झारखंड में बीजेपी हलकान, मोदी-रघुवर के खिलाफ लहर में जमीन बचाना हुआ मुश्किल
लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी झारखंड में हलकान है। विपक्षी पार्टियों के महागठबंधन और पीएम मोदी और सीएम रघुवर दास की सरकारों के प्रति लोगों की नाराजगी की वजह से पिछली बार जीती अपनी 12 सीटें बचाना बीजेपी के लिए असंभव दिख रहा है।
साल 2014 के लोकसभा चुनावों में झारखंड की कुल 14 में से 12 सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी इस बार अपनी आधी से अधिक सीटें गंवा सकती है। बीजेपी के कई बड़े नेता भी अपनी निश्चित सीटें नहीं बता पा रहे हैं। उनकी गिनती 3-4 सीटों के बाद फिफ्टी-फिफ्टी (कड़े मुकाबले) पर पहुंच जाती है।
इससे साफ जाहिर है कि बीजेपी यहां कड़े मुकाबले में फंस गई है। वह इस हालत में नहीं है कि पिछली बार जीती गई सभी 12 सीटें दोबारा जीत पाए या अपने तथाकथित मिशन-14 को कामयाब बना सके। विपक्षी पार्टियों के महागठबंधन और पीएम मोदी और सीएम रघुवर दास की सरकारों के प्रति लोगों की नाराजगी के कारण ऐसा हुआ है। इसका असर मौजूदा लोकसभा चुनाव पर तो पड़ ही रहा है, कुछ महीने बाद होने वाले झारखंड विधानसभा के चुनावों में भी बीजेपी को इस वजह से घाटा होने की पूरी संभावना है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इससे उत्साहित हैं। उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकारों की गलत नीतियों से जनता उब चुकी है। ऐसे में 23 मई के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दिसंबर में मुख्यमंत्री रघुवर दास की विदाई तय है। न तो केंद्र की सरकार ने अपने वायदे पूरे किए हैं और न झारखंड की रघुवर सरकार जनता के भरोसे पर खरी उतरी है। इनके झूठ से जनता में आक्रोश है और लोगों ने उनके खिलाफ वोट का मन बना लिया है।
उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी की सरकार ने आदिवासियों, दलितों, अल्पसंख्यकों और वंचित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले हर शख्स के साथ छल किया है। यह झूठे लोगों की सरकार थी, जो जनता की संवेदनाओं के साथ खेलती रही।
राज्य की दुमका और राजमहल की सीट झारखंड मुक्ति मोर्चा के पास हैं। बाकी सभी 12 सीटों पर बीजेपी का कब्जा है। पिछले 23 अप्रैल को इनमें से तीन सीटों पर वोटिंग हुई। 6 मई को झारखंड में दूसरे चरण की वोटिंग होगी। इस दिन खूंटी, हजारीबाग और कोडरमा में चुनाव होना है। खूंटी से पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, हजारीबाग से केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा और कोडरमा से अन्नपूर्णा देवी बीजेपी की प्रत्याशी हैं।
खूंटी से अर्जुन मुंडा पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं और कांग्रेस पार्टी के कालीचरण मुंडा से उनका सीधा मुकाबला है। वहीं, हजारीबाग में जयंत सिन्हा के मुकाबले कांग्रेस के गोपाल रे साहू हैं। कोडरमा में सबसे दिलचस्प मुकाबला है। यहां लालू यादव की पार्टी आरजेडी छोड़कर हाल ही में बीजेपी में शामिल हुईं अन्नपूर्णा देवी झारखंड विकास मोर्चा के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी कड़ी टक्कर दे रहे हैं। मरांडी यहां विपक्षी पार्टियों के महागठबंधन के साझा उम्मीदवार हैं और पहले भी इस सीट से लोकसभा पहुंच चुके हैं। उन्होंने दावा किया कि जनता इस चुनाव में बीजेपी को वोट नहीं देगी और वे बड़े अंतर से यह चुनाव जीत जाएंगे।
इस तरह 12 मई को गिरिडीह, धनबाद, जमशेदपुर और चाईबासा (सिंहभूम) के लिए वोटिंग होनी है। गिरिडीह सीट एनडीए की सहयोगी आजसू पार्टी के खाते में गई है। रघुवर दास सरकार के मंत्री चंद्रप्रकाश चौधरी यहां से बीजेपी समर्थित उम्मीदवार हैं। उन्हें झारखंड मुक्ति मोर्चा के जगन्नाथ महतो चुनौती दे रहे हैं। यहां बाहरी महतो (चंद्रप्रकाश चौधरी) और स्थानीय महतो (जगन्नाथ महतो) के बीच मुकाबला है। महतो वोटरों की बहुलता वाली यह सीट पहले बीजेपी के कब्जे में थी। रवींद्र पांडेय यहां से पांच बार सासंद रहे लेकिन बीजेपी ने इस बार उन्हें टिकट नहीं दिया और यह सीट आजसू पार्टी को दे दी। इस वजह से यहां के बीजेपी कार्यकर्ताओं में अंतर्कलह चरम पर है।
वहीं धनबाद में कांग्रेस से कीर्ति झा आजाद चुनाव लड़ रहे हैं। वे अपने पिता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद के पारिवारिक सबंधों और अपनी जड़ों के आधार पर वोट मांग रहे हैं। उनका मुकाबला बीजेपी के मौजूदा सांसद पी एन सिंह से है, जो इस बार कड़े मुकाबले में फंस गए हैं। कीर्ति आजाद की लोकप्रियता और बीजेपी सरकार से लोगों की नाराजगी उनकी राह में रोड़े अटका रही है। जमशेदपुर में झामुमो के चंपई सोरेन और बीजेपी के विद्युत वरण महतो में सीधी टक्कर है।
चंपई सोरेन ने ही कभी विद्युत वरण महतो को झारखंड मुक्ति मोर्चा में जगह दिलाई थी। बाद में वे झामुमो छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए और पिछले चुनाव में जमशेदपुर से सांसद भी बन गए। इस बार यहां गुरु और चेले की इस लड़ाई में वे पीछे नजर आ रहे हैं।
वहीं चाईबासा (सिंहभूम) सीट पर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और वर्तमान सांसद लक्ष्मण गिलुवा को पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की विधायक पत्नी गीता कोड़ा चुनौती दे रही हैं। वे कांग्रेस के टिकट पर महागठबंधन की उम्मीदवार हैं। यहां से मधु कोड़ा भी सांसद रह चुके हैं। लिहाजा, उन्हें पुराने समर्थकों का कुनबा मदद कर रहा है और वह मुकाबले में काफी आगे हैं। लक्ष्मण गिलुवा इस बार अपनी जिंदगी के सबसे कड़े मुकाबले में फंस गए हैं।
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