तीन साल की सत्ता में योगी से ‘हठयोगी’ हो गए आदित्यनाथ!
उत्तर प्रदेश की सत्ता में तीन साल पूरे कर चुके योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनने से पहले चीख-चीखकर जो कहते थे, अब उन्हीं पर अमल कर रहे हैं। सीएए, एनपीआर, एनआरसी के खिलाफ आवाज बुलंद करने वालों पर ‘सबक’ सिखाने की कार्रवाई से वह अपनी मंशा जाहिर कर चुके हैं।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ऐसे हठयोगी हैं, जो वही करते हैं जो उन्हें सही लगता है। वही सुनते हैं, जो उन्हें अच्छा लगता है। मजाल है कि कोई चूं भी कर ले। ऐलानिया कहते हैं कि अपने शासन में सीएए के विरोधियों को सिर नहीं उठाने दूंगा।
पिछेले दिनों योगी आदित्यनाथ ने कैबिनेट की बैठक बुलाई, जिसमें निजी और सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा से जुड़े कानून को अमल में लाने के लिए अध्यादेश को मंजूरी दी गई। बैठक के तुरंत बाद कैबिनेट रैंक के एक मंत्री ने सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ योगी के कड़े रुख की प्रशंसा की और कहा कि पूरे सूबे में लोग उनकी सख्ती की तारीफों के पुल बांध रहे हैं। जैसे ही उस मंत्री ने योगी की तारीफ की, दूसरे मंत्री भी योगी का गुणगान करने में जुट गए।
उस बैठक में मौजूद एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “मंत्रियों की बात सुनते ही मुख्यमंत्री का व्यवहार अचानक बदल गया। वह अपनी ही तारीफ की ढफली बजाने लगे और अगले 10 मिनट तक वह सीएए क्या है और उपद्रवियों को काबू करने की उनकी योजना क्या है, इस पर बोलते रहे। उन्होंने बड़े शान से बताया कि वह दंगों को कैसे काबू करते हैं और कैसे यह सुनिश्चित करेंगे कि इन लोगों को सजा मिले।” उस अधिकारी के मुताबिक मुख्यमंत्री ने साफ कहा, “मेरे शासन में इनको सिर उठाने नहीं दूंगा।”
योगी आदित्यनाथ बड़े ही आत्ममुग्ध व्यक्ति हैं, यह बात कोई छिपी नहीं है। जब भी मौका मिलता है, वह अपनी और अपनी सरकार की तारीफ और विरोधियों की लानत-मलामत करने लगते हैं। रिटायर्ड अधिकारी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल फरवरी के अंतिम सप्ताह में मुख्यमंत्री से मिलने गया। वे लोग लखनऊ में एक एकेडमी बनाने के प्रस्ताव के साथ गए थे। इस मुलाकात के दौरान आत्ममुग्ध योगी अपनी ही एकतरफा अलापते रहे।
वहां मौजूद एक पूर्व अधिकारी ने कहा, “हमें 10 मिनट का समय मिला था, लेकिन मुख्यमंत्री 35 मिनट तक बात करते रहे और उसमें से भी 30 मिनट वह सीएए और सीएए विरोधी प्रदर्शन के बारे में बोलते रहे। हमारी मजबूरी थी कि हम उन्हें बीच में रोककर यह नहीं कह सकते थे कि हम तो किसी और काम से आए हैं। सीएए पर उनके भाषण को सुनना हमारी मजबूरी थी। खैरियत यह रही कि वह हमारे कार्यक्रम में शामिल होने के लिए तैयार हो गए।”
पिछले तीन साल के दौरान मुख्यमंत्री से नियमित रूप से बातचीत करने वालों का कहना है कि योगी अब और भी ज्यादा हठी और अहंकारी हो गए हैं और उनमें किसी की सलाह सुनने का बिल्कुल धैर्य नहीं है। इन स्थितियों में अफसरशाही ने बड़ा आसान उपाय निकाल लिया है- केवल यस सर कहो।
कभी ग्रामीण विभाग में काम करने वाले एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी कहते हैं कि सीएम योगी को इस बात की कोई समझ नहीं कि किसी भी परियोजना को आगे कैसे बढ़ाया जाता है। वह समझते हैं कि बैठक बुलाने भर से परियोजना पर काम शुरू हो जाता है। वह कहते हैं, “किसी परियोजना को शुरू करने के लिए मुख्यमंत्री बड़े ही कम नोटिस (48 घंटे) पर बैठक बुला लेते हैं। वह यह महसूस ही नहीं करते कि इतने समय में जमीनी हालात की रिपोर्ट तैयार नहीं हो सकती। जाहिर है, ऐसे में बैठक बिना किसी परिणाम के खत्म हो जाती है और फिर दूसरी बैठक बुला ली जाती है।”
एक अन्य आईएएस अधिकारी ने कहा कि आदित्यनाथ एक के बाद एक तमाम अहम बैठकें शाम सात बजे के बाद बुलाते हैं, जो रात 9-10 बजे तक चलती रहती है। और फिर वह सूचना निदेशक को आदेश देते हैं कि वह सुनिश्चित करें कि इन समीक्षा बैठकों को अच्छा प्रचार मिले। ठहाका लगाते हुए वह अधिकारी से कहते हैं, “यह सब एक ही मकसद के लिए किया जाता है कि लोग जानें कि उनका मुख्यमंत्री कितना मेहनती और देर रात तक काम करने वाला है।”
अब जबकि सूचना विभाग को अंदाजा हो गया है कि मुख्यमंत्री को प्रचार कितना पसंद है तो उसने इसका आसान उपाय निकाल लिया है। अधिकारी यह सुनिश्चित करते हैं कि मुख्यमंत्री के कार्यक्रम का लाइव प्रसारण स्थानीय समाचार चैनलों पर हो जाए। फिर इसे ही मुख्यमंत्री कार्यालय के ध्यानार्थ भेज देते हैं। उक्त अधिकारी कहते हैं, “लब्बोलुआब यही है कि मुख्यमंत्री को खुश रखो वर्ना वह जूनियर अधिकारियों के सामने भी उन्हें बुरा-भला कहने से नहीं हिचकेंगे। ऐसा करके वह बार- बार यह बताने की कोशिश करते हैं कि वही बॉस हैं।”
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