लोकतंत्र के पन्ने: लोकसभा चुनाव 2004, जब काम न आया इंडिया शाइनिंग और फील गुड फैक्टर का नारा, और एनडीए हारा
2004 लोकसभा चुनाव में एनडीए को जबर्दस्त झटका लगा था। यह चुनाव राजनीतिक दलों के लिए किसी सबक से कम नहीं था। किसी ने नहीं सोचा था कि बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए को जनता बड़ी बेरहमी से सत्ता के बाहर का रास्ता दिखा देगी।
वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में इंडिया शाइनिंग और फील गुड फैक्टर का नारा पूरे देश में गुंज रहा था। बीजेपी ने अपनी उपलब्धियों के बखान में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। बीजेपी ने चुनाव प्रचार में पानी के तरह पैसा बहाए थे। हर कोई यही कह रहा था कि इस चुनाव में एनडीए की जीत होगी। लेकिन नतीजे चौंकाने वाले आए। एनडीए को जबर्दस्त झटका लगा था। यह चुनाव राजनीतिक दलों के लिए किसी सबक से कम नहीं था। किसी ने नहीं सोचा था कि बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए को जनता बड़ी बेरहमी से सत्ता के बाहर का रास्ता दिखा देगी। बीजेपी को पूरा यकीन था कि जनता उसे दोबारा केंद्र की सत्ता के सिंहासन पर बिठाएगी लेकिन 2004 लोकसभा के नतीजों ने बीजेपी की सारी आकांक्षाओं पर पानी फेर दिया।
सारे प्रचार और प्रपंच धरे रह गए। इंडिया शाइनिंग और फील गुड फैक्टर का वोटरों पर कोई असर नहीं दिखा। एनडीए की हार हुई। 145 सीटों के साथ कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी। जबकि बीजेपी को 138 सीटें मिलीं। कांग्रेस को जहां कुल मतों का लगभग 26 फ़ीसदी प्राप्त हुआ, वहीं बीजेपी को लगभग 22 फ़ीसदी मत मिले। दूसरी ओर क्षेत्रीय दलों को सबसे ज़्यादा लगभग 29 फीसदी मत मिले।
14वीं लोकसभा चुनाव में सीपीएम को 43 सीटें मिलीं। सीपीआई ने 10 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की। सीपीएम को 5.66 और सीपीआई को 1.41 फीसदी मत मिले। बहुजन समाज पार्टी के 19 उम्मीदवारों ने भी चुनाव में जीत दर्ज की थी। हालांकि पार्टी ने पूरे देश में 435 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे। पार्टी को कुल मतदाताओं में 5.33 फीसदी मतदाताओं का वोट मिला। एनसीपी ने भी 9 सीटों पर जीत हासिल की और उसे 1.8 फीसदी मत मिले।
बीएसपी, एसपी, एमडीएमके और लेफ्ट फ्रंट के सहयोग से कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए ने केंद्र में सरकार बनाई। इस पूरे एपीसोड में अहम रहा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का प्रधानमंत्री बनने से इनकार करना। सोनिया गांधी ने पूर्व वित्त मंत्री मनमोहन सिंह को देश की बागडोर संभालने की गुजारिश की और इस तरह नब्बे के दशक में भारत में उदारीकरण के शिल्पकार माने जाने वाले मनमोहन सिंह ने भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली।
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