रूस-यूक्रेन युद्ध में फंसे रहे मैक्रों और फ्रांस में बदल गया चुनावी माहौल
फ्रांस में चुनावों से पहले लोगों से समस्याओं के बारे में बात करने पर वे बार-बार त्रासदी शब्द का जिक्र करते हैं। ये त्रासदी है महंगाई और कमाई की। लोगों का कहना है कि साल 2020 से तीन बार लगे लॉकडाउन से जीवन थम गया है और देश में भारी महंगाई झेलनी पड़ रही है।
फ्रांस में राष्ट्रपति का चुनाव रविवार को होना है। पिछले साल की तरह ही इस बार भी मुख्य मुकाबला मध्यमार्गी उम्मीदवार और वर्तमान राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों और धुर दक्षिणपंथी उम्मीदवार मारीन ले पेन के बीच है। मैक्रों पिछले कुछ हफ्तों में रूस और यूक्रेन के युद्ध के बीच कूटनीतिक प्रयासों में व्यस्त रहे और सिर्फ दो हफ्ते पहले ही अपना चुनाव अभियान शुरू कर सके। अब ये देरी मैक्रों को भारी पड़ सकती है। कुछ हफ्तों पहले तक मैक्रों का चुना जाना लगभग सुनिश्चित माना जा रहा था, लेकिन पिछले दिनों ले पेन की लोकप्रियता बढ़ने के बाद लगभग तय है कि वे मैक्रों के साथ दूसरे चरण के चुनाव भी लड़ेंगीं।
कैसे चुना जाता है फ्रांस का राष्ट्रपति
फ्रांसीसी राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 साल का होता है। उनका चुनाव दो चरणों में होता है। इस साल पहला चरण 10 अप्रैल और दूसरा चरण 24 अप्रैल को होना है। अगर कोई उम्मीदवार पहले ही चरण में 50 फीसदी से ज्यादा मत पा जाता है, तो उसे तुरंत विजेता घोषित कर दिया जाता है और दूसरे चरण का चुनाव नहीं कराया जाता। और अगर दूसरे चरण का चुनाव होता है, तो उसे पहले चरण में शीर्ष पर रहे दो उम्मीदवारों के बीच ही कराया जाता है।
फ्रांस के मौजूदा कानून के मुताबिक किसी नेता को अगर राष्ट्रपति उम्मीदवार बनना है तो उसे अपने पक्ष में 500 मेयर और स्थानीय अधिकारियों के हस्ताक्षर कराने होते हैं। इसके बाद फ्रांसीसी सुप्रीम कोर्ट इन हस्ताक्षर की प्रामाणिकता जांचता है और उम्मीदवारी को अंतिम मंजूरी देता है।
इस बार के फ्रांसीसी चुनाव के मुद्दे
फ्रांस में चुनावों से पहले लोगों से समस्याओं के बारे में बात करने पर वे बार-बार त्रासदी शब्द का जिक्र कर रहे हैं। ये त्रासदी है महंगाई और कमाई की। लोगों का कहना है कि साल 2020 से तीन बार लग चुके लॉकडाउन से जीवन थम गया है और कोविड के चलते भारी महंगाई झेलनी पड़ रही है। उस पर यूक्रेन युद्ध परिवारों का बजट बिगाड़ने के लिए कोढ़ में खाज बना हुआ है। खर्च की क्षमता में आई कमी, तनख्वाह न बढ़ना और बढ़ती तेल और गैस की कीमतें ज्यादातर लोगों को चिंतित कर रही हैं।
बिगड़ा है माक्रों का गणित
एक इंवेस्टमेंट बैंकर रहे मैक्रों की छवि फ्रांस के छोटे शहरों और गांवों में एक अभिमानी इंसान की है। हालांकि कई लोग मैक्रों के भारी-भरकम कोरोना मदद पैकेज की तारीफ कर रहे हैं, लेकिन वहीं 2018 में उनके खिलाफ हुए 'येलो वेस्ट' आंदोलन को भी याद किया जा रहा है। जो मैक्रों की प्रो-बिजनेस नीतियों और अमीरों के लिए टैक्स में कटौती के विरोध में हुआ था।
मैक्रों फिर भी ले पेन से आगे हैं लेकिन जरा सा ही। वे जानते हैं कि पासा पलट सकता है, इसलिए कह रहे हैं कि अगर ले पेन को चुन लिया जाता है तो उनके सामाजिक कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को फ्रांस से बाहर कर देंगे। वे ये चेतावनी भी दे रहे हैं कि ले पेन के चलते निवेशक गए तो फ्रांस में भयंकर बेरोजगारी फैल जाएगी। इस बार भी सप्ताहांत में हुई अपनी पहली रैली में उन्होंने कहा, "देखिए ब्रेक्जिट और अन्य चुनावों में क्या हुआ था, कुछ भी असंभव नहीं है।"
अब ले पेन सिर्फ कट्टरपंथी नहीं
ले पेन महंगाई और कमाई दोनों ही मुद्दों पर महीनों से बात कर रही हैं। हाल ही में उन्होंने कहा था, "मैक्रों और मेरे बीच में चुनाव का मतलब है- 'पैसे की ताकत, जो कुछ लोगों को फायदा पहुंचाती है' और 'घरेलू खरीददारी की क्षमता, जो कइयों को फायदा पहुंचाती है,' के बीच चुनाव। उन्होंने टैक्स में और छूट देने और सामाजिक सेवाओं पर खर्च बढ़ाने का वादा भी किया है। साथ ही मैक्रों के कार्यकाल में मैनेजमेंट कंसल्टेंसी पर 2 अरब यूरो खर्च होने पर भी उन्होंने राष्ट्रपति को आड़े हाथों लिया है।
कट्टर छवि के लिए मशहूर ले पेन इस बार मुस्लिम अप्रवासियों के डर पर ज्यादा जोर न देकर अपना पारंपरिक रास्ता छोड़ रही हैं, जिससे उनकी छवि भी थोड़ी नर्म हुई है। 53 साल की ले पेन ने अपनी छवि को नर्म करने के लिए अन्य उम्मीदवार एरिक जिम्मूर को भी निशाने पर लेना शुरू कर दिया है। अपनी पार्टी पर लगे नस्लभेद और नियो-नाजी गुटों से संबंधों से ध्यान हटाने के लिए वे जिम्मूर को निशाना बना रही हैं।
एरिक जिम्मूर ने खराब किया माहौल
'फ्रेंच सुसाइड' नाम की बेस्ट सेलिंग किताब लिखने वाले कट्टर दक्षिणपंथी नेता एरिक जिम्मूर दस लाख से ज्यादा प्रवासियों को फ्रांस से बाहर निकाल देना चाहते हैं। जिम्मूर ने तो ग्रेट रिप्लेसमेंट की व्हाइट सुपरिमेसिस्ट कॉन्सपिरेसी थियरी को भी यह कह-कहकर आम बना दिया है कि धीरे-धीरे मूल यूरोपीय लोगों की जगह अप्रवासी ले लेंगे। पेरिस पांथियों-आसस यूनिवर्सिटी की पॉलिटिकल कम्युनिकेशन एक्सपर्ट अरनू मेर्सिए कहते हैं, "उनसे तुलना करने पर सब मध्यमार्गी ही लगते हैं।"
पूर्व समाजवादी राष्ट्रपति फ्रांसुआ ओलांद ने पिछले साल कहा था, "वे जिस तरह विवाद पैदा करते हैं और नफरत पनपाते हैं, वे खतरनाक हैं।" ओपिनियन पोल दिखाते हैं कि जिम्मूर को रविवार के चुनावों में 10 फीसदी वोट मिलेंगे लेकिन उन्होंने ले पेन के लिए एक तरह की स्वीकार्यता जरूर बना दी है।
पारंपरिक दलों का पतन
वामपंथी समाजवादी 2017 में ओलांद के बाद से ही खुद को खड़ा नहीं कर सके हैं। फ्रांस के दोनों पारंपरिक राजनीतिक दल पतन की ओर हैं और इन चुनावों में हाशिए पर ही हैं। कट्टर वाम लोकलुभावन नेता ज्यां लुक मिलांसों से भी उम्मीदें नहीं हैं। पेरिस के मेयर और सोशलिस्ट उम्मीदवार आन इडालगो को दो फीसदी वोट मिलते दिख रहे हैं। कभी मजबूत रही दक्षिणपंथी रिपब्लिकन्स पार्टी की वेलेरी पिक्रिस के दस फीसदी मतों के साथ चौथे-पांचवें पायदान पर रहने की उम्मीद है।
यूरोप में 1945 के बाद से हुए अब तक के सबसे बड़े युद्ध और 1970 के बाद से सबसे ज्यादा महंगाई की चिंताओं से घिरा फ्रांस का चुनाव अप्रत्याशित नतीजे भी ला सकता है। पूर्वानुमान दिखाते हैं कि एक चौथाई मतदाता अब भी अनिश्चित हैं कि उन्हें रविवार को किसे वोट देना चाहिए और इतना बड़ा हिस्सा वोटिंग छोड़ भी सकता है, ऐसा हुआ तो यह अपने आप में एक रिकॉर्ड होगा।
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia