संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के खिलाफ चुनाव लड़ेगी ये भारतवंशी महिला, जानें कौन हैं आकांक्षा?
भारतीय मूल की एक 34 वर्षीय कनाडाई महिला ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के फिर से चुनाव लड़ने के बीच उनके खिलाफ खड़ा होने की घोषणा की है।
भारतीय मूल की एक 34 वर्षीय कनाडाई महिला ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के फिर से चुनाव लड़ने के बीच उनके खिलाफ खड़ा होने की घोषणा की है। उनका कहना है कि उनका एजेंडा बदलाव का है, लेकिन बिना किसी देश के समर्थन के उन्होंने गुटेरेस को चुनौती देने की ठानी है।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के लिए काम करने वाली अरोड़ा आकांक्षा ने पिछले सप्ताह अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करते हुए एक वीडियो जारी किया, जिसमें उन्होंने 21वीं सदी में संयुक्त राष्ट्र को प्रासंगिक बनाने के लिए खुद को उम्मीदवार के रूप में पेश किया। सोमवार तक उन्होंने अपना नामांकन दाखिल नहीं किया था। असेंबली प्रेसीडेंट के प्रवक्ता ब्रेंडन वर्मा ने कहा कि अब तक एकमात्र उम्मीदवार गुटेरेस हैं।
यदि वह एक उम्मीदवार के रूप में स्वीकार की जाती हैं तो उन्हें सुरक्षा परिषद की जररूत होगी और सुरक्षा परिषद के वीटो अधिकार प्राप्त सदस्यों का समर्थन प्राप्त करना होगा। शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त रह चुके गुटेरेस पर तंज कसते हुए, आकांक्षा ने ट्वीट में कहा कि वह शरणार्थियों के परिवार से आती हैं और बढ़ते शरणार्थी संकट को संयुक्त राष्ट्र की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक बताया, जिससे निपटने की जरूरत है।
उन्होंने ट्वीट किया, "मैं एक शरणार्थी परिवार से आती हूं। मेरे चारों ग्रैंडपैरेंट्स पाकिस्तान में रहते थे और विभाजन के बाद भारत में स्थानांतरित होने के लिए मजबूर हो गए।" वह भारत में पैदा हुई और सऊदी अरब में पली-बढ़ी और कनाडा में अपनी स्नातक की पढ़ाई की। उन्होंने पिछले साल न्यूयॉर्क में कोलंबिया यूनिवर्सिटी से मास्टर्स किया।
संयुक्त राष्ट्र की मॉनिटरिंग करने वाला एक पब्लिकेशन पास ब्लू के अनुसार, वह कनाडा की नागरिक हैं और भारत की ओवरसीज सिटिजनशिप रखती है।कोई भी उन्हें नामित करता नहीं प्रतीत हो रहा है।
अपने एजेंडे के बारे में, उन्होंने ट्वीट किया, "मेरा विजन एक ऐसा यूएन है जो काम करता हो और 21 वीं शताब्दी में प्रासंगिक हो। हमें बढ़ते शरणार्थी संकट को प्राथमिकता देना और इससे निपटना है, मानवीय संकटों से निपटने और सभी देशों तक इंटरनेट की पहुंच हो इसके लिए निवेश सुनिश्चित किया जाना चाहिए।" उन्होंने कहा, "ये विचार असंभव नहीं हैं और इसे पूरा करने के लिए और 75 साल की आवश्यकता नहीं है।"
चुनाव प्रक्रिया अस्पष्ट है कि क्या कोई उम्मीदवार खुद को नामित कर सकता है या किसी के द्वारा या किसी भी संगठन द्वारा नामित किया जा सकता है। 2015 के महासभा के प्रस्ताव ने चुनाव के लिए रूपरेखा तैयार की, जिसमें परिषद और असेंबली के अध्यक्षों को उम्मीदवारों के लिए सदस्यों को लिख कर अनुग्रह करने की आवश्यकता होती है।
इसके लिए स्पष्ट रूप से उम्मीदवार को एक सदस्य देश द्वारा नामित करने की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन वर्मा ने कहा, "उम्मीदवार पारंपरिक रूप से सदस्य देशों द्वारा पेश किए जाते हैं। यह मिसाल है।" अगर आकांक्षा का नामांकन हो जाता है, तो उन्हें गुटेरेस और अन्य संभावित उम्मीदवारों के साथ एक मंच में आने का मौका मिलेगा।
अंतिम बार जब एक भारतीय को पद के लिए एक गंभीर उम्मीदवार माना गया था वो साल 2006 था, जब शशि थरूर ने भारत सरकार के समर्थन के साथ चुनाव लड़ा था। लेकिन वह बान की मून से हार गए क्योंकि परिषद के स्थायी सदस्यों का सर्वसम्मति से समर्थन नहीं मिल सका और कथित तौर पर अमेरिका ने उनका विरोध किया था।
जब उन्होंने चुनाव लड़ा था तब वह संयुक्त राष्ट्र के एक अंडर सेक्रेटरी-जनरल थे। वह बाद में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार में राज्य मंत्री बने और कांग्रेस पार्टी के संसद सदस्य बने रहे हैं।
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