चिपको आंदोलन के 45 साल: जब पेड़ों को कटने से बचाने के लिए उनसे चिपक गई थीं ग्रामीण महिलाएं
चिपको आंदोलन की 45वीं वर्षगांठ पर कई बड़ी हस्तियों ने पर्यावरण को बचाने का संदेश दिया है। 1973 में उत्तराखंड में शुरू हुआ यह आंदोलन दुनिया का सबसे प्रभावशाली गैर-राजनीतिक पर्यावरण संरक्षण आंदोलन था।
45वीं वर्षगांठ पर चिपको आंदोलन को हर कोई याद कर रहा है। 1973 में उत्तराखंड में शुरू हुआ चिपको आंदोलन दुनिया का सबसे प्रभावशाली गैर-राजनीतिक पर्यावरण संरक्षण आंदोलन था। आंदोलन के लिए लोगों को प्रेरित करने वाले चंडी प्रसाद भट्ट ने गांधीवादी शैली में अहिंसक रूप से हिमालय की तलहटी में गढ़वाल क्षेत्र में चिपको आंदोलन शुरू किया था, जिसके जरिए विकास के नाम पर पेड़ों की कटाई का विरोध किया गया था।
उत्तराखंड के रेनी गांव में पेड़ काटने वालों का एक समूह पहुंचा था। आंदोलन का नेतृत्व करने वाली गौरा देवी अपनी सहेलियों के एक समूह के साथ तुरंत पेड़ कटाई वाली जगह पर पहुंच गईं और पेड़ काटने वालों के अपशब्दों और उनकी बंदूकों की परवाह किए बिना उन्होंने पेड़ों को घेर लिया और पूरी रात पेड़ों से 'चिपकी' रहीं। अगले दिन यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई और आसपास के गांवों में पेड़ों को बचाने के लिए लोग पेड़ों से चिपकने लगे। 4 दिन के टकराव के बाद पेड़ काटने वालों ने पेड़ों को छोड़ दिया और पेड़ों को बचा लिया गया।
45वीं वर्षगांठ पर चिपको आंदोलन को कांग्रेस ने याद किया। कांग्रेस ने ट्वीट कर कहा, “चिपको आंदोलन की 45वीं वर्षगांठ पर सभी उत्तराखंडवासियों को बधाई। 1973 गौरा देवी के नेतृत्व में स्थानीय महिलाओं ने इस आंदोलन को चलाकर पूरे विश्व का ध्यान पर्यावरण की ओर खींचा था। सुंदर लाल बहुगुणा जी और चंडी प्रसाद भट्ट जी ने इस आंदोलन को आगे बढ़ाया था।”
चिपको आंदोलन को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने भी याद किया। उन्होंने ट्वीट कर कहा, “आइए आज याद करते हैं उस वन संरक्षण आंदोलन जो भारत के लिए मील का पत्थर साबित हुआ था। आइए हम इस आंदोलन से पेड़ों को बचाने के लिए प्रेरणा लें और ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाएं।”
अभिनेत्री दीया मिर्जा ने भी चिपको आंदोलन को याद किया। इस मौके पर उन्होंने ट्वीट कर कहा, “चिपको आंदोलन इस बात का मजबूत संदेश देता है कि पर्यावरण के संतुलन से ही सारी प्रगति संभव है।”
(आईएएनएस के इनपुट के साथ)
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