समझने-बोलने में माहिर नहीं हैं। अभी हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति कृष्ण पहल की बेंच में उनकी जमानत याचिका के खिलाफ राज्य के अतिरिक्त एडवोकेट जनरल वीके शाही ने तर्क प्रस्तुत किया कि कप्पन ऐसे दूसरे सहअभियुक्त के साथ हाथरस में सद्भाव बिगाड़ने जा रहे थे।
वैसे जो आदमी हिन्दी नहीं जानता हो, वह हाथरस में कैसे सांप्रदायिक-सामाजिक सद्भाव बिगाड़ सकता है, यह लाख टके का सवाल है! शाही ने कोर्ट को बताया कि इन्हें पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से पैसे मिलते हैं। इनलोगों ने संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) विरोधी प्रदर्शनों में हिस्सा लिया और ये लोग बाबरी मस्जिद पर कोर्ट के आदेश पर कथित तौर पर गड़बड़ी फैलाना चाहते थे।
कप्पन मलयाली न्यूज पोर्टल अझिमुखम के लिए फ्रीलांसिंग करते थे। उन्हें मथुरा में टोल प्लाजा के पास 5 अक्तूबर, 2020 को भारतीय दंड संहिता की धारा 151 के तहत वाहन चालक और वाहन में सवार तीन अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार किया गया। यह धारा मजिस्ट्रेट के आदेश और वारंट के बिना भी किसी को गिरफ्तार करने का पुलिस को अधिकार देती है। सरकार की तरफ से तर्क दिया गया है कि इस मामले में गिरफ्तार रउफ शरीफ केरल में पीएफआई के सचिव हैं और उन्होंने हाथरस जाने के लिए कप्पन के एकाउंट में 25,000 रुपये ट्रांसफर किए।
सरकार की ओर से बताया गया कि उनके घर से प्रतिबंधित संगठन- स्टूडेन्ट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का साहित्य बरामद किया गया, वह संगठन के लिए काम कर रहे थे इसलिए कप्पन को जमानत नहीं दी जानी चाहिए। शाही ने कोर्ट को यह भी बताया कि कप्पन पहले मलयालम दैनिक थेजस के लिए काम करते थे जिसका स्वामित्व पीएफआई के पास था, वे सभी आपस में जुड़े थे और कप्पन पीएफआई की तरफ से काम करते थे। यह अखबार 2018 में बंद हो गया और अब उसका सिर्फ ऑनलाइन एडीशन है।
कप्पन करीब 15 साल से पत्रकार हैं। अब वह 'यूपी सरकार की कृपा' जिस तरह झेल रहे हैं, उसे नीचे दी गई जानकारी से समझा जा सकता है।
कप्पन के केस में अब तक क्या हुआ?
मलयाली न्यूज पोर्टल अझिमुखम के लिए फ्रीलांसिंग करने वाले कप्पन मथुरा में टोल प्लाजा के पास 5 अक्तूबर, 2020 को गिरफ्तार
उस समय कार में सवार तीन अन्य लोग और कारचालक भी गिरफ्तार। कैब चालक समेत सभी पर एक ही मुकदमा.
7 अक्तूबर, 2020 को मथुरा जिले के मांट पुलिस स्टेशन में एफआईआर
यूपी पुलिस की तरफ से 5,000 पेज की चार्जशीट अप्रैल, 2021 में फाइल, लेकिन उसकी कॉपी उनकी पत्नी को भी नहीं. वकीलों को भी दिए इसके सिर्फ 140 पेज.
अप्रैल, 2021 में कप्पन कोविड पॉजिटिव. जेल के बाथरूम में गिरने से बुरी तरह घायल. मथुरा के मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती.
सीजेआई के सामने आवेदन कि उन्हें अस्पताल में इस तरह रखा गया है, मानो 'किसी जानवर को बेड से बांध दिया गया हो' और इससे न वह खा सकते हैं, न कहीं टहल सकते हैं, टॉयलेट जाने में भी परेशानी है. निगेटिव होने पर वापस मथुरा जेल शिफ्ट.
बेहतर इलाज के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 1 मई, 2021 को जेल डॉक्टर और डिपुटी जेलर के साथ एम्स, दिल्ली शिफ्ट। लेकिन उनके वकीलों तक को भी सूचना दिए बिना ही एक सप्ताह के अंदर ही वापस मथुरा जेल शिफ्ट.
छह महीने के अंदर चार्जशीट दाखिल नहीं. जून, 2021 में मांट सबडिविजनल मजिस्ट्रेट ने सीआरपीसी की धारा 151 से उन्हें मुक्त किया, पर कई अन्य मुकदमे होने की वजह से जुलाई, 2021 में उनकी जमानत याचिका रद्द.
दिसंबर, 2021 में उनका केस लखनऊ की विशेष अदालत में शिफ्ट. इसके साथ ही वह भी लखनऊ जेल शिफ्ट.
यूएपीए के तहत उनकी गिरफ्तारी के खिलाफ फरवरी, 2022 में याचिका.
फरवरी, 2022 में उनकी जमानत के लिए याचिका दायर. सुनवाई इतनी बार टली कि कप्पन के वकीलों की बहस 27 जुलाई को खत्म हुई। 2 अगस्त को हाईकोर्ट ने अपना आदेश सुरक्षित रखा. एक दिन बाद याचिका रद्द करने का आदेश.
कप्पन की पत्नी रायहनथ कप्पन की बातों का जवाब देने के बारे में लोगों को भी सोचना चाहिएः 'अप्रैल, 2021 में यूपी पुलिस ने 5,000 पेज की चार्जशीट फाइल की, उसकी कॉपी हमें नहीं दी गई है। आम लोगों को निशाना बनाना भाजपा का गेमप्लान है। थेजस के लिए काम करना किस तरह अपराध है?'
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन पर निगाह रखने वाले फ्री स्पीच कलेक्टिव की सहसंस्थापक गीता सेशु की यह बात भी ध्यान देने वाली है कि 'वीभत्स हाथरस बलात्कार-हत्याकांड को भुला दिया गया। उसे कवर करने वाले लोगों को सरकारी दमन का शिकार बना दिया गया। यह प्रेस की स्वतंत्रता का उल्लंघन तो है ही, भारत में सेंसरशिप का भी डरावना प्रमाण है।'
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