आंध्र प्रदेशः पवन कल्याण फैक्टर कर सकता है बड़ा खेल, चंद्रबाबू नायडू के सामने अब तक की सबसे बड़ी चुनौती
आंध्र प्रदेश में अभी यह कहना मुश्किल है कि फिल्म स्टार पवन कल्याण की पार्टी के समर्थक किसका खेल बिगाड़ेंगे। सीएम चंद्रबाबू नायडू इस बार राज्य में पिछले 40 साल में सबसे कठिन चुनौती से जूझ रहे हैं। वहीं इस बार राज्य में कांग्रेस के बेहतर करने की उम्मीद है।
आंध्र प्रदेश में 11 अप्रैल को लोकसभा की सीटों के साथ विधानसभा के लिए भी मतदान होने वाला है। अधिकांश चुनावी सर्वेक्षण वाईएसआर कांग्रेस की जीत की भविष्यवाणी कर रहे हैं। कुछ तो ऐसे हैं जो जगनमोहन रेड्डी को अगला मुख्यमंत्री भी बताने लगे हैं। वे इसी आधार पर लोकसभा सीटों पर भी जगन की पार्टी के बेहतर करने की उम्मीद जता रहे हैं। लेकिन वे भूल रहे हैं कि पवन कल्याण फैक्टर इतना जबर्दस्त है कि पूरा खेल बिगड़ सकता है।
पवन कल्याण जन सेना पार्टी के प्रमुख हैं। वह तमिल फिल्मस्टार हैं। वह लोकप्रिय अभिनेता चिरंजीवी के छोटे भाई हैं। उन्होंने तीन शादियां की हैं। नंदिनी से उन्होंने1997 में शादी की। फिर, उन्होंने रेणु देसाई से शादी की। उनसे दो बच्चे हैं। 2013 में उन्होंनेअन्ना लेजनेवा से विवाह किया और उनसे भी उन्हें दो बच्चे हैं।
मूलरूप से तटीय आंध्र प्रदेश के रहने वाले साॅफ्टवेयर प्रोफेशनल के कृष्णा वाईएसआर नेता जगनमोहन के समर्थक हैं। उनका कहना है कि पवन की वजह से हम तनाव में हैं। उन्होंने कहा कि नौकरियों की भीषण कमी इन चुनावों में प्रमुख मुद्दा है और यह हमारे नेता को वोट देने की वजह है। लेकिन युवाओं का एक बड़ा तबका प्रभावशाली डायलाॅग्स और एक्शन वाले सीन्स के कारण पवन कल्याण के पक्ष में जा सकता है।
पिछली बार पवन कल्याण मुख्यमंत्री नारा चंद्रबाबू नायडू के साथ थे और इस कारण उन्हें काफी मदद मिल गई थी। माना जाता है कि तटीय आंध्र प्रदेश की 50 विधानसभा सीटों पर पवन कल्याण का अच्छा दबदबा है। पवन कल्याण इस दफा नायडू के साथ नहीं हैं, फिर भी आम राय यही है कि वह मुख्यतः जगनमोहन रेड्डी को नुकसान पहुंचाएंगे और इससे नायडू की राह आसान हो जाएगी।
इसमें शक नहीं कि चालीस साल के राजनीतिक कॅरियर में नायडू इस वक्त सबसे कठिन चुनौती से जूझ रहे हैं। विपक्ष उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहा है। आरोप है कि आंध्र की नई राजधानी बनाने का आश्वासन उन्होंने पूरा नहीं किया है और राज्य के विकास के एजेंडे को पूरा करने में भी वह विफल रहे हैं।
हालांकि, नायडू के प्रति सहानुभूति भी है, लेकिन काफी लोग ये भी कह रहे हैं कि केंद्र में एनडीए की मोदी सरकार के साथ रहने के बावजूद उन्होंने राज्य के लिए लाभ हासिल नहीं किया। नायडू ने पिछले साल मार्च में एनडीए सरकार को दिया गया समर्थन वापस ले लिया था और अब वह विपक्षी गठबंधन के प्रमुख नेता हैं।
नायडू के पक्ष में भी यह बात जा रही है। नायडू एंटी-इन्कम्बैंसी को इस आधार पर नकारने की कोशिश कर रहे हैं कि चूंकि मोदी सरकार ने राज्य को विशेष दर्जा देकर आर्थिक सहायता देने से इंकार कर दिया इसलिए उन्होंने अलग राह चुनी। उनके पक्ष में बंगाल से ममता बनर्जी, दिल्ली से अरविंद केजरीवाल, जम्मू-कश्मीर से डाॅ. फारूक अब्दुल्ला और कर्नाटक से पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के प्रचार करने की उम्मीद है और यह बात नायडू को राष्ट्रीय नेता का दर्जा देती है।
आंध्र के वोटरों को यह संदेश भी जा रहा है कि नायडू के रूप में उनका नेता राष्ट्रीय राजनीति में हस्तक्षेप करने का माद्दा रखता है। जगनमोहन रेड्डी अपने पिता वाई एस राजशेखर रेड्डी के 2012 में निधन के बाद से ही आंध्र प्रदेश का चतुर्दिक दौरा करते आ रहे हैं। साल 2014 से वह विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं। उनकी सभाओं में अच्छी-खासी भीड़ जुटती है। इन दिनों वह हर सभा में यह बात जरूर करते हैं कि उनका सीधा मुकाबला चंद्रबाबू नायडू और उनकी पार्टी टीडीपी से है, कहीं भी त्रिकोणिय या चतुष्कोणिय मुकाबला नहीं है।
पर्यवेक्षकों की सबसे अधिक रुचि इस बात में है कि कांग्रेस किस तरह अपने को आगे खड़ा करती है। इस बार राज्य में कांग्रेस के बेहतर करने की उम्मीद है। इसकी वजह भी है। हालांकि टीडीपी का कांग्रेस के साथ औपचारिक गठबंधन नहीं है लेकिन वोटर जानते हैं कि जमीन पर जो मजबूत है, उसे किस तरह वोट देना है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की यह घोषणा निचले स्तर तक पर मजबूती से गई है कि सरकार बनी तो आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा दिया जाएगा। यही नहीं, न्यूनतम आय योजना (न्याय) की घोषणा पर लोग अलग से चर्चा कर रहे हैं। राजमुंदरी के एक वरिष्ठ पत्रकार कहते भी हैं कि जिन लोगों ने कांग्रेस को समाप्त प्राय मान लिया है, उन्हें परिणाम चौंका सकते हैं।
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