19 सितंबर को सूरज की ओर रवाना होगा आदित्य-एल1, पृथ्‍वी की कक्षा छोड़ मंजिल की ओर भरेगा रफ्तार

आदित्य-एल1 भारत की अंतरिक्ष आधारित सौर वेधशाला है जिसे 2 सितंबर को ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान-एक्सएल (पीएसएलवी-एक्सएल) रॉकेट द्वारा पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया गया था। तब से इसरो द्वारा अंतरिक्ष यान की कक्षा को चार बार बढ़ाया गया है।

पृथ्‍वी की कक्षा छोड़कर 19 सितंबर को सूरज की ओर रवाना होगा आदित्य-एल1
पृथ्‍वी की कक्षा छोड़कर 19 सितंबर को सूरज की ओर रवाना होगा आदित्य-एल1
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नवजीवन डेस्क

देश की अंतरिक्ष-आधारित सौर वेधशाला आदित्य-एल1 को आगामी 19 सितंबर को सूर्य की ओर रवाना किया जाएगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने शुक्रवार को कहा कि अगले मैनोवर में 19 सितंबर को लगभग दो बजे तड़के पृथ्वी की कक्षा से विदा होकर भारत की सौर वेधशाला आदित्य-एल1 लैंगरेंजियन प्‍वाइंट-1 (एल-1) की ओर बढ़ेगी।

इसरो के अनुसार, शुक्रवार तड़के 2.15 बजे आदित्‍य एल-1 की कक्षा का चौथा सफल उन्‍नयन किया गया। इसरो के अनुसार, आदित्‍य एल-1 अब 256 किमी गुना 1,21,973 किमी की अपनी नई कक्षा में है। इसरो ने कहा कि अगले मैनोवर में 19 सितंबर को लगभग दो बजे तड़के पृथ्वी की कक्षा से विदा होकर वेधशाला लैंगरेंजियन प्‍वाइंट-1 (एल-1) की ओर बढ़ेगी।


अंतरिक्ष एजेंसी ने बताया कि मॉरीशस, बेंगलुरु, श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र और पोर्ट ब्लेयर में इसरो के ग्राउंड स्टेशनों ने इस ऑपरेशन के दौरान उपग्रह को ट्रैक किया, जबकि वर्तमान में आदित्य-एल 1 के लिए फिजी द्वीप समूह में एक परिवहनीय टर्मिनल पोस्ट-बर्न ऑपरेशन प्रक्रिया में सहयोग करेगा।

आदित्य-एल1 भारत की अंतरिक्ष आधारित सौर वेधशाला है जिसे 2 सितंबर को ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान-एक्सएल (पीएसएलवी-एक्सएल) रॉकेट द्वारा पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया गया था। तब से इसरो द्वारा अंतरिक्ष यान की कक्षा को चार बार बढ़ाया गया है।

एल-1 की ओर यात्रा के दौरान पृथ्‍वी के गुरुत्‍वाकर्षण से बाहर निकलने के बाद क्रूज़ चरण शुरू हो जाएगा और बाद में अंतरिक्ष यान को एल-1 के चारों ओर एक बड़ी प्रभामंडल कक्षा में इंजेक्ट किया जाएगा- वह बिंदु जहां दो बड़े पिंडों- सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण खिंचाव बराबर होगा और इसलिए अंतरिक्ष यान अपनी कक्षा में बना रहेगा। लॉन्च से एल-1 तक की कुल यात्रा में अंतरिक्ष यान को लगभग चार महीने लगेंगे और पृथ्वी से दूरी लगभग 15 लाख किलोमीटर होगी।

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