अमेरिका-ईरान के बीच युद्ध हुआ तो भारत को चुकानी पड़ेगी बड़ी कीमत, कई चीजों की हो जाएगी किल्लत
भारत तेल के लिए काफी हद तक मध्य पूर्वी एशियाई देशों पर निर्भर है। ऐसे में अगर अमेरिका और ईरान के बीच तनाव और बढ़ता है तो भारत के व्यापार के साथ तेल आयात भी प्रभावित होगा। वर्तमान में भारत सबसे ज्यादा तेल ईरान से ही आयात करता है।
अमेरिका ने ईरान के मेजर जनरल कासिम सुलेमानी को हवाई हमले में मार गिराया है। बगदाद एयरपोर्ट पर हुए अमेरिकी हवाई हमले में इराकी मिलिशिया कमांडर अबुर महादी अल-मुहानदिस की भी मौत हो गई है। अमेरिका ने शुक्रवार सुबह बगदाद एयरपोर्ट पर हवाई हमले को अंजाम दिया।
ईरान का समर्थन करने वाले इराकी मिलिशिया ने मेजर जनरल कासिम सुलेमानी के मारे जाने की पुष्टि की है। कासिम सुलेमानी के शव की पहचान अंगुली में पहनी अंगूठी की वजह से हुई। इसके बाद से अमेरिका और ईरान के बीच तनाव काफी बढ़ गया है। दोनों देशों के बीच युद्ध जैसे हालात बन गए हैं। इसका असर दुनिया के बाकी देशों के साथ-साथ भारत पर भी पड़ेगा। भारत तेल के लिए काफी हद तक मध्य पूर्वी एशियाई देशों पर निर्भर है। ऐसे में अगर अमेरिका और ईरान के बीच तनाव और बढ़ता है तो भारत के व्यापार के साथ तेल आयात भी प्रभावित होगा। वर्तमान में भारत सबसे ज्यादा तेल ईरान से ही आयात करता है।
सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो भारत कच्चे तेल के लिए बहुत ज्यादा ईरान पर निर्भर है। पिछले वित्त वर्ष में भारत ने अपना 84 प्रतिशत कच्चा तेल ईरान से आयात किया था। ऐसे में अगर ईरान और अमेरिका के बीच युद्ध होता है तो इसका सीधा असर तेल के दामों पर पड़ेगा और भारत में तेल महंगा हो जाएगा। तेल महंगा होने से उपभोक्ता वस्तुओं की कीमत बढ़ने और देश के बाहरी घाटे के बढ़ने की भी संभावना है। इससे आर्थिक विकास की रफ्तार और धीमी होने की संभावना भी बढ़ जाएगी।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत ने मार्च में खत्म हुए वित्त वर्ष में लगभग 10 प्रतिशत तेल खाड़ी देशों से आयात किया। जब ईरान ने अमेरिकी ड्रोन मार गिराए और ईरान की खाड़ी के पास टैंकरों पर हुए हमले से दोनों मुल्कों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया, जिसके चलते जून के मध्य में ब्रेंट क्रूड की कीमत काफी कम थी, लेकिन वर्तमान में इसकी कीमतों में आठ प्रतिशत तक उछाल देखने को मिला है।
वर्तमान में भारत के पास आपातकाल की स्थिति में प्रयोग करने के लिए रिजर्व के तौर पर केवल 3.91 करोड़ बैरल तेल मौजूद है, जो सिर्फ 9.5 दिन ही चल सकता है। अगर इसकी तुलना अन्य देशों से करें तो पता चलता है कि चीन के पास लगभग 55 करोड़ बैरल के भंडार होने का अनुमान है, जबकि अमेरिका के पास 64.5 करोड़ बैरल तेल मौजदू हैं।
अगर तेल की कीमत बढ़ता है तो पहले से ही महंगाई की मार झेल रही जनता पर बोझ और ज्यादा बढ़ जाएगा। हर जरूरत की चीजों के दाम में भी बढ़ोत्तरी हो जाएगी। जिसका परिणाम यह होगा है कि उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें भी तेजी से बढ़ेंगी, जिसके चलते देश में महंगाई काफी बढ़ जाएगी।
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