योगी के 3 सालः कोर्ट-कचहरी ठेंगे पर, उत्तर प्रदेश में खुल्लम-खुल्ला ‘योगी शाही’
योगी शुरू से ऐसे ही हैं। अपने गढ़ गोरखपुर की नुक्कड़ सभाओं में वह साफ कहते सुनाई देते थे- सभा में मुस्लिम हों, तो हट जाएं। उन्हें मेरी बातें अच्छी नहीं लगेंगी। हमें मुसलमानों के वोट नहीं चाहिए और यदि किसी को वोट देना है तो पहले गंगाजल से अपने को पवित्र करे।
मुख्यमंत्री के तौर पर तीन साल पूरे कर लेने वाले उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के लिए कानून वही है, जो वह सोचते हैं। और यह कोई राजनीतिक स्टेटमेंट नहीं है, इसके अनेकों उदाहरण हैं। इसका ताजा उदाहरण कोरोना वायरस के तेजी से बढ़ते खतरे को लेकर राज्य सरकार के फरमानों के विरोधाभास में देखा जा सकता है। दरअसल कई अन्य राज्यों की तरह कोरोना वायरस से बचाव के लिए यूपी में भी सभी स्कूल-काॅलेज, सिनेमा हाॅल वगैरह बंद कर दिए गए हैं, ताकि ज्यादा लोग इकट्ठा नहीं हों।
लेकिन योगी का प्रशासन इस बात पर अड़ा हुआ है कि अयोध्या में रामनवमी मेला होकर रहेगा। यह तीन दिवसीय मेला 1 अप्रैल से होना है। इसमें करीब 10 लाख लोगों के जुटने की संभावना है। अगर मेला हुआ, तो लोग 31 मार्च की शाम से ही जुटना शुरू हो जाएंगे। मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) घनश्याम सिंह भले कह रहे हों कि इस वक्त इतने लोगों को स्वास्थ्य की दृष्टि से संभालना बहुत बड़ी चुनौती है, लेकिन जब योगी सत्ता में हों, तो राम नाम की इस राजनीतिक लूट में मेला टलने की संभावना नहीं के बराबर है।
असल में योगी का यही स्टाइल है। वह जो ठान लेते हैं, वही करते हैं। इस मामले में वह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी दो कदम आगे रहते हैं। संशोधित नागरिकता कानून के विरोध में प्रदर्शन करने वाले मुसलमानों और लिबरलों से निपटने के नाम पर वह कोर्ट तक को ठेंगे पर ऐसे ही नहीं रख रहे। योगी के प्रशासन ने लखनऊ, गोरखपुर, वाराणसी से लेकर मेरठ, अलीगढ़ तक उपद्रव करने के आरोप लगाते हुए कई लोगों के नाम और फोटो वाले पोस्टर चौक-चौराहों पर चस्पा कराए। यह सब प्रदर्शनों में हुए नुकसान की वसूली को लेकर कानूनी कार्यवाही के नाम पर किया गया।
राजधानी लखनऊ के चौराहों पर सीएए विरोधियों के पोस्टर चस्पा करने पर हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए यूपी सरकार से जवाब-तलब किया, तो योगी सरकार सुप्रीम कोर्ट की शरण में चली गई। वहां भी राहत नहीं मिली तो कानून से बचने के लिए यूपी प्रेवेंशन ऑफ डैमेज टु पब्लिक एंड प्राइवेट प्राॅपर्टी, 2020 नाम से अध्यादेश ला दिया। राज्यपाल ने भी बगैर देरी किए अध्यादेश को मंजूरी दे दी। अब योगी सरकार एक रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में वसूली को लेकर क्लेम ट्रिब्यूनल बनाने की तैयारी में है। हालांकि यह अध्यादेश कानूनी तौर पर कितना अनुचित है, यह कोई भी समझ सकता है।
यह तो बहुचर्चित और आम प्रकरण है। लेकिन योगी सरकार पुराने विरोध को याद रखकर भी कड़ी कार्रवाई कर रही है, जिनकी मीडिया में कहीं चर्चा नहीं हो रही। इस कड़ी में पहला उदाहरण है गोरखपुर के सर्राफा कारोबारी शरद चन्द्र अग्रहरि का, जिन्होंने नोटबंदी के दौरान पीएम मोदी की शव यात्रा निकाली थी। अब बीते 14 मार्च को कस्टम की विशेष टीम ने उन्हें सोना और चांदी की तस्करी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया।
इसी तरह प्रयागराज में डॉ. माधवी मित्तल के क्लिनिक को सीज कर दिया गया। इसके पीछे कारण दरअसल ये है कि डॉ. मित्तल के एक्टिविस्ट पति आशीष पिछले दो महीनों से प्रयागराज के मंसूर पार्क में जारी एंटी-सीएए-एनपीआर-एनआरसी विरोध-प्रदर्शनों में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। उधर सहारनपुर के देवबंद में प्रदर्शन कर रही महिलाओं पर सीधे कार्रवाई नहीं कर पाई पुलिस ने उनके परिवारों के पुरुष सदस्यों अपने लपेटे में ले लिया। पुलिस ने इन सबके खिलाफ बीमारी का संक्रमण फैलाने से लेकर छोटे बच्चों को जबरन विरोध में शामिल करने जैसे आरोपों में मुकदमा दर्ज किया है। एक व्यक्ति के खिलाफ किशोर न्याय अधिनियम की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है।
योगी राज में पुलिस ने प्रदर्शन को कवर कर रहे पत्रकारों को भी नहीं बख्शा है। प्रदर्शन में शामिल एक शिक्षिका के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू कर दी गई है। एक कोचिंग संस्थान में पढ़ाने वाले दिनेश त्रिपाठी कहते हैं कि प्रदर्शनकारी भले ही क्षतिपूर्ति से बचने के लिए कोर्ट की शरण में हों, लेकिन मुख्यमंत्री ने संदेश तो दे ही दिया कि उनका इरादा क्या है!
पूर्व कैबिनेट मंत्री और एसपी नेता आजम खां से योगी के रिश्ते शुरू से ही 36 के रहे हैं। अब उनके और उनके परिवार के खिलाफ बकरी, किताब चोरी से लेकर जमीन हड़पने तक के 86 मुकदमों का दर्ज होना बताता है कि मुख्यमंत्री किस हद तक जाने को तैयार हैं। यूपी में यह संभवतः पहला अवसर है जब कोई पूर्व कैबिनेट मंत्री बेटे और पत्नी के साथ जेल भेजा गया है। वहीं गोरखपुर मेडिकल काॅलेज में तीन साल पूर्व हुए ऑक्सीजन कांड में फंसाए गए चिकित्सक डाॅ. कफील खान के खिलाफ मुख्यमंत्री योगी की सख्ती जगजाहिर है। डाॅ. कफील को आपत्तिजनक भाषण देने के आरोप में रासुका तक की कार्रवाई झेलनी पड़ रही है।
दरअसल सीएम योगी को किसी तरह का विरोध तनिक भी पसंद नहीं है। पिछले तीन वर्षों में उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में दो दर्जन से अधिक लोगों को आपत्तिजनक टिप्पणी करने के आरोप में जेल भेजा गया या फिर कार्रवाई की गई। उदाहरण के तौर पर बहराइच के एक युवक को सोशल मीडिया पर एक पोस्ट की वजह से पुलिस ने हिरासत में लिया। वहीं, अमेठी में अनीस अहमद को, तो बरेली में भी एक युवक को गिरफ्तार किया गया। मिर्जापुर में मिड डे मील की खबर दिखाने वाले पत्रकार को भी मुख्यमंत्री के ही इशारे पर जेल भेजा गया।
सेंसरशिप से सब कंट्रोल
नरेंद्र मोदी-अमित शाह की तरह योगी भी जान गए हैं कि असली खबरें कैसे छिपाई और दबाई जा सकती हैं। वह जिस साल 2017 में, मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे, उसी साल गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल काॅलेज में ऑक्सीजन की कमी से 100 से अधिक मासूमों की मौत हो गई थी। इसके बाद से काॅलेज में सुविधाएं तो जरूर बढ़ी हैं, लेकिन स्थानीय प्रशासन मौतों के आंकड़े पर सेंसरशिप लगाए हुए है।
पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आरोप लगाया था कि 2019 में मेडिकल काॅलेज में 1,000 से अधिक मौतें हुई हैं। उन्होंने आंकड़ा सार्वजनिक करने की चुनौती भी दी थी। लेकिन काॅलेज के प्रधानाचार्य और बाल रोग विभाग की अध्यक्ष ने भी बच्चों की मौत के आंकड़े बताने से इंकार कर दिया। बाल रोग विभाग की अध्यक्ष प्रो. अनिता मेहता कहती हैं कि बीआरडी में बच्चों की मौत में 50 फीसदी की कमी आई है, लेकिन हम फीगर नहीं बताएंगेे। आंकड़ों में घालमेल करने के लिए मेडिकल काॅलेज प्रशासन ने मरीजों का एक नया ग्रुप बना दिया है। एक्यूट फेब्राइल इलनेस (एएफआई ) नाम से बने इस ग्रुप में 1,600 से अधिक मरीज भर्ती हुए। इनमें से कितनों की मौत हुई, इसका कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। ऐसे में, कर लीजिए तफ्तीश!
शुरू से ही स्पष्ट है रोड मैप
19 मार्च, 2017 को सूबे की सत्ता संभालने के साथ ही योगी आदित्यनाथ ने स्लाॅटर हाउस बंद करने से लेकर एंटी रोमियो अभियान चलाकर संकेत दे दिया था कि उनकी सियासत का रोड मैप क्या है। गो-वंश संरक्षण के लिए क्या हुआ, यह पक्का बताना इसलिए मुश्किल है कि आवारा पशुओं से खेती-किसानी करने वाले ग्रामीण ही नहीं, सड़कों पर चलने वाले आम लोग भी परेशान हैं।
जौनपुर के प्रगतिशील किसान रामाज्ञा कुशवाहा कहते भी हैं कि अब तक नील गायों का ही आतंक था, पर अब तो छुट्टा पशुओं से फसल बर्बाद हो रही है। उधर योगी सरकार गोशालाओं के निर्माण और रखरखाव के लिए 248 करोड़ खर्च करने का दावा कर रही है। पर यह रकम किसकी जेब में जा रही है, किसी को खबर नहीं। हां, प्रदेश में खेती का हाल जर्जर है, पर योगी की बला से!
इनके अलावा प्रयागराज में कुंभ और अयोध्या में दीपोत्सव- जैसे भव्य आयोजनों से योगी ने साफ जता दिया है कि उनका टारगेट ग्रुप क्या है। इसी एजेंडे के तहत इलाहाबाद, फैजाबाद और मुगलसराय के नाम आनन-फानन में बदल दिए गए। अयोध्या में मंदिर निर्माण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला तो बाद में आया, वहां योगी ने पहले ही भगवान श्रीराम की सबसे ऊंची प्रतिमा का शिलान्यास कर दिया।
और तो और इन तीन साल में पूरे प्रदेश पर चटख भगवा रंग चढ़ा दिया गया। रोडवेज की बसों से लेकर सरकारी दफ्तरों के पर्दे का भगवा होना साबित करता है कि यह रंग पिछले तीन वर्षों में किस कदर चापलूसी का रंग बन चुका है। योगी के कार्यक्रमों में टेंट का रंग अब अनिवार्य रूप से केसरिया ही है। स्थिति यह है कि बिजली के केबल, पंखे, बिजली के खंभे से लेकर पुलिस थानों के दरो-दीवार भी भगवामय दिखने लगे हैं। इन सब पर योगी शाही का रंग चढ़ चुका है।
पहले भी थे ऐसे ही
हालांकि, योगी शुरू से ऐसे ही हैं। 2002 में भी वह गोरखपुर की नुक्कड़ सभाओं में साफ कहते सुनाई देते थे- ‘सभा में मुस्लिम हों, तो हट जाएं। उन्हें मेरी बातें अच्छी नहीं लगेंगी। हमें मुसलमानों के वोट नहीं चाहिए और यदि किसी को वोट देना है तो पहले गंगाजल से अपने को पवित्र करे।’
दरअसल, विरोध और हठधर्मिता योगी आदित्यनाथ की सियासी स्टाइल है। वह किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं। मुख्यमंत्री के करीबी पूर्व केंद्रीय मंत्री चिन्मयानंद पर बलात्कार के आरोप लगे, तब भी वह बिना लाग-लपेट उनके साथ खड़े दिखे। इतना ही नहीं, आरोप लगाने वाली पीड़िता को जेल भेजने से भी वह ठिठके नहीं। बलात्कारी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर का भी पक्ष लेने का आरोप योगी आदित्यनाथ ने झेला। प्रदेश में फर्जी मुठभेड़ को लेकर सरकार पर जमकर सवाल उठे, लेकिन योगी फ्रंटफुट पर ही खेलते दिखे।
योगी की इन्हीं हरकतों के कारण पूर्व सांसद और एसपी नेता कुंवर अखिलेश सिंह साफ कहते हैं कि पिछले तीन वर्षों में योगी सरकार की इकलौती उपलब्धि ‘नफरत’ है। मुख्यमंत्री सिर्फ बदले की भावना रखकर काम करते हैं। वहीं वरिष्ठ रंगकर्मी एसआर पांडेय का कहना है कि “पिछले तीन वर्षों में प्रदेश में कुछ भौतिक विकास तो हुआ है, लेकिन सांस्कृतिक और सद्भाव के मामले में हम काफी पिछड़ गए हैं। आपसी विश्वास कम हुआ है। भ्रष्टाचार में कोई कमी नहीं आई है।”
वहीं साहित्यकार देवेन्द्र कुमार कहते हैं कि तीन साल के कार्यकाल में नया ट्रेन्ड देखने को मिला है। अब पाॅलिटिकल ट्रोलिंग का दौर शुरू हो गया है। विपक्षियों और विरोध का सुर ऊंचा करने वालों के साथ बर्बरता इसी का परिणाम है। जो काम जिसका है, उसी को सूट करता है। योगी का काम योग-साधना करना है। पुजारी को दूसरा काम दे देंगे तो कैसा होगा। देखिए सांसद बनना अलग बात है, पर मुख्यमंत्री बनकर सरकार चलाना दूसरी बात है। सरकार चलाने के लिए प्रबंधन और अनुभव की आवश्यकता होती है, जिसके लिए इंसान के पास कोई विजन होना चाहिए!
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