विश्व तेल बाजार में तनाव के होंगे दूरगामी असर, अमेरिका को भी होगा नुकसान
अल्पकालिन असर तो सभी को नजर आ रहे हैं, पर इस अल्पकालिन असर के अतिरिक्त कुछ दीर्घकालीन अधिक व्यापक असर भी हो सकते हैं। जिन देशों पर प्रतिबंध लगे हैं, वे कुछ प्रमुख तेल आयातक देशों को उनकी करेंसी में तेल बेचने के समझौते कर सकते हैं। इस तरह तेल का व्यापार अमेरिकी डालर में होने का दायरा कम होगा।
संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा ईरान और वेनेजुएला पर आर्थिक और व्यापार प्रतिबंध लगाने से विश्व के उन देशों की समस्याएं बढ़ गई हैं जो तेल और गैस आयात पर अधिक निर्भर हैं।
कुछ वर्ष पहले ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर विवाद बढ़ा। ईरान ने कहा कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य परमाणु बम बनाना नहीं है पर संयुक्त राज्य अमेरिका का आरोप था कि ईरान परमाणु बम बनाना चाहता है। इस स्थिति में बहुत प्रयास कर ईरान का बहुपक्षीय समझौता संयुक्त राज्य अमेरिका के अतिरिक्त रूस, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, चीन इन छः देशों से हुआ। इस समझौते के लिए बहुत मेहनत की गई। इस समझौते में अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही और उन्हें इसके लिए सराहा भी गया कि अमेरिका में आक्रमक तत्त्वों के विरोध के बावजूद उन्होंने यह समझौता किया।
पर अमेरिका में सत्ता परिवर्तन होने के बाद नए राष्ट्रपति ने ईरान के प्रति बहुत आक्रमक रुख अपनाया और इस समझौते को बहुत हानिकारक बताते हुए इसे एकतरफा निर्णय से रद्द कर दिया। इस समझौते से जुड़े अन्य देशों ने इसे रद्द नहीं किया। पर ट्रंप ने इसे रद्द कर ईरान पर और उसके तेल निर्यात पर नए सिरे से प्रतिबंध लगा दिए।
उधर वेनेजुएला एक अन्य बड़ा तेल निर्यातक देश है। वहां की सरकार के प्रति भी ट्रंप ने बहुत आक्रमक नीतियां अपनाते हुए वेनेजुएला पर और उसके तेल निर्यात पर कई प्रतिबंध लगा दिए।
इन प्रतिबंधों का फौरी असर यह होगा कि इन दोनों देशों की आर्थिक कठिनाईयां बढ़ेंगी और इनका असर इन देशों की राजनीतिक स्थिति पर भी कम या अधिक पड़ेगा, विशेषकर वेनेजुएला में जहां आम लोगों की आर्थिक कठिनाईयां पहले ही बहुत बढ़ी हुई हैं। ईरान की तो कुछ ही समय पहले भीषण बाढ़ का प्रकोप भी झेलना पड़ा है। दूसरी ओर संयुक्त राज्य अमेरिका और सऊदी अरब जैसे तेल निर्यातक देशों को तेल निर्यात से अधिक धन अर्जित करने का अवसर प्राप्त होगा।
तीसरा पक्ष तेल आयात पर अधिक निर्भर देशों का है जिनकी कठिनाईयां और आर्थिक बोझ बढ़ जाएंगे। इन तेल आयातक देशों में भारत भी है।
यह अल्पकालिन असर तो सभी को नजर आ रहे हैं, पर इस अल्पकालिन असर के अतिरिक्त कुछ दीर्घकालीन अधिक व्यापक असर भी हो सकते हैं। जिन देशों पर प्रतिबंध लगे हैं, वे कुछ प्रमुख तेल आयातक देशों को उनकी करेंसी में तेल बेचने के समझौते कर सकते हैं। इस तरह तेल का व्यापार अमेरिकी डालर में होने का दायरा कम होगा।
इसके अतिरिक्त प्रतिबंधों के मनमाने उपयोग से अमेरिका का विश्व अर्थव्यवस्था का नेतृत्व भी कमजोर होगा। इस स्थिति में अमेरिकी डालर की अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा में मान्यता भी कम हो सकती है, या इस प्रवृत्ति में तेजी आ सकती है।
इसके आगे बड़ा सवाल यह है कि क्या मौजूदा अन्तर्राष्ट्रीय करेंसी व्यवस्था में बड़ी हलचल आने पर इन समस्याओं का शान्तिपूर्ण समाधान हो सकेगा कि नहीं।
जो लोग विश्व में अमन-शान्ति के लिए समर्पित हैं, वे भली-भांति समझते हैं कि अन्तर्राष्ट्रीय करेंसी का मुद्दा भविष्य में एक बड़े तनाव का कारण बन सकता है। अतः वे यह चाहते हैं कि इस मुद्दे को समय रहते अमन-शांति के माहौल में सुलझा लिया जाए। इसके लिए बहुत समझदारी व धैर्य से कई स्तरों पर प्रयास करने होंगे। यह तो हो नहीं रहा है, पर इसके स्थान पर मनमाने प्रतिबंधों जैसे निर्णय लिए जा रहे हैं जो तनावों को तेजी से बढ़ा सकते हैं। अतः संकीर्ण स्वार्थों के लिए लगाए गए मनमाने अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों का विरोध जरूरी है।
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