असम के बाद यूपी में भी एनआरसी की तैयारी, क्या सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करना चाहती है सरकार!
यूपी में घुसपैठ की उतनी समस्या या चर्चा नहीं रही है जितनी असम या पूर्वोत्तर में, फिर भी यहां सत्ता पक्ष जिस तरह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का खेल रहा है, उससे प्रदेश की करीब बीस फीसदी आबादी- मुस्लिम समुदाय की चिंता स्वाभाविक है। लोगों में गुस्सा है और बेचैनी भी।
असम की तरह ही यूपी, हरियाणा, महाराष्ट्र वगैरह में भी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) की प्रक्रिया शुरू करने की सुगबुगाहट होने लगी है। हरियाणा और महाराष्ट्र में तो कुछ महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं इसलिए इसे टोन सेट करने का राजनीतिक पैंतरा माना जा सकता है, लेकिन यूपी में तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह कह दिया है कि असम उदाहरण है और यह प्रक्रिया यहां आरंभ करने पर विचार चल रहा है। हालांकि असम की एनआरसी लिस्ट में लगभग आधे हिंदू हैं और वहां वे भी उतने ही परेशान हैं जितने मुस्लिम वर्ग के लोग, लेकिन यूपी के मुसलमानों में बेचैनी के अलग कारण हैं।
यहां घुसपैठ की उतनी समस्या या चर्चा नहीं रही है जितनी असम या पूर्वोत्तर में, फिर भी यहां सत्ता पक्ष जिस तरह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का खेल लगातार खेल रहा है, उससे प्रदेश की करीब बीस फीसदी आबादी- मुस्लिम समुदाय की चिंता स्वाभाविक है।
हाल यह है कि कुछ लोगों ने अपने पुराने दस्तावेज जमा करना शुरू भी कर दिया है। लखनऊ में रहकर अभी नौकरी की तलाश कर रहे विद्यार्थी हम्माद शेख के पास फिलहाल तो उनका आधार कार्ड और बोर्ड परीक्षाओं की मार्कशीट ही हैं लेकिन वह और उनके पिता इरशाद आजमी पुश्तैनी संपत्ति के दस्तावेज जमा कर रहे हैं ताकि वक्त पड़ने पर अपनी नागरिकता सिद्ध कर सकें।
इसी तरह छोटा-मोटा व्यापार कर रहे शमीम सिद्दीकी कहते हैं कि उनके बुजुर्ग फतेहपुर जिले से लखनऊ आए थे और उनका परिवार यहां 50 साल से है। उनका मकान किराये का है, इसलिए वह किराये की पुरानी रसीदें ढूंढकर निकाल रहे हैं ताकि उनके आधार पर सिद्ध कर सकें कि वह यहां के पुराने बाशिंदे हैं।
योगी के बयान ने इस तरह की हड़बोंग तो पैदा की ही है, लोगों में गुस्सा भी भर दिया है। इसका इजहार कई लोग कर रहे हैं। कर्नल (रिटायर्ड) फैश अहमद कहते हैं कि यूपी सरकार को बताना चाहिए कि एनआरसी से प्रदेश या देश को कौन-सा लाभ होगा। जिनके पास आधार कार्ड, वोटर कार्ड और पासपोर्ट-जैसे दस्तावेज मौजूद हों, उनकी नागरिकता पर प्रश्न कैसे उठाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि लगता तो यही है कि एनआरसी के नाम पर सिर्फ मुसलमानों का उत्पीड़न करने की योजना है। असम में भी यही हुआ। असम में उस फौजी तक की नागरिकता पर सवाल उठाया गया जिसने देश के लिए लड़ाइयां लड़ीं। यह मानसिक यातना ही थी। कर्नल फैश मानते हैं कि आर्थिक मंदी से ध्यान हटाने भर के लिए बीजेपी विवादास्पद मुद्दे उठा रही है।
लखनऊ विश्वविद्यालय में एंथ्रोपोलॉजी के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. नदीम हसनैन को भी डर है कि यूपी में एनआरसी लागू कर केवल मुसलमानों, और खास तौर से उन लोगों को निशाना बनाया जाएगा जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं। उन्हें यह भी लगता है कि जिस तरह हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर विधानसभा चुनावों के मद्देनजर इस तरह का मसला उठा रहे हैं, योगी आदित्यनाथ भी यूपी में होने वाले उपचुनावों को ध्यान में रखकर इस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं। यह सब वोटों के ध्रुवीकरण के लिए है।
वरिष्ठ अधिवक्ता सैयद मोहम्मद हैदर कहते हैं कि यह मांग पुरजोर तरीके से जरूर की जानी चाहिए कि इसकी प्रक्रिया पूर्णरूप से पारदर्शी हो और सभी समुदायों को साथ लेकर चलने वाली हो। सभी को विश्वास होना चाहिए कि राजनीतिक लाभ लेने के लिए किसी के साथ अन्याय नहीं किया गया है।
राजधानी लखनऊ में रहने वाले सैफ उल इस्लाम कहते हैं कि भारत में रहने वाले अधिकतर लोग और उनके पूर्वज भारतीय नागरिक ही हैं। सिर्फ कुछ दस्तावेजों के न होने की बुनियाद पर किसी की नगरिकता को रद्द करना अन्याय होगा। वह ध्यान दिलाते हैं कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के पास संपत्ति नहीं होती और इसलिए उस तरह का दस्तावेज भी नहीं हो पाता कि वह साबित कर सकें कि इतनी पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं। फिर, उन्हें रोजगार के लिए एक शहर से दूसरे शहर भी जाना पड़ता है। हाशिये पर जिंदगी गुजारने वाले ऐसे लोग पुराने दस्तावेज कहां से ला पाएंगे। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि ऐसे गरीब-वंचित वर्ग के लोगों की नागरिकता ही रद्द कर दी जाए।
इन सब बिना पर ही प्रसिद्ध लेखक सुल्तान शकिर कहते हैं कि यह मुद्दा केवल देश-प्रदेश के मुख्य मुद्दों को दबाने के लिए उठाया जा रहा है क्योंकि सरकार आर्थिक मुद्दे पर जनता का सामना नहीं कर पा रही है। इजहार अंसारी तो साफ कहते हैं कि जनता को इस वक्त एनसीआर लागू करने से ज्यादा एक मजबूत अर्थव्यवस्था की जरूरत है।
योगी के बयान के बाद एनआरसी की चर्चा हर घर में हो रही है। रूबीना जावेद कहती हैं कि डरने की कोई बात नहीं है लेकिन यह तो साफ है कि इससे लोगों को तो कोई लाभ नहीं होने वाला लेकिन बीजेपी राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश जरूर करेगी। रूबीना मानती हैं कि यह सब आर्थिक मुद्दों और रोजगार के सवाल पर चर्चा न होने देने के लिए बीजेपी की चाल भर है। वैसे, एनआरसी की चर्चा होने से तहजीन फातिमा भी गुस्से में हैं। वह कहती हैं कि एनआरसी की जगह नए स्कूल और अस्पताल की बात होनी चाहिए थी लेकिन धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले इस ओर ध्यान ही नहीं देने वाले। उन्हें लगता है कि एनआरसी मुद्दे को उठाने का मकसद हिंदू-मुस्लिम भाईचारे, गंगा-जमनी तहजीब को खत्म करना भर है।
प्रयागराज के शौकत भारती को भी लग रहा है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और प्रदेश की योगी सरकार- दोनों हर मोर्चे पर विफल हैं इसलिए अब विवादास्पद मुद्दों के सहारे बीजेपी अपनी विफलता को छिपाना चाहती है। उनकी राय है कि एनआरसी के सहारे सत्तापक्ष सिर्फ सांप्रदायिकता का कार्ड खेल रहा है।
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