लोकतंत्र के पन्ने: जानिए समाजवादी पार्टी का गढ़ कहे जाने वाले कन्नौज लोकसभा सीट का इतिहास
उत्तर प्रदेश के कन्नौज लोकसभा सीट पर पिछले 6 चुनाव से समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा है। 2014 लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद बीजेपी यहां कमल नहीं खिला पाई थी। इस बार भी मुकाबला एसपी और बीजेपी के बीच है।
इत्र के लिए मशहूर उत्तर प्रदेश का कन्नौज अब सियासी तौर पर भी देश भर में अपनी पहचान बना चुका है। कन्नौज लोकसभा सीट समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है। फिलहाय समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव यहां से सांसद हैं। 2014 में मोदी लहर के बावजूद बीजेपी एसपी के इस गढ़ में सेंध लगाने में नाकाम रही थी। समाजवादी पार्टी ने एकबार फिर से डिंपल यादव को यहां से अपना उम्मीदवार बनाया है। कन्नौज में चौथे चरण में 29 अप्रैल को वोट डाले जाने हैं।
कन्नौज से सांसद रहे तीन नेता बाद में मुख्यमंत्री बने। 1984 में सांसद बनीं शीला दीक्षित दिल्ली की तीन बार मुख्यमंत्री रही तो वहीं नब्बे के दशक में 1999 में जीते मुलायम सिंह यादव और उनके बेटे अखिलेश यादव यहां से सांसद बने और फिर यूपी के मुख्यमंत्री भी रहे।
कन्नौज लोकसभा क्षेत्र का इतिहास
देश में आजादी के बाद पहली बार 1952 में लोकसभा के लिए चुनाव कराए गए। इस चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार शंभूनाथ मिश्रा ने बाजी मारी। 1957 के दूसरे लोकसभा चुनाव में भी वो यहां से सांसद बने। हालांकि 1962 में मूलचंद्र दूबे चुनाव जीतने में कामयाब रहे लेकिन लेकिन 1963 में शंभूनाथ मिश्रा एक बार फिर सांसद बने। कन्नौज लोकसभा सीट पर कांग्रेस का 15 सालों तक लगातार कब्जा रहा। लेकिन 1967 के आम चुनाव में समाजवादी विचारधारा के जनक डॉ. राम मनोहर लोहिया ने ब्रेक लगा दिया। डॉ. राम मनोहर लोहिया कांग्रेस के शंभूनाथ को करारी मात देकर वह संसद बनें।
इसके अगले चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट पर एक बार फिर से जीत हासिल की। लेकिन अगले दो चुनाव में कन्नौज लोकसभा सीट पर जनता पार्टी का कब्जा रहा। 1977 में जनता पार्टी के प्रत्याशी रामप्रकाश त्रिपाठी चुनाव जीते, वहीं 1980 में छोट सिंह यादव यहां से चुनाव जीते। 1984 में शीला दीक्षित ने कन्नौज से चुनावी मैदान में उतरकर कांग्रेस की इस सीट पर वापसी कराई। 1989 और 1991 में छोटे सिंह यादव ने लोकदल का झंडा बुलंद करते हुए जीत हासिल की।
लगातार 6 लोकसभा चुनाव से समाजवादी पार्टी का कब्जा
1996 के आम चुनाव में बीजेपी ने कन्नौज लोकसभा सीट पर पहली और आखिरी बार जीत का स्वाद चखा। इसके बाद से इस सीट पर समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा है। 1998 के चुनाव में एसपी के प्रदीप यादव ने बीजेपी से यह सीट छीनी और उसके बाद से अब तक हुए सभी चुनाव में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों ने ही जीत हासिल की है। 1999 में एसपी के तत्कालीन मुखिया मुलायम सिंह यादव जीते, लेकिन उन्होंने बाद में इस्तीफा दे दिया।
इसके बाद यहां से अखिलेश यादव ने अपने सियासी पारी की शुरुआत की। 2000 में हुए उपचुनाव में वो यहां से सांसद बनें। इसके बाद अखिलेश यादव ने 2004, 2009 में लगातार जीत कर उन्होंने पहली बार हैट्रिक लगाकर इतिहास रचा, लेकिन 2012 में यूपी के सीएम बनने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद उनकी पत्नी डिंपल यादव निर्विरोध चुनकर लोकसभा पहुंचीं।
इस बार कन्नौज लोकसभा सीट से 10 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। समाजवादी पार्टी ने डिंपल यादव को फिर से चुनावी मैदान में उतारा है। उन्हें चुनौती देने बीजेपी ने सुब्रत पाठक पर दांव खेला है। मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों के बीच होना है। शिवसेना, भारतीय वंचितसमाज पार्टी, राष्ट्रीय क्रांति पार्टी, ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक, राष्ट्रीय समाज पक्ष के अलावा तीन निर्दलीय भी चुनाव मैदान में हैं।
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