कोरोना के खिलाफ जंग में ब्रिटिश सरकार को माननी पड़ी भारतीय मूल के इस डॉक्टर की बात, आखिर कब जागेगी मोदी सरकार?
भारत समेत पूरी दुनिया में कोरोना वायरस ने डॉक्टरों को भी अपनी चपेट में ले लिया है। जोकि चिंता की बात है। ऐसे में भारत समेत पूरी दुनिया में यह मांग की जा रही हैं कि कोरोना वायरस के मरीजों की देख-रेख कर रहे डॉक्टरों को जरूरी उपकरण मुहैया कराई जाए।
भारत समेत पूरी दुनिया में कोरोना वायरस ने कोहराम मचा रखा है। दुनिया भर में अब तक 11 लाख से ज्यादा लोग इस जानलेवा बीमारी की चपेट में आ चुके हैं। अब तक 59 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं, भारत में अब तक 68 लोगों की जान जा चुकी है और 2600 से ज्यादा लोग इसकी चपेट में हैं।
कोरोना वायरस का अब तक कोई इलाज नहीं ढूंढा जा सका है। ऐसे में सिर्फ डॉक्टरों पर सबकी उम्मीदें टिकी हुई हैं। लेकिन हकीकत यह है कि भारत समेत पूरी दुनिया में कोरोना वायरस ने डॉक्टरों को भी अपनी चपेट में ले लिया है। जोकि चिंता की बात है। ऐसे में भारत समेत पूरी दुनिया में यह मांग की जा रही हैं कि कोरोना वायरस के मरीजों की देख-रेख कर रहे डॉक्टरों को जरूरी उपकरण मुहैया कराई जाए। भारतीय मूल के एक ऐसे ही डॉक्टर निशांत जोशी के सुझाव के आगे ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा है।
भारतीय मूल के डॉक्टर निशांत जोशी के सुझाव को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश सरकार को पूर्व में जारी निर्देशों में बदलाव करना पड़ा है। ब्रिटेन के अस्पतालों में कोविड-19 का इलाज कर रहे चिकित्सा पेशेवरों के बेहतर व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) मुहैया कराने को लेकर अभियान चला रहे निशांत जोशी ने ब्रिटिश सरकार के अद्यतन दिशानिर्देश का स्वागत किया। निर्देश में सर्जिकल मास्क को जरूरी करार दिया गया है। डॉ.जोशी कई हफ्तों से राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (एनएचएस) के अंतर्गत कोरोना वायरस के संक्रमितों का इलाज कर रहे चिकित्सा पेशेवरों के समक्ष पीपीई की कमी का मुद्दा उठा रहे हैं। वह चिकित्सा कर्मियों के बेहतर सुरक्षा उपकरणों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश की मांग कर रहे हैं।
दक्षिण पूर्व इंग्लैंड के बेडफोर्डशायर में एक डॉक्टर ने कहा, कि यह बड़ी जीत है। हमने पीपीई की लड़ाई जीत ली है। सरकार ने दिशा-निर्देशों को जरूरी करार दिया है और जो मुद्दे उठाए गए थे उसे लेकर पहले के रुख से सरकार ने यूटर्न लिया है। डफोर्डशायर के एनएचएस अस्पताल के आपातकालीन सेवा में कार्यरत डॉ.निशांत जोशी ने यह भी पूछा है कि आखिर क्यों नहीं सरकार ने शुरूआत में ही ऐसे नियम बनाए।
कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में डॉक्टरों की जिंदगी बेशकीमती है, क्योंकि अगर डॉक्टर सुरक्षित रहेंगे तभी वे दूसरों का इलाज कर पाएंगे। अगर डॉक्टर ही कोरोना वायरस की चपेट में आ गए तो यह लड़ाई और मुश्किल हो जाएगी। भारत में पीईपी को लेकर सोशल मीडिया पर अभियान चलाए जा रहे हैं। देश में लगातार डॉक्टर जरूरी उपकरण की मांग कर रहे हैं। कांग्रेस समते दूसरे विपक्ष दल भी इस मुद्दे को उठा रहे हैं, लेकिन अभी तक सरकारों द्वारा सभी डॉक्टरों को जरूरी उपकरण मुहैया नहीं कराया जा सका है।
देश में स्वास्थ्य कर्मी कई जगहों पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं। एक ऐसा ही मामला उत्तर प्रदेश के बांदा में सामने आया है। बांदा राजकीय मेडिकल कॉलेज में आउटसोर्सिंग पर तैनात महिला मेडिकल स्टाफ ने आरोप लगाया कि अस्पताल प्रशासन ने सैनेटाइजर और मॉस्क की मांग करने पर उनको टर्मिनेट कर दिया है। इतना ही नहीं स्टाफ का आरोप है कि उनकी सैलरी भी बिना बताए काट दी गई। स्टाफ का आरोप है कि उन्हें अस्पताल प्रशासन द्वारा पिटाई करने की भी धमकी दी गई। महिला स्टाफ ने बताया कि उन्हें यहा तक धमकी दी गई कि यहां से चले जाओ नहीं तो तुम्हारे हाथ-पैर तुड़वा दिए जाएंगे। ऐसे मामलों में सरकार को संज्ञान लेने की जरूरत है और कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में जुटे डॉक्टरों को जरूरी उपकरण मुहैया कराए जाने की जरूरत है।
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