अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश कोरोना के आगे दिख रहे असहाय, लेकिन ये पांच देश दुनिया के समाने पेश कर रहे मिसाल!
कोरोना के कहर से बचने के लिए हर देश ने अपने तरीके से इसके खिलाफ अभियान शुरू किया। कुछ देशों ने इसके खतरे को पहले ही भांप कर इसे बहुत ही गंभीरता से लिया और इस मामले में बाकी के देशों से आगे रहे। यहां हम उन्हीं 5 देशों की बात कर रहे हैं जिन्होंने कोरोना को रोकने की दिशा में शानदार काम किया है।
कोरोना वायरस ने दुनिया के सभी बड़े देशों को असहाय कर दिया है। कोई भी देश इस वायरस के प्रकोप से बच नहीं पाया है और ना ही इस पर काबू पाने में ज्यादा सफलता मील रही है। इस वायरस ने दुनिया भर में अब तक 50 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। सबसे हैरान करने वाली बात है कि ज्यादातर मरने वाले लोग कोई तीसरी दुनिया के नहीं बल्कि विकसित दुनिया के लोग हैं।
कोरोना के कहर से बचने के लिए हर देश ने अपने तरीके से इसके खिलाफ अभियान शुरू किया। कुछ देशों ने इसके खतरे को पहले ही भांप कर इसे बहुत ही गंभीरता से लिया और इस मामले में बाकी के देशों से आगे रहे। यहां हम उन्हीं 5 देशों की बात कर रहे हैं जिन्होंने कोरोना को रोकने की दिशा में शानदार काम किया है।
सबसे पहले बात करते हैं चीन की। चीन के वुहान शहर को कोरोना वायरस की उत्पत्ति स्थान माना जाता है। इस वायरस ने यहीं से संक्रमण की शुरुआत की। चीन के पास सार्स की महामारी से लड़ने का अनुभव था और यह अनुभव कोरोना वायरस के संक्रमण में भी काम आया। चीन ने कोरोना वायरस के फैलने का इंतजार नहीं किया बल्कि लोगों की पहचान करना शुरू किया कि कौन कोरोना वायरस से संक्रमित है और कौन नहीं। कोरोना वायरस के टेस्ट की प्रक्रिया सबसे पहले चीन में ही विकसित हुई और इसकी विस्तृत जानकारी वुहान में लॉकडाउन से ठीक पहले 24 जनवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन की वेबसाइट पर पोस्ट की गई। हॉन्ग कॉन्ग की एक टीम ने सार्स की शिनाख्त के लिए काम किया था, उसने भी इसमें मदद की।
कोरोना वायरस ने चीन से ज्यादा यूरोप में घातक साबित हुआ है। लेकिन जर्मनी ने बहुत हद तक इस वायरस को फैलने से रोकने में कामयाबी पाई है। दरअसल जर्मनी भी इस बात को समझ गया था कि कोरोना वायरस वैश्विक समस्या बनने जा रहा है। ऐसे में उसने भी इससे लड़ने की तैयारी शुरू कर दी थी। जनवरी की शुरुआत में ही बर्लिन के वैज्ञानिक ओलफर्ट लैंड्ट ने अपने शोध में पाया कि यह सार्स से मिलता जुलता है और उन्होंने महसूस किया कि इसके लिए टेस्टिंग किट की जरूरत पड़ेगी। फरवरी के आखिर तक ओलफर्ट और उनकी टीम ने 40 लाख किट बना लिए। इसके बाद जर्मनी में बड़ी संख्या में लोगों का टेस्ट होने लगा। जर्मनी ने हर दिन 12 हजार लोगों का टेस्ट करना शुरू कर दिया।
दक्षिण कोरिया ने कोरोना वायरस की टेस्टिंग सबसे आक्रमक तरीके से किया। देश में कोरोना फैलने के साथ ही दक्षिण कोरिया ने बड़ी संख्या में लोगों का टेस्ट करना शुरू किया। यहां तक कि कार पार्किंग और मॉल में भी टेस्ट किया जाने लगा। दक्षिण कोरिया ने वुहान से सबक सीखा था और उसने समझ लिया था कि इसका संक्रमण केवल वुहान तक ही सीमित नहीं रहेगा। टेस्ट में जिन लोगों का भी पॉजिटिव केस आया, उन्हें दक्षिण कोरिया ने अलग करना शुरू किया। दक्षिण कोरिया ने हर दिन 15 हजार लोगों के टेस्ट की क्षमता विकसित की। दक्षिण कोरिया ने लाखों टेस्ट बिना कोई चार्ज के किए। कई जगह टेस्टिंग बूथ बनाए गए थे। टेस्ट का रिजल्ट मोबाइल पर मेसेज और फोन के जरिए बताए जाते थे। टेस्ट करने वाले किट लेकर पार्क, कार पार्किंग और मॉल में भी घूमते रहते थे। इसी सक्रियता के कारण दक्षिण कोरिया ने कोरोना वायरस को कंट्रोल में किया।
इसी तरह आइसलैंड ने भी ज्यादा से ज्यादा लोगों का टेस्ट किया। हालांकि आइसलैंड एक छोटा देश है। दुनिया भर में कोरोना वायरस का जिस अनुपात में टेस्ट में आइसलैंड में हुआ, उतना कहीं नहीं हुआ। यहां हर किसी का टेस्ट किया गया, जो बीमार थे उनका भी और जो बीमान नहीं थे उनका भी। इस व्यापक पैमाने पर किए टेस्ट के कारण यह देश कोरोना वायरस पर निंयत्रण करने में कामयाब रहा।
कोरोना वायरस से दुनिया में सबसे ज्यादा मौतें इटली में हुई। लेकिन यहां भी बड़े पैमाने पर लोगों कोरोना के टेस्ट किए गए। यहां दो लाख से ज्यादा लोगों के टेस्ट किए गए। इटली में कोरोना वायरस के संक्रमण से मृत्यु दर सबसे ज्यादा 11 फीसदी है। इटली में भी टेस्ट व्यापक पैमाने पर हुआ है लेकिन यहां मृत्यु दर ज्यादा होने के पीछे कई तर्क दिए जा रहे हैं। जैसे इटली में जापान के बाद दुनिया की सबसे ज्यादा बुजुर्ग आबादी रहती है। इसके अलावा, इटली में इनफ्लुएंजा से पीड़ित लोग बड़ी संख्या थे। इस वजह से भी यहां इतनी ज्यादा संख्या में लोगों की मौत हुई।
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Published: 03 Apr 2020, 3:30 PM