कृषि कानून: मोदी सरकार ने किसानों के साथ खेला ये बड़ा 'खेल'? बड़ी चालाकी से अन्नदाता के पाले में डाली गेंद!
कृषि कानूनों को लेकर सरकार की मंशा क्या यह किसानों के साथ 7वीं दौर की बैठक के बाद एक बार फिर साफ हो गया है। किसानों के साथ हुई बैठक में सरकार के रवैए में कुछ बदलाव जरूर दिखा, लेकिन यह बदलाव किसानों की असल मांगों को लेकर नहीं था।
मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानून के विरोध में सड़कों पर उतरे किसानों के आंदोलन को एक महीने से ज्यादा का समय हो गया है, लेकिन केंद्र में बैठी सरकार को अभी भी इन अन्नदाताओं का दर्द समझ नहीं आ रहा है। यही वजह है कि अब तक कृषि कानून पर कोई ठोस फैसला नहीं लिया गया है। एक ओर जहां किसान हर सुबह सूरज की किरण को उम्मीद के नजर से देखता है, तो वहीं दूसरी ओर मोदी सरकार किसानों को बहकाने और अपने लोभ लुभावनी बातों के जाल में फंसाने की कोशिश में लगी है।
केंद्र ने किसानों के पाले में डाली गेंद!
सरकार की मंशा क्या यह किसानों के साथ 7वीं दौर की बैठक के बाद एक बार फिर साफ हो गया है। किसानों के साथ हुई बैठक में सरकार के रवैए में कुछ बदलाव जरूर दिखा, लेकिन यह बदलाव किसानों की असल मांगों को लेकर नहीं था। इस बार की बैठक में भले ही किसानों की दो मांगों को सरकार ने मान ली हो, लेकिन कृषि कानूनों को रद्द करने का विकल्प क्या होगा? यह किसानों पर ही छोड़ दिया। यानी बड़ी चालाकी से सरकार ने गेंद किसानों के पाले में डाल दी।
7वें दौर की बैठक में किसानों के साथ केंद्र ने 'खेल' खेला ?
अब सवाल यह उठता है कि अगर सरकार आप (केंद्र) चला रहे हैं, कृषि कानून को आपने लागू किया, राज्यसभा में इन बिलों को आपने बिना चर्चा के जबरन पास करा लिया तो फिर किसानों को विकल्प देने की बात कहां से जायज है। अगर हर फैसले केंद्र ले रहा है तो फिर विकल्प भी केंद्र को ही देना चाहिए। मान भी लिया जाए कि किसान कोई विकल्प तैयार करता है। तो भी इसकी क्या गारंटी है की केंद्र इसे मान लेगा? जो सरकार कृषि कानूनों को रद्द करने में एक बार भी हामी नहीं भर रही है तो वह विकल्प कैसे मान लेगी? कुल मिलाकर यह है कि इस बार की बैठक में सरकार ने किसानों के साथ बड़ा 'खेल' खेला है।
बैठक में कृषि कानूनों में संशोधन की नहीं हुई बात
हालांकि, दो मुद्दों पर सरकार और किसानों के बीच सहमति जरूर बनी। बैठक में विद्युत शुल्क पर प्रस्तावित कानूनों और पराली जलाने से संबंधित प्रावधानों को स्थगित रखने पर सहमति जताई गई। लेकिन किसान संगठनों के नेता पांच घंटे से अधिक समय तक चली बैठ में नए कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने की अपनी मुख्य मांग पर अड़े रहे। बैठक में कृषि कानूनों पर संशोधन पर कोई बात नहीं हुई, लेकिन किसानों को इस कानून का विकल्प देने के साथ ही केंद्र ने बड़ी चतुराई से अपना पल्ला झाड़ लिया। यही वजह रही की यह बैठक भी किसानों की असल मांग के लिहाज से बेनतीजा ही रही, ऐसे में अब अगले दौर की बैठक के लिए 4 जनवरी का दिन तय किया गया है।
कांग्रेस ने मोदी सरकार को फिर घेरा
इधर, कांग्रेस की ओर से लगातार मोदी सरकार पर निशाना साधा जा रहा है। कांग्रेस ने ट्वीट कर बार बार किसानों को बैठक ले लिए बुलाना और फिर कोई ठोस फैसला ना लेना अन्नदाताओं का अपमान बताया है। कांग्रेस ने कहा कि किसानों का अपमान मोदी सरकार बंद करे। कांग्रेस ने कहा है कि कृषि मंत्री, रक्षा मंत्री और गृह मंत्री किसानों को अपने पास बुलाती है और हर बार यह कहती है कि यह कानून वापस नहीं होगा। यह सिर्फ और सिर्फ किसानों का अपमान है। कांग्रेस का कहना है कि सरकार को अब हर हाल में यह कानून वापस लेना होगा।
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